श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा, माता सती के घुटने की होती है पूजा
200 साल पुरानी नौबत, अखंड ज्योत और चांदी के बर्तनों से होती है आरती
अजय सिंह (चिंटू)
जोबनेर -स्मार्ट हलचल/जयपुर जिले के जोबनेर कस्बे में स्थित प्राचीन ज्वाला माता मंदिर में चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ के साथ ही श्रद्धालुओं का भारी सैलाब उमड़ पड़ा है। जयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर अनूठा शक्तिपीठ है, जहां माता सती के घुटने की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब उनके शरीर के अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे। जोबनेर में माता सती का घुटना गिरा था, और उसी स्थान पर यह मंदिर प्रतिष्ठित हुआ।
गुफा में प्रकट हुआ माता का घुटना, मूर्ति नहीं
अन्य मंदिरों की तरह यहां कोई मूर्ति स्थापित नहीं की गई है। मंदिर के पुजारी बनवारी लाल पाराशर के अनुसार, एक गुफा में देवी के घुटने के आकार की प्राकृतिक आकृति प्रकट हुई थी, जिसे ही देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। यह मंदिर न सिर्फ ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की परंपराएं इसे और भी विशेष बनाती हैं।
भक्तजन माता को सवा मीटर की चुनरी और 5 मीटर के कपड़े से बने लहंगे से श्रृंगारित करते हैं और 16 श्रृंगार करते हैं।
अखंड ज्योत और चांदी के बर्तनों में होती है आरती
मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योत प्रज्वलित है, जो मंदिर स्थापना से लेकर आज तक निरंतर जल रही है। यहां की खास परंपरा यह है कि माता की आरती चांदी के बर्तनों में ही की जाती है। देवी को केवटा, हार, छत्र और मुकुट पहनाया जाता है, जिससे उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है।
चैत्र नवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु उमड़े
नवरात्रि के पावन अवसर पर मंदिर में वार्षिक लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। भक्तजन सुबह तीन बजे से ही कतार में लगना शुरू कर देते हैं। इस दौरान मंदिर प्रांगण भजन-कीर्तन से गूंज उठता है, और माता के जयकारों से पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
इतिहास के अनुसार, यह मंदिर चौहान काल में संवत 1296 में निर्मित हुआ था। 1600 के आसपास जगमाल पुत्र खंगार, जो जोबनेर के प्रतापी शासक थे, उन्होंने इस मंदिर की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया। खंगारोत राजपूतों की कुलदेवी ज्वाला माता हैं, और वे विशेष रूप से इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।
मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यहां स्थित 200 वर्ष पुरानी नौबत (बड़ा नगाड़ा) है, जिसे सुबह-शाम आरती के समय बजाया जाता है। यह परंपरा मंदिर की प्राचीनता और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है।
नवविवाहित जोड़ों और मुंडन संस्कार के लिए विशेष स्थान
नवरात्रि के दौरान नवविवाहित जोड़े माता के दरबार में जात देने आते हैं। जिन परिवारों की कुलदेवी ज्वाला माता हैं, वे अपने छोटे बच्चों का मुंडन संस्कार भी यहीं करवाते हैं। माता के प्रति अपार श्रद्धा के कारण देशभर से भक्तजन यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पहुंचते हैं।
ब्रह्म और रुद्र स्वरूप में होती है पूजा
मंदिर में देवी की पूजा ब्रह्म (सात्विक) और रुद्र (तांत्रिक) दोनों स्वरूपों में की जाती है। सात्विक पूजा में खीर, पूरी, चावल, पुए-पकौड़ी और नारियल का भोग लगाया जाता है, जबकि रुद्र स्वरूप में मांस और मदिरा का भोग चढ़ाने की परंपरा है।
जोबनेर का ज्वाला माता मंदिर – श्रद्धा और आस्था का केंद्र
जो श्रद्धालु हिमाचल प्रदेश स्थित ज्वाला माता शक्तिपीठ नहीं जा पाते, वे जोबनेर स्थित इस मंदिर में आकर मां ज्वाला के दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं।
यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और शक्ति साधना का प्रमुख केंद्र भी है। नवरात्रि के अवसर पर यहां हर दिन विशेष पूजन, भजन-कीर्तन और भक्तों का मेला लगता है, जिससे यह स्थान एक दिव्य और अलौकिक ऊर्जा से भर जाता है।