♦चीन अपनी बेजा हरकतों से बाज नहीं आने वाला
अपनी विस्तारवादी नीति से हड़पना चाहता है पड़ोसी देशों की जमीन
> अशोक भाटिया
स्मार्ट हलचल/अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा पेश करने की चीन की हालिया कोशिशों के बीच बीजिंग ने भारतीय राज्य में विभिन्न स्थानों के 30 नए नामों की चौथी सूची जारी की है। चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का नाम बदलने की कवायद को भारत खारिज करता रहा है। उसका कहना है कि यह राज्य देश का अभिन्न अंग है और ‘‘काल्पनिक’’ नाम रखने से इस वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा। सरकारी ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने रविवार को बताया कि चीनी नागरिक मामलों के मंत्रालय ने ‘जंगनान’ में मानकीकृत भौगोलिक नामों की चौथी सूची जारी की। चीन अरुणाचल प्रदेश को ‘जंगनान’ कहता है और दक्षिण तिब्बत के हिस्से के रूप में इस राज्य पर अपना दावा करता है।
अरुणाचल प्रदेश पर दावों को लेकर चीन की हालिया बयानबाजी उस समय शुरू हुई जब उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राज्य के दौरे को लेकर भारत के साथ राजनयिक विरोध दर्ज कराया था। इस दौरे में मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फुट की ऊंचाई पर बनी सेला सुरंग को राष्ट्र को समर्पित किया था। चीनी विदेश और रक्षा मंत्रालयों ने क्षेत्र पर चीन का दावा पेश करते हुए कई बयान जारी किए थे। चीन अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। चीन अरुणाचल प्रदेश के लिए ‘जंगनान’ नाम का इस्तेमाल करता है।चीन ने जिन 30 जगहों के नाम बदले हैं, उनमें 12 पहाड़, 4 नदियां, 1 झील, 1 पहाड़ी दर्रा, 11 रिहायशी इलाके और जमीन का एक टुकड़ा शामिल है।इन नामों को चीन अब अपने आधिकारिक दस्तावेजों और नक्शों में इस्तेमाल करेगा। ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 मई से ये इन नामों का इस्तेमाल किया जाएगा।
ये पहली बार नहीं है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश की जगहों के नाम बदले हैं। साल 2017 में चीन ने अरुणाचल की 6 जगहों के नाम जारी किए थे।उसके बाद उसने 2021 में दूसरी लिस्ट जारी की, जिसमें 15 जगहों के नाम बदले गए थे। पिछले साल अप्रैल में चीन ने 11 जगहों के नाम बदले थे। तब चीन ने अरुणाचल के 4 रिहायशी इलाकों, 5 पहाड़ी इलाकों और 2 नदियों के नाम बदले थे।भारत हमेशा इसे खारिज करता रहा है। नई लिस्ट को लेकर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, ‘अगर आज मैं आपके घर का नाम बदल दूं, तो क्या वो मेरा हो जाएगा? अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। नाम बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता।’
बताया जाता है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर पर अपना दावा करता है। जबकि, भारत साफ कर चुका है कि अरुणाचल उसका हिस्सा था, है और रहेगा।चीन सिर्फ अरुणाचल प्रदेश की जगहों के नाम ही नहीं बदलता है, बल्कि और भी कई उकसाने वाली हरकतें करता है। चीन अक्सर अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों, अफसरों को वीजा देने से मना कर देता है। वो कहता है कि अरुणाचल उसका ही हिस्सा है, इसलिए चीन के वीजा की जरूरत नहीं है।
पिछले साल वीजा को लेकर भारत और चीन के बीच तनाव भी काफी बढ़ गया था। दरअसल, सितंबर 2023 में चीन के हेंगझोउ में एशियन गेम्स हुए थे। इसमें भारतीय वुशु टीम की तीन महिला खिलाड़ियों- नेमान वांग्सु, ओनिलु टेगा और मेपुंग लाम्गु को चीन ने वीजा देने से मना कर दिया था। ये तीनों ही खिलाड़ी अरुणाचल प्रदेश की थीं। इस कारण ये तीनों एशियन गेम्स में हिस्सा नहीं ले पाई थीं। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी।
