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बूंदी में नीली क्रांति: मछली पालन ने बदली जलाशयों की तस्वीर, सरकारी खजाने में करोड़ों की बढ़ोतरी

बूंदी-स्मार्ट हलचल। इस वर्ष मानसून की अच्छी बारिश ने बूंदी जिले के जलाशयों को न केवल पानी से लबालब किया हैं, बल्कि उन्हें राजस्व और रोजगार का एक प्रमुख केंद्र भी बना दिया हैं। जिला मत्स्य विभाग द्वारा अपनाई गई वैज्ञानिक मछली पालन की पद्धतियों ने एक अनूठी सफलता की कहानी लिखी है, जहाँ पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक समृद्धि एक साथ कदम बढ़ा रहे हैं।

जिला मत्स्य विकास अधिकारी डॉ.लखन मीणा ने बताया कि जिले के कुल 39 प्रमुख जलाशयों में वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन किया जा रहा है, जिससे ये जलाशय स्थानीय मत्स्य कृषकों के लिए आजीविका का एक बड़ा साधन बन गए हैं। इस पहल से न केवल सैकड़ों लोगों को सीधा रोजगार मिला है, बल्कि राजस्थान सरकार के राजस्व में भी करोड़ों रुपये की वृद्धि हुई है।

उन्होंने बताया कि इस साल अच्छी बारिश के कारण सभी जलाशयों को मछली पालन के लिए ठेके (टेंडर) पर दे दिया गया है। उत्साहजनक बात यह है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार राजस्व प्राप्ति में एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ है। विभाग को उम्मीद है कि अनुकूल परिस्थितियों के चलते इस वर्ष मत्स्य उत्पादन भी पिछले साल के मुकाबले कहीं ज्यादा होगा, जिससे किसानों की आय में भी इजाफा होगा।
मछलियाँ बना रही हैं पानी को अमृत
यह केवल आर्थिक लाभ की कहानी नहीं हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का एक जीवंत उदाहरण भी हैं। वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि मछली पालन मीठे पानी के जलाशयों की गुणवत्ता में सुधार करता है। जलाशयों में जमा होने वाले अतिरिक्त पोषक तत्व अक्सर शैवाल (Phytoplankton) की बेतहाशा वृद्धि का कारण बनते हैं, जिससे पानी हरा और गंदा हो जाता हैं। इन पोषक तत्वों पर सूक्ष्म जीव (Zooplankton) पनपते हैं। रोहू, कतला और सिल्वर कार्प जैसी मछलियाँ इन सूक्ष्म जीवों और अतिरिक्त शैवाल को खाकर उनकी मात्रा को नियंत्रित करती हैं। मछलियों की इस भोजन प्रक्रिया से पानी में शैवाल की वृद्धि रुक जाती है, जिससे पानी अधिक साफ और पारदर्शी हो जाता हैं। यह जलाशय के संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ बनाता हैं। कुल मिलाकर, बूंदी का यह मॉडल साबित करता है कि नियंत्रित और वैज्ञानिक मछली पालन न केवल मछली उत्पादन और राजस्व बढ़ाता हैं, बल्कि हमारे बहुमूल्य जल स्रोतों को भी पुनर्जीवित करता हैं।

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