Homeराज्यगोस्वामी तुलसीदास जी का अवतरण एवं प्रयाण दिवस

गोस्वामी तुलसीदास जी का अवतरण एवं प्रयाण दिवस

स्वामी गोपाल आनंद बाबा
स्मार्ट हलचल|श्री राम चरित मानस (तुलसीकृत रामायण) सहित अनेक ग्रंथों के रचियता गोस्वामी तुलसीदास का इस धरती पर अवतरण (जन्म) एवं महाप्रयाण (मृत्यु) दिवसों के बारे में निम्न दोहे उपलब्ध होते हैं।
पंदरह सौ चउवन बिषै, कालिन्दी के तीर।
सावन सुकला तीज शनि, तुलसी धरेऊसरीर।।
दूसरा- पंदरह सौ चउवन बिषै कालिन्दी के तीर। सावन सुकला, सप्तमी, तुलसी धरेउ सरीर।।
तथा संबत सोरह सौ असी, असी गंग के तीर।
सावन सुकल सप्तमी, तुलसी तज्यो सरीर।।
पहले दोहे में बताया गया है कि विक्रम संवत 1554 में श्रावण शुक्ल तृतीया दिन शनिवार को तुलसीदास (रामबोला) का जन्म हुआ। दूसरे में कहा गया है कि विक्रम संवत 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी को कालिन्दी (श्रीयुमनानदी) के तट पर तुलसीदास जी का जन्म हुआ।
तीसरे दोहे में ज्ञात कराया जा रहा है कि विक्रम संवत 1680 में काशी में गंगा जी के अस्सी घाट पर श्रावण शुक्ल सप्तमी को तुलसीदास जी ने महाप्रयाण किया। अर्थात वे 1554 से 1680 तक कुल 126 वर्ष साक्षात सशरीर इस भूतल पर विद्यमान रहे।
तुलसीदास जी के समकालीन रहे बाबा बेनी माधव दास जी कृत एक मान्यता प्राप्त ग्रंथ ‘मूल गोसाई चरित’ में उन्होंने उनका अवतरण दिवस व वर्ष तथा स्थान संवत 1554 श्रावण शुक्ल सप्तमी यमुना तट माना है। वहीं इन्होंने ही श्री तुलसी चरित में कहा है कि उनकी परमधाम जाने की तिथि श्रावण शुक्ल तृतीया दिन शनिवार संवत 1680, अस्सी गंग के तीर है। लेकिन ऊपर दिया गया दोहा भी बहुत प्रसिद्ध है, कि श्रावण शुक्ल सप्तमी वि.सं. 1680 में तुलसीदास जी ने शरीर त्यागा अर्थात सं. 1554 सावन सुदि सप्तमी एवं सं.1680 सावन सुदि सप्तमी जन्म एवं मृत्यु तिथि है। दोनों में जयन्ती व प्रयाण का दिवस एक ही तिथि में है। जैसा कि स्वामी रामतीर्थ के जन्म व निधन दिवस दीपावली (दिवाली) कार्तिक अमावस्या है। भगवान बुद्ध का जन्म व निधन दिन भी एक ही तिथि को माना जाता है। श्री गोस्वामी के शिष्य-परम्परागत पं. शिवलाल पाठक (काशी निवासी) जिन्होंने बाल्मीकि रामायण का संस्कृत भाष्य लिखा है, कृत श्री रामचरित मानस की ‘मानस मयंक’ नाम की टीका में भी बताया गया है कि श्रीगोस्वामी जी का जन्म संवत 1554 (वि.) ही है। वे लिखते हैं – संवत 1554 में तुलसीदास जी का प्रगटीकरण हुआ और 5 वर्ष की आयु में अपने गुरु से उन्होंने राम कथा सुनी। पुन: दुबारा 40 वर्ष की आयु में वही कथा संतों से सुनी। पुन: उसको 77 वर्ष की आयु में संवत 1631 में प्रगट कर श्रीराम चरित मानस की रचना प्रारंभ की। इससे उसे भगवत-यश-रूप जल का चिराना कहा है। इस प्रकार 1554 में 77 वर्ष जोडऩे से संवत: 1631 हुआ। ‘संबत सोरह का एक तीसा। कर ऊ कथा हरि पद धरि सीसा’
पश्चात संवत 1680 में आप परमधाम सिधारे। इस प्रकार उन्होंने 126 वर्ष का दीर्घ जीवन व्यतीत किया। यहां एक और बात बताना आवश्यक है। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ द्वारा प्रकाशित ‘श्री तुलसीदास ग्रन्थावली खण्ड 3’ के पृष्ठ 98 में जो बताया गया है वह भी श्रावण शुक्ल सप्तमी को जन्म बताता है।
बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग से प्रकाशित प्राचीन संशोधित ‘विनय पत्रिका’ में भी यही प्रमाण दिया गया है। इसमें पूज्य गोस्वामी जी के 36 वर्ष, 77 वर्ष और 98 वर्ष आयु के तीनों चित्र मुगल बादशाह अकबर के पुस्तकालय वाला, डाक्टर ग्रियर्सन की खोज में प्राप्त और काशी के अस्सी गंगा संगम के दिए गए हैं। उसमें भी यह दोहा अंकित है- ‘पंदरह सौ चउवन विषै, कालिन्दी के तीर। सावन शुक्ल सप्तमी तुलसी धरे सरीर’ अत: श्रावण शुक्ल सप्तमी ही गोस्वामी जी की जयन्ती है और पुण्यतिथि भी।

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