इससे पहले जुलाई में भी चीन ने इन तीनों खिलाड़ियों को वीजा देने से मना कर दिया था। बाद में भारत की आपत्ति के बाद चीन ने इन्हें ‘स्टेपल वीजा’ जारी किया था। हालांकि, भारत ने इस पर भी आपत्ति जताई और फिर पूरी टीम ही चीन नहीं गई। जुलाई 2023 में चीन के चेंगडू में यूनिवर्सिटी गेम्स हुए थे।
इससे पहले 2016 में भी चीन ने भारतीय बैंडमिंटन टीम के मैनेजर बेमांग टैगो को वीजा नहीं दिया था। 2011 में भी चीन 45 सदस्यों की भारतीय कराटे टीम को एशियन चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने के लिए कुआंगझोउ जाना था। सभी खिलाड़ियों को पहले वीजा मिल गए थे। लेकिन टीम के पांच सदस्यों को वीजा नहीं मिला था। ये सभी अरुणाचल के थे। आखिर में इन पांचों को दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर चीन ने स्टेपल वीजा जारी किया था।
बताया जाता है कि चीन ये सब इसलिए करता है, ताकि दुनिया को बता सके कि उसकी सीमा से सटे इलाके विवादित हैं। और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा मजबूत कर सके।जहां तक नाम बदलने की बात है, तो इसके पीछे चीन की मंशा ये है कि वो दुनिया को दिखाना चाहता है कि अरुणाचल की जगहों का नाम रखने और बदलने का हक उसका है।2017 में चीन ने जब पहली बार अरुणाचल की 6 जगहों के नाम बदले थे, तब इसे दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के विरोध के रूप में देखा गया था। लेकिन इसके बाद से चीन अब तक चार बार अरुणाचल की जगहों के नाम बदल चुका है।
चीन ने पिछले साल अगस्त में अपना नया नक्शा जारी किया था। इस नक्शे में उसने अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताया था। रही बात वीजा न देने की तो उसके पीछे भी चीन का अपना अलग मकसद है। दरअसल, चीन अरुणाचल के लोगों को भारत का नागरिक नहीं मानता है। उसका कहना है कि अरुणाचल चीन का हिस्सा है, इसलिए वहां के लोगों को चीन आने के लिए वीजा की जरूरत नहीं है।
जानकार मानते हैं कि चीन इसलिए भी स्टेपल वीजा जारी करता है, क्योंकि ये सिर्फ एक कागजी दस्तावेज है। अगर वो वीजा जारी कर देगा तो इसका मतलब होगा कि अरुणाचल पर भारत के दावे को उसने मान लिया।
गौरतलब है कि पिछले महीने 9 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था। उन्होंने वहां कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया था, जिसमें 13,700 फीट की ऊंचाई पर बनी सेला टनल भी शामिल थी।पीएम मोदी के इस दौरे पर चीन ने आपत्ति जताई थी। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा था कि इससे भारत-चीन का सीमा विवाद और बढ़ेगा। वेनबिन ने कहा था कि चीन के जंगनान को डेवलप करने का भारत को कोई अधिकार नहीं है।चीन अरुणाचल में भारतीय नेताओं के दौरों पर आपत्ति जताता रहा है। इससे पहले फरवरी 2019 में भी जब पीएम मोदी अरुणाचल गए थे, तब भी चीन ने विरोध जताया था। तब चीन ने कहा था कि अरुणाचल विवादित इलाका है और यहां किसी भी तरह की गतिविधि से स्थिति जटिल हो सकती है।
अक्टूबर 2021 में जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू अरुणाचल दौरे पर थे, तब भी चीन को दिक्कत हुई थी। तब चीन ने कहा था कि चीन अवैध रूप से गठित अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता और वहां वेंकैया नायडू के दौरे का विरोध करता है।तब भारत ने भी चीन को जवाब देते हुए कहा था कि भारतीय नेता का भारतीय राज्य के दौरे पर आपत्ति करना, भारतीय नागरिकों के तर्क और समझ से परे है।
अगर भारत अरुणाचल प्रदेश में कुछ काम करे तो चीन इस पर आपत्ति जताता है। लेकिन वो खुद अरुणाचल से सटे अपने सीमाई इलाकों में तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है।सितंबर 2021 में अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने अरुणाचल से सटी सीमा के पास पूरा का पूरा गांव बसा दिया है। इतना ही नहीं, चीन ने यहां मिलिट्री पोस्ट भी बना रखी है। चीन ने ये गांव उस जगह बसाया था, जहां उसने 1959 में अवैध कब्जा कर लिया था।
