Homeराष्ट्रीय19 फरवरी छत्रपति वीर शिवाजी जयंती पर विशेष-Chhatrapati Veer Shivaji Jayanti

19 फरवरी छत्रपति वीर शिवाजी जयंती पर विशेष-Chhatrapati Veer Shivaji Jayanti

19 फरवरी छत्रपति वीर शिवाजी जयंती पर विशेष-

भारतीय गणराज्य के महानायक छत्रपति वीर शिवाजी

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

स्मार्ट हलचल/भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में सभी लोग जानते हैं। कुछ लोग इन्हें मराठा गौरव कहते हैं, जबकि वे भारतीय गणराज्य के महानायक थे। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म सन् 19 फरवरी 1630 में मराठा परिवार में हुआ। कुछ लोग 1627 में उनका जन्म बताते हैं। उनका पूरा नाम शिवाजी भोंसले था। शिवाजी के पिता शाहजी थे और माता जीजाबाई के पुत्र थे। उनका जन्म पुणे के पास स्थित शिवनेरी का दुर्ग में हुआ था । राष्ट्र को विदेशी और आतताई राज्य-सत्ता से स्वाधीन करा सारे भारत में एक सार्वभौम स्वतंत्र शासन स्थापित करने का एक प्रयत्न स्वतंत्रता के अनन्य पुजारी वीर प्रवर शिवाजी महाराज ने भी किया था। इसी प्रकार उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता सेनानी स्वीकार किया जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुना में हुआ था। उनके पुत्र का नाम सम्भाजी था। सम्भाजी शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। शम्भा जी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। सम्भाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजाराम थे।

शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी नहीं बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आगबबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया।

तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं। शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित हो कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। लेकिन सुबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गई। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग 1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी।

शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरन्दर के क़िले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 24 अप्रैल, 1665 ई. को ‘व्रजगढ़’ के किले पर अधिकार कर लिया। पुरन्दर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी का अत्यन्त वीर सेनानायक ‘मुरार जी बाजी’ मारा गया। पुरन्दर के क़िले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून, 1665 ई. को ‘पुरन्दर की सन्धि’ सम्पन्न हुई। और फिर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सतारा और कोल्हापुर के जिले के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी। 1. पूना से लेकर सल्हर तक का क्षेत्र कोंकण का क्षेत्र, जिसमें उत्तरी कोंकण भी सम्मिलित था, पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था।2. उत्तरी कनारा तक दक्षिणी कोंकण का क्षेत्र अन्नाजी दत्तों के अधीन था।3. दक्षिणी देश के जिले, जिनमें सतारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र था, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे और दत्ताजी पंत के नियंत्रण में थे। इन तीन सूबों को पुनः परगनों और तालुकों में विभाजित किया गया था।

शिवाजी को 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में छत्रपति की उपाधि मिली। मराठों के लिए छत्रपति एक राजा या सम्राट के सबसे करीबी समकक्ष थे। यह शब्द दो अलग-अलग शब्दों से आता है छत्र का अर्थ है एक प्रकार का मुकुट जिसे देवताओं या बेहद पवित्र पुरुषों द्वारा पहना जाता है। पाटी का मतलब गुरु था। शिवाजी ने खुद को राजा या सम्राट बनने के लिए तैयार नहीं किया, बल्कि उन्होंने खुद को अपने लोगों का रक्षक माना। बल्कि मेरा मानना है कि उनके लोगों ने उन्हें इस विशेष उपाधि से सम्मानित किया था। शिवाजी हिन्दू धर्म के रक्षक थे। उन्होंने धर्म की रक्षा में बहुत बड़ा काम किया। जन सेवा की, जनता में मुगलों का भय समाप्त किया उससे पहले दक्कन के सल्तनतों को छकाया। धार्मिक रूप से पीड़ितों को सहायता दी। उनका मान सम्मान बचाया। देवी देवताओं के मंदिरों को नस्ट होने से बचाया। आततायी म्लेच्छों को कस्ट दिया। अतः उन्हें जनता ने शिव का अवतार माना और धर्म ध्वज रक्षक कहे गए है। इसलिए मराठा ही नही, समस्त भारत मे समस्त हिन्दू समाज हर जाति वर्ग का व्यक्ति उनको सम्मान देता है, देता रहेगा। आज भी महारास्ट्र में लोग उनके नाम का राजनीतिक लाभ लेते है और काम औरंगजेब के करते है। लेकिन जल्दी ही ऐसे लोग पहचान लिए जाते हैं।

शिवाजी का संघर्ष शक्तिशाली शोषक मुग़ल बादशाह औरंगजेब के विरुद्ध था। उन्होंने अपनी सेना को धर्म की रक्षा करना बालक, बड़े बूढे लोगों की, महिला की सहायता करने के आदेश दिये थे। जनता के धन की फसल की लूटपाट नही करने के आदेश थे। लेकिन लुटेरों को लूट सकते थे। इस लिए छापामार पद्धति अपनाकर मुग़लों को भागने को मजबूर कर दिया और स्वतंत्र हिन्दू सुराज की स्थापना का संकल्प पूरा किया।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
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