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भारत में आयकर दरों की अंतरराष्ट्रीय तुलना: वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में एक विश्लेषण

— संजय अग्रवाला, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल

स्मार्ट हलचल/भारत में आयकर दरों की तुलना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण विषय है, विशेष रूप से जब हम वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में अपने टैक्स संरचना को देखते हैं। आयकर प्रणाली देशों के आर्थिक विकास, कर वसूली क्षमता और नागरिकों पर कर भार का निर्धारण करती है। भारत में आयकर प्रणाली प्रगतिशील है, जिसका अर्थ है कि अधिक आय अर्जित करने वाले व्यक्तियों पर अधिक कर दरें लागू होती हैं। व्यक्तिगत आयकर के लिए तीन प्रमुख श्रेणियां हैं—कम आय, मध्यम आय और उच्च आय। 2024-25 के वित्तीय वर्ष के लिए, भारत में आयकर की दरें 2.5 लाख रुपये तक की आय के लिए शून्य हैं। इसके बाद, 2.5 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की आय पर 5% कर, 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की आय पर 20% कर और 10 लाख रुपये से अधिक की आय पर 30% कर दर लागू होती है। इसके अलावा, एक विशेष छूट और टैक्स क्रेडिट भी उपलब्ध होते हैं, जैसे 80C के तहत निवेश और चिकित्सा खर्चों पर छूट। अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से, भारत की आयकर दरों की तुलना कई देशों से की जा सकती है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में आयकर दरें प्रगतिशील हैं, लेकिन इनकी संरचना भारत से थोड़ी भिन्न है। अमेरिका में, 2024 के लिए, 10% से लेकर 37% तक की दरें हैं, जो आय के स्तर के अनुसार लागू होती हैं। हालांकि, अमेरिकी करदाताओं के पास टैक्स क्रेडिट और डिडक्शंस की एक लंबी सूची है, जिससे उनकी करदाताओं की वास्तविक कर दर को कम किया जा सकता है। इसी तरह, यूरोपीय देशों में भी उच्च आय वर्ग के लिए प्रगतिशील आयकर दरें होती हैं, लेकिन उनमें से कई देशों में अधिकतम कर दरें 45% से 55% के बीच होती हैं। उदाहरण के लिए, स्वीडन में उच्चतम व्यक्तिगत आयकर दर लगभग 57% है, जो दुनिया में सबसे अधिक में से एक है।
भारत की आयकर दरों की तुलना अन्य उभरते हुए देशों से की जाए तो यह कहीं न कहीं अधिक प्रतिस्पर्धी नजर आती है। चीन, जो एक उभरती हुई महाशक्ति है, वहां भी प्रगतिशील आयकर दरें हैं, लेकिन उसकी सबसे ऊंची दर 45% है, जो भारत के उच्चतम 30% से अधिक है। इसी तरह, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी टैक्स दरें भारत के मुकाबले उच्च हैं। भारत की दरें इसलिए अधिक आकर्षक प्रतीत होती हैं क्योंकि देश का कर आधार विशाल है और यहां कई तरह की टैक्स राहतों का भी प्रावधान है। भारत में आयकर की दरों का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यहां करदाताओं को कई प्रकार की छूटों और विशेष प्रावधानों का लाभ मिलता है, जैसे कि 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक की छूट, 80D के तहत स्वास्थ्य बीमा के लिए छूट, और 80E के तहत शिक्षा ऋण पर ब्याज पर छूट। ये राहतें विशेष रूप से मिडल क्लास और उच्च मध्यवर्गीय परिवारों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं और इसे ध्यान में रखते हुए, भारत के करदाताओं को अधिक लाभ मिलता है। हालांकि, कर प्रणाली में सुधार की आवश्यकता बनी रहती है, क्योंकि आयकर की प्रक्रिया और टैक्स की दरों में जटिलता बनी रहती है।
भारत में आयकर प्रणाली की प्रमुख विशेषता यह भी है कि सरकार ने हाल के वर्षों में अपनी नीति को सरल बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। उदाहरण के लिए, 2020 में, सरकार ने “नई कर व्यवस्था” पेश की, जिसके तहत आयकर दरों को कम किया गया था, लेकिन इस पर टैक्स छूट और डिडक्शंस का लाभ नहीं लिया जा सकता था। इससे करदाताओं को एक विकल्प मिला था, जिससे उन्हें अपनी कर-देने की स्थिति के आधार पर फैसला करने की स्वतंत्रता मिली। वैश्विक स्तर पर, देशों के आयकर दरों के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, यह देखा गया है कि विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में आयकर दरें अधिक होती हैं। हालांकि, विकसित देशों में आयकर दरों का उच्च होना उनके समृद्ध और समग्र अर्थव्यवस्था के निर्माण में मदद करता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए, कम आयकर दरें निवेश को बढ़ावा देने और व्यवसायिक क्षेत्र को सशक्त बनाने का एक बड़ा अवसर प्रदान करती हैं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयकर की दरों की तुलना में, भारत का टैक्स ढांचा कुछ हद तक जटिल माना जाता है। इसके कारण, करदाताओं के लिए कर अदायगी में पारदर्शिता और सटीकता का अभाव होता है। वहीं, अधिक विकसित देशों में, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में, आयकर प्रणालियों को बहुत अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाया गया है, जिससे करदाताओं को अपनी स्थिति को समझने में आसानी होती है।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय आयकर दरों को लेकर कुछ आलोचनाएं भी होती हैं। विशेष रूप से उच्चतम कर दरों को लेकर यह कहा जाता है कि वे व्यवसायों और व्यक्तिगत निवेशों के लिए हतोत्साहित करने वाले हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, भारतीय कर प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, ताकि यह और अधिक सरल और पारदर्शी हो सके। इस संदर्भ में, डिजिटल कराधान प्रणाली का उपयोग बढ़ाना और कर संग्रहण प्रणाली को बेहतर बनाना आवश्यक है। अंततः, भारत में आयकर दरें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलनात्मक रूप से उचित और प्रतिस्पर्धी हैं, लेकिन अभी भी कुछ सुधार की आवश्यकता है, खासकर करदाताओं के लिए सुगम और पारदर्शी प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के संदर्भ में। अगर भारत अपनी कर नीति में सुधार करता है और नई प्रौद्योगिकियों का अधिकतम लाभ उठाता है, तो यह निश्चित रूप से वैश्विक करदाताओं को आकर्षित करने में सक्षम होगा।

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