चीन अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र के हिस्से के रूप में मान्यता देने वाले अमेरिका के बयान से भी नाराज है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने नौ मार्च को कहा था, अमेरिका अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है और हम वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार सैन्य या असैन्य घुसपैठ या अतिक्रमण के जरिए क्षेत्रीय दावे करने के किसी भी एकतरफा प्रयास का दृढ़ता से विरोध करते हैं।’’ चीन के विदेश और रक्षा मंत्रालय ने अमेरिकी बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि चीन-भारत सीमा मुद्दा दोनों देशों के बीच का मामला है और इसका अमेरिका से कोई लेना-देना नहीं है। भारत और चीन के बीच मैकमोहन लाइन को अंतर्राष्ट्रीय सीमा माना जाता है। पूरी दुनिया भी यही मानती है। लेकिन चीन इसे नहीं मानता। भारत और चीन के बीच 1914 में मैकमोहन लाइन तय हुई थी। इसमें अरुणाचल को भारत का हिस्सा ही बताया गया था।
चीन कहता तो है कि वो सीमा विवाद का समाधान चाहता है। इसका दिखावा भी करता है। लेकिन इस पर अमल नहीं करता।असल में चीन खुद भारत के साथ सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता। चीन के अपने सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ सीमा विवाद है। चीन की सीमा 22 हज़ार 800 किलोमीटर लंबी है। ज़मीन पर उसके पड़ोसी हैं – भारत, म्यांमार, अफगानिस्तान, भूटान, रूस, लाओस, मंगोलिया, नेपाल, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उत्तर कोरिया, तजाकिस्तान और वियतनाम। कहने के लिए चीन की सीमा पाकिस्तान के साथ भी लगती है, लेकिन दरअसल वह अक्साई चिन है, अविभाजित जम्मू-कश्मीर का हिस्सा, जिस पर पाकिस्तान ने जबरन क़ब्ज़ा किया और बाद में ड्रैगन को ख़ुश करने के लिए उसकी नज़र कर दिया। नेपाल, भूटान और लाओस के कई हिस्सों पर चीन अपना दावा जताता है। भूटान के साथ तो उसने करीब तीन दशक से शांत पड़ा सीमा विवाद का मुद्दा उठा दिया। इसी तरह, लाओस के बड़े हिस्से पर वह इस आधार पर हक़ जमाता है कि प्राचीन युआन साम्राज्य यहां तक फैला था।
– म्यांमार और चीन के बीच सीमाओं को लेकर 1960 में समझौता हुआ था। म्यांमार का कहना है कि चीन उस समझौते का पालन नहीं करता। सीमा का उल्लंघन करता है। म्यांमार के भीतर कई उग्रवादी समूह हैं, जिन्हें बीजिंग का समर्थन बताया जाता है। उदाहरण के लिए, चीन का भूटान के साथ सीमा विवाद भी है। भूटान के साथ चीन पिछले साल ‘थ्री स्टेप रोडमैप’ पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका मकसद जल्द से जल्द सीमा विवाद सुलझाना है। नेपाल के साथ भी सीमा विवाद पर तेजी से चर्चा जारी है। म्यांमार के साथ चीन मैकमोहन लाइन को ही मानता है। जबकि, भारत के साथ किसी समाधान की बजाय सिर्फ टकराव ही किया है।
चीन का जमीन हड़पने का रवैया इस बात से भी स्पष्ट होता है कि ताइवान में बुधवार की सुबह भूकंप के खतरनाक झटके लगे हैं। लेकिन इस दौरान भी चीन अपनी आक्रामकता दिखाने में पीछे नहीं रहा है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसकी सीमा के करीब 30 से ज्यादा चीनी युद्धक विमान और 9 नौसेना के जहाज का पता चला है। भूकंप आने के एक घंटे बाद ताइवान ने यह दावा किया । 24 घंटे की अवधि में द्वीप के करीब इतने विमान इस साल के सबसे ज्यादा हैं। चीन ताइवान को अपना क्षेत्र बताता है। चीन कहता रहा है कि वह ताइवान को अपने नियंत्रण में ले लेगा। भले ही इसके लिए बल प्रयोग क्यों न करना पड़े।