भीलवाड़ा । होलिका दहन के दसवें दिन व्रत-पूजन कर महिलाओं ने सुख-समृद्धि के साथ पारिवारिक दशा सुधारने की कामना दशा माता से की। माता पार्वती की स्वरूप दशा माता के पूजन का यह अवसर कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर सोमवार को देखने को मिला। सोलह शृंगार कर सुहागिन महिलाएं सुबह से उन मंदिरों में जुट गई थी, जहां पीपल का पेड़ है। सामूहिक रूप से राजा नल और रानी दमियंती की कथा भी सुनीं । महिलाएं दशा माता के लिए बेसन के गहने भी बनाती हैं। पीपल, बरगद और नीम के पेड़ों की त्रिवेणी के पूजन का भी विधान है। दशमी पर व्रतधारी सुबह पूजा का संकल्प लेकर पीपल को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर पूजन करती हैं। कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठ लगाई जाती हैं। फिर महिलाएं पीपल के पेड़ के चारों ओर दस बार घूमती हैं और उसके तने पर पवित्र सूती धागे को घुमाती हैं। महिलाएं राजा नल और उनकी रानी दमयंती की कथा भी पढ़ती हैं। इस दिन व्रत रखकर विवाहित महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। एक बार व्रत करने के बाद उसे जीवनभर जारी रखना चाहिए। पूजा के बाद घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर हल्दी और कुमकुम से रेखाचित्र बनाए जाते हैं। इस प्रकार, महिलाएं अपने घर को बुराई और नकारात्मकता से बचाने के लिए देवी-देवताओं से प्रार्थना करती हैं। दशा माता नारी शक्ति का एक रूप है। ऊँट पर आरूढ़, देवी मां के इस रूप को चार हाथों से दर्शाया गया है। वह क्रमशः ऊपरी दाएं और बाएं हाथ में तलवार और त्रिशूल रखती है। और निचले दाएं और बाएं हाथों में उनके पास कमल और कवच है।