Devuthani Ekadashi & Tulsi Marriage
विष्णु पुराण में वर्णित है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को जगत के पालनहार भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह हुआ था। आसान शब्दों में कहें तो भगवान विष्णु ने तुलसी माता को अर्धांगिनी रूप में स्वीकार्य किया था। चिर काल से कार्तिक माह में तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में तुलसी विवाह के दिन विशेष उपाय करने का विधान है।
मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए करें उपाय
अगर आप चाहते हैं कि आपको मनचाहा जीवनसाथी मिले, तो आप तुलसी विवाह के दिन एक खास उपाय कर सकते हैं। तुलसी विवाह के दिन तुलसी को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं और मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करें। इसके बाद अगले दिन उस चुनरी को अपने पास रख लें। तुलसी माता की कृपा से मनचाहा जीवनसाथी मिलेगा।
अच्छे वैवाहिक जीवन के लिए
अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए तुलसी जी को देवउठनी एकादशी के दिन चूड़ियां, बिंदी, सिन्दूर, मेहंदी आदि सुहाग का सामान चढ़ाना चाहिए। पूजा के बाद यह श्रृंगार सामग्री किसी विवाहित महिला को दें। इस उपाय से पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
तुलसी विवाह 2023 मुहूर्त (Tulsi Vivah 2023 Muhurat)
- अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.46 – दोपहर 12.28
- गोधूलि बेला – शाम 05.22 – शाम 05.49
- सर्वार्थ सिद्धि योग – पूरे दिन
- अमृत सिद्धि योग – सुबह 06.50 – शाम 04.01
तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम जालंधर था. वह बहुत ही शक्तिशाली था, उसे हराना आसान न था. उसके शक्तिशाली होने का कारण था, उसकी पत्नी वृंदा. जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी. उसके प्रभाव से जालंधर को कोई भी परास्त नहीं कर पाता था. जालंध का आतंक इस कद्र बढ़ा की देवतागण परेशान हो गए. जब कभी भी जालंधर युद्ध पर जाता था तो तुलसी भगवान् विष्णु की पूजा करने लगती थी, विष्णु जी उसकी सारी मनोकामना पूरी करते
श्रीहरि ने तोड़ा वृंदा का पतिव्रता धर्म
जालंधर से मुक्ति पाने के लिए देवतागण मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें सारी व्यथा सुनाई. इसके बाद समाधान यह निकाला गया की क्यों न वृंदा के सतीत्व को ही नष्ट कर दिया जाए. पत्नी वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया. जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत धर्म नष्ट हुआ और जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और युद्ध में शिव जी ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.
वृंदा ने दिया विष्णु जी को श्राप
वृंदा विष्णु जी की परम भक्त थी जब उसे ये पता चला कि स्वंय विष्णु जी ने उसके साथ छल किया है तो उसे गहरा आघात पहुंचा. वृंदा ने श्री हरि विष्णु को श्राप दिया कि वे तुरंत पत्थर के बन जाएं. भगवान विष्णु ने देवी वृंदा का श्राप स्वीकार किया और वे एक पत्थर के रूप में आ गए. यह देखकर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त करें.
क्यों होता है शालीग्राम जी और तुलसी का विवाह
वृंदा ने भगवान विष्णु को तो श्राप मुक्त कर दिया लेकिन, उसने खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुई वहां पौधा उग गया, जिसे विष्णु जी ने तुलसी का नाम दिया और बोले कि शालिग्राम नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में हमेशा रहेगा. जिसकी पूजा तुलसी के साथ ही की जाएगी. यही वजह है कि हर साल देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी का विवाह कराया जाता है.
शीघ्र विवाह के उपाय
- अगर कुंडली में गुरु कमजोर होने की वजह से आपकी शादी में बाधा आ रही है, तो तुलसी विवाह के दिन जल में हल्दी मिलाकर तुलसी माता को अर्पित करें। इस समय निम्न मंत्र का जाप करें-
- ‘ॐ सृष्टिकर्ता मम विवाह कुरु कुरु स्वाहा’
- धार्मिक मत है कि भगवान विष्णु को तुलसी माता अति प्रिय है। तुलसी माता की पूजा करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से जातक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही कुंडली में गुरु मजबूत होता है। इस उपाय को करने से कुंडली में गुरु मजबूत होगा।
- अगर आपकी शादी में बाधा आ रही है, तो तुलसी विवाह के दिन स्नान-ध्यान करने के बाद विधि-विधान से तुलसी माता की पूजा करें। इस समय तुलसी माता को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं भेंट करें। इस उपाय को करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।
- अगर कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव के चलते आपकी शादी में बाधा आ रही है, तो तुलसी विवाह के दिन पूजा के समय तुलसी माता को सिंदूर अर्पित करें। इस समय जगत के पालनहार भगवान विष्णु और तुलसी माता से शीघ्र विवाह की कामना करें। इस उपाय को करने से शीघ्र विवाह के प्रबल योग बनते हैं।