BJP and the slogan of Sabka Saath Sabka Vikas, why are voices of protest being raised?
अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/मुसलमानों को लेकर भारतीय जनता पार्टी बंगाल के नेता शुभेंदु अधिकारी के एक बयान ने कोलकाता से लेकर दिल्ली तक की सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। शुभेंदु ने कहा है कि अब हमें अपनी रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है। हमें सबका साथ और सबका विकास की जगह पर जो वोट देगा, उसी की काम करेंगे की बात करनी चाहिए।
शुभेंदु के बयान पर बवाल मचने के बाद भाजपा की शीर्ष इकाई ने पल्ला झाड़ लिया है। इसकी वजह सबका साथ और सबका विकास नारा है। साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने सबका साथ और सबका विकास का नारा दिया था। उस वक्त पार्टी पर मुसलमानों को लेकर कई आरोप लग रहे थे। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा भी काफी एक्टिव हुआ और मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने के लिए कई अभियान चलाया गया। इनमें मोदी मित्र नाम से चलाया जाने वाला कार्यक्रम प्रमुख था।इन समुदायों को साधने के लिए प्रधानमंत्री मोदी खुद देश के कई मुस्लिम नेताओं से मिले। इतना ही नहीं, भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने जब पैगंबर पर विवादित टिप्पणी की तो पार्टी ने उन्हें तुरंत सस्पेंड कर दिया।2019 में मोदी ने अपने सबका साथ-सबका विकास के नारे में सबका प्रयास और 2024 में सबका साथ-सबका विकास के नारे में सबका प्रयास और सबका विश्वास भी जोड़ा।हालांकि, क्षेत्रीय स्तर पर इस नारे के विरोध में बोलने वाले शुभेंदु अधिकारी पहले बड़े नेता नहीं हैं। हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि उन्हें मुसमलानों के वोट नहीं चाहिए।
गौरतलब है कि ये सभी जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी का जन्म ही मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ हुआ था। रामजन्मभूमि आंदोलन के पहले तक भाजपा के वोट देने वालों में मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या होती थी। भाजपा के टॉप लीडर्स में भी कुछ मुसलमान जरूर रहते थे। पर धीरे-धीरे मुस्लिम कम्युनिटी को टिकट मिलना भी बंद हो गया। 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल एक मुस्लिम कैंडिडेट केरल में बनाया गया। चुनाव प्रचार के दौरान खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी हर सभा में मुसलमानों से संबंधित 2 प्रमुख बातों को मुद्दा बनाया। पहली बात यह कि संविधान में आरक्षण धार्मिक नहीं था इसलिए मुस्लिम लोगों को कैसे आरक्षण मिल रहा है। दूसरा देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का नहीं है। इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण को मुद्दा बनाया गया जिसमें उन्होंने कहा था देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।
इसके बावजूद भाजपा कहती रही है कि विकास के मुद्दे पर सभी भारतीय उनके लिए समान हैं। चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान सभी को विकास योजनाओं का लाभ मिलता रहा है और मिलता रहेगा। इसके साथ ही पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने सबका साथ-सबका विकास नारे के विरोध में कुछ नहीं कहा। कुछ नेता जरूर यह कहते हुए सुने गए कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए। इसमें केंद्रीय मंत्री गिरिराज किशोर का नाम प्रमुख है। जेडीयू के एक सांसद को भी चुनाव जीतने के बाद यह कहते हुए सुना गया कि यादव और मुसलमान अपने काम लेकर उनके पास न आएं ,क्योंकि इन लोगों ने मुझे वोट नहीं दिया है। गौरतलब है कि जेडीयू और भाजपा ने बिहार में मिलकर चुनाव ल़ड़ा था।
उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं। पार्टी पूरी जोर लगा रही कि विपक्ष के मुकाबले उसे अधिक सीट मिले। यह सभी जानते हैं कि लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त और उसके उपचुनावों में मिली हार से पार्टी बैकफुट पर है। शायद अब भाजपा एक भी हार नहीं देखना चाहती है। यूपी उपचुनावों में भाजपा के लिए मुश्किल है कि कुछ सीट मुस्लिम बाहुल्य वालीं हैं। इसलिए भाजपा में कुछ लोग चाहते हैं कि कम से कम दो सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाएं। खबर है कि हाल ही में लखनऊ में सीएम आवास पर हुई भाजपा की बैठक में भी यह सवाल उठा था कि क्या भाजपा को उपचुनावों में मुस्लिम कैंडिडेट्स को उतारना चाहिए।
सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर करीब 8 प्रतिशत वोट मुसलमानों का भाजपा के हिस्से में गया था। गुजरात में तो यह आंकड़ा 29 प्रतिशत है । हालांकि उत्तर प्रदेश में केवल 2 परसेंट मुसलमानों ने ही भाजपा को वोट दिया है। सवाल यह है कि क्या मुसलमान भाजपा के साथ आ सकते हैं। इसका उत्तर यही है कि जब गोधरा के बाद हुई हिंसा को भूलकर मुसलमान गुजरात में 29 परसेंट वोट तब दे सकते हैं जब इसके लिए प्रयास ही नहीं किया गया। जाहिर है कि अगर प्रयास किया जाए, मुस्लिम कैंडिडेट खड़े किए जाएं तो यह परसेंटेज जरूर बढ़ सकता है। राजनीति में कभी कोई विचार स्थाई नहीं होता है। पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों के बावजूद सिखों के बीच सबसे लोकप्रिय पार्टी कांग्रेस ही है। देश में बहुत से उदाहरण हैं जब पार्टी के कोर वोटर्स पूरी तरह बदल गए हैं।
