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मुख्यमंत्री योगी के लिए आसान नहीं उत्तर प्रदेश में विधानसभा का मानसून सत्र का सामना करना !

>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र में उत्तर प्रदेश है। भाजपा में जिस तरह से सियासी गुटबाजी दिख रही है और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने खुलकर मोर्चा खोल रखा है। इतना ही नहीं भाजपा के सहयोगी दल भी काफी मुखर हैं और अपनी ही सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव 37 सांसदों के साथ लखनऊ का मैदान छोड़कर दिल्ली के रण को चुन लिया है। इसके चलते उत्तरप्रदेश की सियासत में 29 जुलाई की तारीख काफी महत्वपूर्ण हो गई है, जिस पर अब सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
उत्तर प्रदेश का विधानसभा का मानसून सत्र 29 जुलाई से शुरू हो रहा है। इसी दिन सूबे के राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। अखिलेश यादव के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का 29 जुलाई से पहले चयन कर लेना है। ऐसे में विधानसभा सत्र से पहले मुख्यमंत्री योगी को पार्टी नेताओं के बीच जारी मनमुटाव को दूर करने के साथ-साथ सहयोगी दलों के विश्वास को भी जीतने की चुनौती होगी। इसीलिए मानसून सत्र पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद पहली बार सूबे में विधानसभा का सत्र शुरू होने जा रहा है। उत्तरप्रदेश में 80 में सबसे ज्यादा 37 सीटें जीतने के बाद से समाजवादी पार्टी के हौसले बुलंद है, जिसकी झलक लोकसभा में दिख रही है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के विधायक विधानसभा में भी खासा उत्साहित नजर आ सकते हैं और अब तो कांग्रेस भी उनके साथ है। इस तरह समाजवादी पार्टी सदन से सड़क तक आक्रमक रुख अपनाए रखने का प्लान बनाया है। चुनावी नतीजे जिस तरह भाजपा के खिलाफ आए हैं, उसके बाद से ही बैकफुट पर है। ऐसे में विधानसभा में भाजपा के लिए विपक्षी दलों के मुद्दों का सामना करना आसान नहीं होगा। इस बार का विधानसभा सदन की कार्यवाही पर सभी की निगाहें होंगी और विपक्षी तेवर देखने वाला होगा। बिजली कटौती से लेकर कांवड़ रूट पर नेम प्लेट का मामला चल रहा है। इसके अलावा ओबीसी आरक्षण भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
मानसून सत्र में विपक्ष जहां सरकार को घेरने की पूरी तैयारी करके बैठा है तो भाजपा के सहयोगी दल भी अलग कशमकश में हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा नेताओं में खींचतान जारी है। केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री योगी में मनमुटाव की बातें हो रही है। इसके अलावा भाजपा सहयोगी दल अलग-अलग मुद्दों पर भाजपा और योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, लेकिन सत्र शुरू होने से पहले तक यह नहीं खत्म हुआ तो विधानसभा सदन में विपक्ष हावी हो जाएगा। ऐसे में भाजपा और सहयोगी दलों के बीच सियासी रिश्ते सुधारने का जिम्मा मुख्यमंत्री योगी के कंधों पर है, क्योंकि सरकार के वो ही मुखिया हैं। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी सबसे अहम हो जाती है।
लोकसभा चुनाव के बाद ही अपना दल (एस) की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर नौकरियों में दलित और ओबीसी आरक्षण में भेदभाव का मामला उठाया था। निषाद पार्टी के अध्यक्ष और मंत्री डॉ. संजय निषाद ने भी सरकार को चेताया था कि जिन भी सरकारों ने आरक्षित वर्गों की उपेक्षा की उनका नुकसान ही हुआ। इसके अलावा बुलडोजर नीति पर भी सवाल खड़े किए थे। ऐसे ही बातें ओम प्रकाश राजभर ने भी किया था तो आरलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने कांवड़ यात्रा वाले मार्ग वाली दुकानों में दुकानदारों के नाम लिखे जाने संबंधी आदेश की आलोचना करते हुए वापस लिए जाने की मांग की थी। इस तरह से सहयोगी दलों के सवालों को विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले साधकर रखने की चुनौती है।
