स्मार्ट हलचल/भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी दिनांक 7 सितंबर शनिवार को श्री गणेश चतुर्थी का पावन पर्व आ रहा है।इस पर्व को हमारे देश में अनेक स्थानों पर सनातन धर्म प्रेमियों द्वारा अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाता है और मनाना भी चाहिये क्योंकि हमारे सभी देवी देवताओं में प्रथम पूज्य जो है। लेकिन कुछ बातों (सावधानियों का) का ध्यान अवश्य रखना चाहिये।
जैसे हम जिनका पूजन कर रहे हैं क्या वो वैदिक अथवा पौराणिक पद्धति से कर रहे हैं?
क्या जिस विग्रह को हम स्थापित कर रहे हैं वो शास्त्र सम्मत है?
क्या इनकी पूजा सामग्री जो हम अपने सामर्थ्यानुसार लाए हैं वो शुद्ध है तथा इन्हें प्रिय है?
क्या हम जिनकी आराधना कर रहे हैं उनके भी कोई आराध्य या आराध्या है?
यदि है तो क्या हमारे द्वारा उनका यथायोग्य सम्मान हो रहा है, कहीं हमारे द्वारा उनका अनादर तो नहीं हो रहा है?
यदि हमारे द्वारा उनके इष्ट का अनादर हो रहा है तो यह उत्सव मनाने का कोई औचित्य नहीं है।
पूजन में दो बातें विशेष महत्व रखती है –
१ विधि
२ निषेध
संपूर्ण विधि का पालन करना सामान्येन आम व्यक्ति के बस में नहीं है। क्योंकि संपूर्ण सामग्री अनुपलब्ध होना अथवा उसको लाने के लिए असमर्थ होना प्रमुख कारण होता है इसलिए इसके लिए हमारे शास्त्रों में मानसिक पूजा का विधान भी दिया गया है और वो सर्वश्रेष्ठ भी है लेकिन शर्त है कि हम अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रयास करें फिर भी व्यवस्था नहीं बन पाए तब तो हम मानसोपचार करके भी उत्तम फल प्राप्त कर सकते हैं लेकिन जहां निषेध का विषय है वहां हमे सामर्थ्यवान होना आवश्यक नहीं है वहां केवल जानकारी की आवश्यकता है।
सबसे पहले तो हम जो पुजा करते हैं वैदिक या पौराणिक पद्धति से करते हैं तो सर्वप्रथम उपलब्ध सामग्री का शुद्ध होना आवश्यक है यदि वह अशुद्ध है तो हमें लाभ के स्थान पर हानी हीं होगी और पुजा पद्धति भी आधी अधुरी न हो जो कि प्रायः देखा जाता है कि ऐसे उत्सवों में लाखों रुपए खर्च कर दिये जाते हैं लेकिन उसमें किसी विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर उत्सव पर्यंत उन्हें नियुक्त नहीं किया जाता है जबकि प्रतिष्ठित मूर्ति की अधिक नहीं तो सुबह शाम दो समय विधिवत पूजन अर्चन आरती भोग अवश्य होना चाहिये।
जो विग्रह (मूर्ति ) हम स्थापित कर रहे हैं वो पता नहीं किन सामग्रियों से बनी है तो उसके लिए आजकल अनेक गोशालाओं में गाय के गोबर से मूर्तियां बनाई जा रही है वो लाकर स्थापित करें जिससे गोशाला में मदद भी हो जाएगी और गोमय मूर्ति भी प्राप्त हो जाएगी जो लाभदायक है।इसकी विशेषता यह भी है कि गोबर में गणेश जी और गौरी का पूजन बिना प्रतिष्ठा के भी हो जाता है और जिस जलाशय में विसर्जन किया जाएगा वहां के जल को दुषित तो नहीं करेगा अपितु उसका शोधन और कर देगा इसलिए प्रयास करें श्री गणेश जी की मूर्ति गोमय हों।आपको स्मरण हो कि पहले विवाहादी कार्यों में गणेश गौरी गोबर के हीं बनाए जाते थे यह प्रचलन आज भी अनेक स्थानों पर है।
अब पुजन सामग्री की बात करें तो बाजार में अधिकतर दुध दही घी या तो सिंथेटिक है या जर्सी होलिस्टेन भैंस इत्यादि का है और अनेक बार अखबारों टीवी चैनल पर नकली घी के कारखानों पर छापेमारी के समाचार देखने पड़ने को मिले हैं जिसमें चर्बी का मिश्रण तक होता है तो बताइए क्या आपके गणेश जी ऐसे दुषित पदार्थो से प्रसन्न होंगे? उत्तर होगा कदापि नहीं बल्कि उनके कोप भाजन का शिकार होना पड़ता है। इसके लिए जिनके पास भारतीय गोवंश है उनसे दुध दही घी इत्यादि लाकर पूजन करें। हमारे ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है कि पूजन हवन में दुध दही घी गोबर गोमूत्र इत्यादि गाय का हीं होना चाहिये और गाय देशी होना चाहिये।
गायों के विषय में लिखा है:-
स्वाहाकार वषट्कारो गोषु नित्यं प्रतिष्ठितौ।
गावो यज्ञस्य नैत्र्यो वै तथा यज्ञस्य ता मुखम्।।
अर्थात – स्वाहा और वषट्कार सदा गौओं में ही प्रतिष्ठित होते हैं(यहां भगवान श्री वेदव्यास जी जोर देकर कह रहे हैं कि स्वाहा और वषट्कार गौओं में ही प्रतिष्ठित होते हैं मतलब बिना गाय के ये कार्य संपन्न नहीं होते हैं) गौएं हीं (यहां पुनः ही लिखकर गाय के लिए जोर दिया है) यज्ञ का संचालन करने वाली तथा उसका मुख हैं। इसलिए गो गव्य से हीं पूजन करें।
आपको यह भी पता होना चाहिये कि गणेश जी के प्रथम पूज्य होने में भी एक कारण उनकी गोभक्ति है। जो गणेश जी स्वयं गो भक्त हैं उनकी आराध्या गोमाता पर संकट है और हम चुपचाप बैठे हैं तो क्या वो प्रसन्न होंगे? उत्तर होगा नहीं तो इसके लिये क्या करें? समिति के सभी सदस्य मिलकर यह निर्णय लें कि इस बार जो भी राशि एकत्रित होगी उसका दशांश (दस प्रतिशत) हम अपने किसी भी निकटस्थ गोशाला में सेवा प्रदान करेंगे इसके लिये चाहे हमें सजावट आदि अन्य कार्यों में कटौती करनी पड़ जाए। यदि आप ऐसा करते हैं तो निश्चित मानिये आपके द्वारा श्री गणेश जी के पूजन अर्चन में जाने अनजाने जो भी न्यूनाधिकता रही उसको गोमाता अपनी कृपा से पूर्ण कर देगी।