देश की 543 लोकसभा सीटों में 65 सीट ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 35 फीसदी से अधिक है। यूपी की 80 में से 14 लोकसभा सीटों पर और पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 13 पर मुस्लिम आबादी 35 फीसदी से अधिक है। इसके अलावा केरल की 8, असम की 7, जम्मू-कश्मीर की 5, बिहार की 4, मध्य प्रदेश की 3 और दिल्ली, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र और तेलंगाना की 2-2 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक की आबादी 35 फीसदी से अधिक है। तमिलनाडु में भी ऐसी एक लोकसभा सीट है। ऐसे में भाजपा अगर यह कहे कि हमें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए तो उसका नुकसान तो उसे उठाना ही पड़ेगा। अगर शुभेंदु जैसे लोग यह समझते हैं कि सौ फीसदी हिंदुओं को भाजपा के लिए पोलराइज्ड कर लेंगे तो यह असंभव तो नहीं पर मुश्किल जरूर लगता है।
यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी हिंदू हितों की बात तो करती रहती है। पर मुस्लिम वोट के लिए भी लगातार प्रयास किया जाता रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था पसमांदा मुसलमानों की समस्याओं पर काम करना चाहिए।आरएसएस की एक विंग राष्ट्रवादी मुसलमानों को साथ लाने के लिए इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में बहुत दिनों तक काम करती रही है।ये अलग बात है कि भाजपा को जितना वोट अशरफ मुसलमानों से मिला है उतना समर्थन उसे पसमांदा मुसलमानों ने नहीं दिया है। सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि 12 प्रतिशत अशरफ मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया है जबकि पसमांदा मुसलमानों ने केवल 5 प्रतिशत वोट ही दिया है।
एक टीवी चैनल को लोकसभा चुनावों के दौरान दिए गए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम वोट बैंक को लेकर बड़ी बात कही थी। मुस्लिम समुदाय की सामाजिक स्थिति का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं आज पहली बार कह रहा हूं। मैंने पहले कभी इन विषयों पर बातचीत नहीं की।मैं मुस्लिम समाज और उनके पढ़े-लिखे लोगों से कहता हूं कि आप आत्ममंथन कीजिए। सोचिए, देश इतना आगे बढ़ रहा है।। कमी अगर आपके समाज में महसूस होती है तो क्या कारण है? सरकार की व्यवस्थाओं का लाभ कांग्रेस के जमाने में आपको क्यों नहीं मिला? क्या कांग्रेस के कालखंड में इस दुर्दशा का शिकार हुए हैं? आपको आत्ममंथन करने की जरूरत है।।प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम समाज से कहा कि आप वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बनकर यह सब कर रहे हैं , अपने बच्चों की जिंदगी के बारे में तो सोचिए। पार्टी के बड़े नेता समझते हैं कि पार्टी पर वैसे ही आरोप लग रहा है कि वो दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म करना चाहती है। सबका साथ-सबका विकास नारे का अर्थ ही था कि पार्टी गरीब अमीर, शहर देहात, अगड़ा पिछड़ा सभी का विकास करना चाहती है। पार्टी मजदूर- किसान-व्यापारी-नौकरीपेशा-महिला-पुरुष आदि में भेदभाव नहीं करती है।
भारतीय जनता पार्टी विपक्ष के संविधान बचाओ नारे से जूझ रही है। इस बीच भाजपा अगर शुभेंदु के सुझाव पर अमल करे तो सिर्फ पार्टी का नुकसान ही हो सकता है। शायद यही कारण है कि शुभेंदु ने सबका साथ-सबका विकास के नारे के बारे में जो कुछ बोला था उसका खंडन करते हुए कहा है कि उनकी बातों का गलत अर्थ निकाला गया। शुभेंदु अधिकारी कुछ ही घंटों में वे अपने बयान से मुकर गए।उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि मेरे बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है। जब मैं अपने क्षेत्र में जाता हूं तो हिंदू हो या मुसलमान सभी को विकास योजनाओं का लाभ दिया जाता है लेकिन उसके बाद भी कहा जाता है कि भाजपा ‘हिंदू पार्टी’ है जबकि हमारी सरकार ने जितनी भी योजनाएं बनाई हैं वो सभी के लिए हैं। मैंने जो बात रखी है वो मेरा निजी पक्ष है। इसके साथ सरकार का कोई लेना-देना नहीं है।भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने आगे कहा कि यह नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था और यह अभी भी कायम है। उन्होंने कहा कि एक भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर मैंने बहुत दुख के साथ अपनी बात रखी कि भाजपा की राज्य इकाई को पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि उन लोगों के साथ जो भाजपा के साथ नहीं खड़े हैं। उन्होंने कहा कि यह एक राजनीतिक बयान है और इसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे से कोई लेना-देना नहीं है।
अशोक भाटिया,