मुख्यमंत्री योगी के लिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी चुनौती बने हुए है । केशव प्रसाद मौर्य ने बीते दिनों प्रदेश कार्यसमिति में बयान दिया था कि संगठन सरकार से बड़ा था, बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा। सरकार और संगठन के बीच चल रही खींचतान का संदेश इन शब्दों ने दिया और फिर उसके बाद गत दिवस नई दिल्ली में केशव की पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुलाकात ने उत्तर प्रदेश में बड़े बदलाव की अटकलों को हवा दे दी।
यह सिर्फ इसलिए, क्योंकि न तो उपमुख्यमंत्री के यह शब्द नए हैं और न ही उत्तरप्रदेश में गुटबाजी नई है, लेकिन अन्य प्राथमिकताओं को लेकर चल रहे केंद्रीय नेतृत्व का जोर फिलहाल समन्वय पर है। हालांकि, जरूरी हुआ तो गुजरात की तर्ज पर सरकार और संगठन की समान सर्जरी के रूप में सामने आ सकता है। उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की प्रचंड बहुमत के साथ जीत हुई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाए गए तो कुछ समय तक सरकार चलने के बाद से ही सरकार में गुट आकार लेने लगे थे ।
सरकार में खुद को उपेक्षित महसूस करने वाले मंत्री, विधायक और संगठन पदाधिकारियों के पैरोकार तब भी उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य बताए जाने लगे थे । ऐसे कई घटनाक्रम भी हुए जब बेलगाम नौकरशाही जनप्रतिनिधियों पर भारी पड़ी। उसी का परिणाम था कि दिसंबर, 2019 में लोनी विधायक नंद किशोर गुर्जर का समर्थन करते हुए सरकार के 100 से अधिक विधायक अपनी ही सरकार के विरुद्ध धरने पर बैठ गए थे।
तब इन मामलों को हाईकमान के दखल से दबाया गया और 2019 के लोकसभा चुनाव की जीत ने सब छिपा दिया। फिर बारी 2022 के विधानसभा चुनाव की थी, लेकिन सरकार में चल रही गुटबाजी की चर्चा जोर पकड़ रही थी, तब एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आई। मुख्यमंत्री योगी जून, 2021 में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सरकारी आवास पर पहुंच कर केशव ने उन्हें मिठाई खिलाई।
बताया जाता है कि चुनाव में एकजुटता का संदेश देने के लिए यह मिलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कराया था। फिर 2022 में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी और गुटबाजी का घाव फिर दब गया। हाईकमान ने अगड़ा-पिछड़ा का संतुलन साधते हुए सिराथू से विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद केशव को दोबारा उपमुख्यमंत्री बनाया। उनके साथ ब्रजेश पाठक को भी उपमुख्यमंत्री बनाया, लेकिन सरकार में गुटों का यह संघर्ष फिर भी चलता ही रहा। अब लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को 29 सीटों का नुकसान हो गया तो यह घाव फिर सामने है। चुनाव परिणाम के बाद लगभग एक दर्जन विधायक सरकार में अपनी उपेक्षा की पीड़ा व्यक्त कर चुके हैं। हारे हुए प्रत्याशी आरोप लगा चुके हैं कि बेलगाम अफसरों को सत्ता का संरक्षण है।
इधर, सरकार बनाम संगठन के बयानों के बाद जेपी नड्डा से केशव और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की मुलाकात को एक धड़ा इस रूप में प्रचारित कर रहा है कि उत्तरप्रदेश में बड़ा बदलाव हो सकता है। इशारा, मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि हाईकमान ने नेताओं को निर्देश दिया है कि ऐसी बयानबाजी न करें। उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़े एक राष्ट्रीय पदाधिकारी का कहना है कि किसी एक धड़े की मुराद पूरी कर देना गुटबाजी का समाधान नहीं है।
वैसे भी नेतृत्व अभी बजट से राज्य और गठबंधन के संतुलन, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव को प्राथमिकता पर लेकर चल रहा है। उत्तरप्रदेश में अभी समन्वय का रास्ता तलाशते हुए दस सीटों के उपचुनाव कराए जाएंगे। फिर भी आवश्यकता पड़ने पर सरकार और संगठन में वैसी ही सर्जरी की जाएगी, जैसी कि 2022 में बड़े बदलावों के साथ गुजरात में किया गया था। पर सबसे पहले जरुरी है उत्तरप्रदेश का मानसून सत्र सुख से निपट जाए ।

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