-राजेश कुमार मीना(झारेडा)
स्मार्ट हलचल/आज भारत माता के वीर सपूत सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती है। इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ। बीए ऑनर्स तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारत माता की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया सुभाष चंद बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। लेकिन अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण 3मई1939 को “फॉरवर्ड ब्लॉक” की स्थापना की थी।
3 सितंबर 1939 को मद्रास में सुभाष जी को ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध छिड़ने की सूचना मिली उन्होंने घोषणा की भारत के पास अपनी स्वतंत्रता का यह सुनहरा मौका है।उसे अपनी मुक्ति के लिए अभियान तेज करना चाहिए इसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज सरकार ने उनको कैद कर लिया सुभाष चंद्र बोस ने जेल में आमरण अनशन आरंभ कर दिया सुभाष जी तबियत खराब होने पर अंग्रेजों को उनको रिहा करना पड़ा पर अंग्रेज सरकार उनको घर पर नजरबंद करके घर के बाहर पुलिस का कड़ा पहरा बैठा दिया सुभाष जी उन सब को चकमा देकर “पठान मोहम्मद जियाउद्दीन” के भेष में घर से निकल गए कुछ दिन काबुल में रहकर “ऑरलैंडो मैजोन्टा” नामक व्यक्ति बनकर काबुल से रूस की राजधानी मास्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे।
6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी जी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिए उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगी।
आजाद हिंद फौज में करौली के वीर सपूत जिन्होने भारत माता की आजादी के समर मे अपना योगदान दिया गुडला पहाड़ी के अमर सिंह गुर्जर,पीपलपुरा के छित्तरसिंह तथा गुर्जरमल गुर्जर, गडी बांन्धुवा के मंगल सिंह गुर्जर, सुंदरपुरा के घमंडी राम गुर्जर, खारी कुआं(ताली) के जवान सिंह तथा राजपुर के किशन लाल गुर्जर आदि अनेक युवक अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इंडियन पीस आर्मी में नौकरी करते थे। इन सिपाहियों ने अंग्रेजी फौज की नौकरी छोड़कर 1942 में नेताजी के सिंगापुर कैंप में आजाद हिंद फौज मे सम्मलित हो गये।बर्मा तथा आसाम के मोर्चे पर अंग्रेजी सेनाओं के विरुद्ध लड़े तथा 1944 में रंगून में अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाए गये उन्हें कुछ समय बाद अंडमान और निकोबार जेल भेज दिया गया। देश की आजादी के बाद ही वे जेलों से छूट कर अपने घर लौट सके।
राजपुर गांव के स्वतंत्रता सेनानी किशन लाल गुर्जर 20 साल की उम्र में अंग्रेजों के शासन में गठित सेना “लाहौर टू पंजाब रेजीमेंट”में वर्ष 1941 में सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे यह भर्ती करौली डाक बंगले हरसुख विलास(निर्माण हरबंक्ष पाल द्वारा1834-35) में हुई थी इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इस”लाहौर टू पंजाब रेजीमेंट” को लड़ने के लिए रंगून भेजा वहां उन पर सुभाष जी के संघर्ष तथा उद्वोधन का गहरा प्रभाव पड़ा और वे इससे प्रेरित होकर अंग्रेजी सेना से बगावत कर भारत माता की आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस की “आजाद हिंद फौज” में सम्मिलित हो गए रंगून में लड़ाई के बाद वे म्यांमार,वर्मा तथा हांगकांग पहुचे आजाद हिंद फौज ने जब 15 फरवरी 1942 को हांगकांग में तिरंगा झंडा फहराया था तो वे उस में सम्मिलित हुए।1945 में वह वापस भारत आए तो अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया लगभग ढाई साल जेल में रहने के बाद ही वे 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय आजाद होकर वापस घर लौट सके इस आजादी के दिवानें स्वतंत्रता सेनानी का निधन जुलाई 2019 में हो गया। किशन लाल जी स्वतंत्रता के किस्से बडे चाब से सुनाते थे।
करौली