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राष्ट्रीय आदिवासी एकता मंच ने दिल्ली राज्य में आदिवासी समाज की उठाई आरक्षण की मांग

दिल्ली राज्य में लगभग 18 लाख आदिवासियों को मिले जनजाति का दर्जा

राष्ट्रीय स्तर पर उठाई जाएगी दिल्ली राज्य में एसटी आरक्षण की मांग

✍️राकेश मीणा

भीलवाड़ा@स्मार्ट हलचल|दिल्ली राज्य में जनजाति समाज को आरक्षण की मांग को लेकर राष्ट्रीय आदिवासी एकता मंच ने देश की माननीय राष्ट्रपति एवं माननीय प्रधानमंत्री जी दिल्ली की मुख्यमंत्री जी गृहमंत्री जी को ज्ञापन सौंपा है ज्ञापन में बताया कि दिल्ली राज्य में जनजाति समाज समाज की लगभग 18 लाख जनसंख्या दिल्ली में निवास करती है दिल्ली राज्य में जनजाति समाज के लिए आरक्षण की मांग जटिल मुद्दा है भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते इन प्रावधानों से प्रभावित नहीं है राष्ट्रीय आदिवासी एकता मंच बैनर तले दिल्ली में आदिवासी समाज एसटी आरक्षण की मांग को लेकर मैदान में आने की तैयारी कर रहा है। दिल्ली में जनजाति वर्ग का दर्जा देने की मांग कर रहा है।

दिल्ली राज्य में जनजाति के लिए आरक्षण की मांग एक जटिल मुद्दा है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी पहलू शामिल हैं। दिल्ली में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की मांग मुख्य रूप से इस आधार पर की जाती है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और यहां अनुसूचित जनजातियों की लगभग 18 लाख संख्या निवास करती है लेकिन उन्हें भी देश के अन्य हिस्सों की तरह आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।

मांग के पीछे तर्क:

संवैधानिक प्रावधान:भारत का संविधान अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है। दिल्ली, केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते, इन प्रावधानों से अप्रभावित नहीं है।
सामाजिक न्याय: कुछ लोगों का मानना है कि दिल्ली में भी अनुसूचित जनजातियों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण की आवश्यकता है, ताकि वे भी शिक्षा, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त कर सकें।

प्रतिनिधित्व:

*कुछ लोगों का तर्क है कि दिल्ली में अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व कम है, और आरक्षण उन्हें राजनीतिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने में मदद कर सकता है।
दिल्ली सरकार को अनुसूचित जनजातियों के विकास और सशक्तिकरण के लिए उपाय करने चाहिए, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर प्रदान करना।*

कानूनी पहलू:

*सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण कर सकती हैं।*
दिल्ली सरकार की भूमिका:

दिल्ली सरकार को इस मामले में केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा।
संविधान का संशोधन:
यदि दिल्ली सरकार अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण लागू करना चाहती है, तो उसे संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता हो सकती है।
निष्कर्ष:
दिल्ली में जनजाति आरक्षण की मांग एक जटिल मुद्दा है, जिस पर कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है। इस मामले में, दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा और एक ऐसा समाधान ढूंढना होगा जो सभी के हितों को पूरा करे

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