विवेक रंजन श्रीवास्तव
स्मार्ट हलचल|धर्मेन्द्र जी के जाने की खबर सुनते ही हम सब के मन पर जैसे एक पुरानी रोशनी बुझने का दुख उतर आया है। वे सिर्फ फिल्मों का चेहरा नहीं थे बल्कि उन दुर्लभ कलाकारों में से थे जिनकी उपस्थिति भर से पर्दा जीवंत हो उठता था। उनमें रोमांस की कोमलता थी तो एक्शन की दृढ़ता भी थी और सबसे बढ़कर एक सरल मनुष्य की गर्मजोशी थी ।
उनकी हर भूमिका में उनके व्यक्तित्व की विशेषताएं अनायास छलक जाती थी। पंजाब के एक छोटे से कस्बाई वातावरण से उठकर मुंबई की चमक तक पहुंचने की उनकी यात्रा किसी प्रेरक गाथा से कम नहीं लगती। उन्होंने शुरुआती दौर से ही यह साबित कर दिया था कि अभिनय किसी एक खांचे में नहीं रहता बल्कि अपने भीतर कई रंगों की समृद्ध फुहार लिए कथा के नायक के अनुसार चलता है।
उनकी फिल्मों में एक सहज अपनापन दिखाई देता था। कभी वे दोस्ती की मिट्टी में लिपटे धूप जैसे लगते तो कभी पारिवारिक रिश्तों की महक में भीगे किसी बरगद की छांव जैसे। एक ओर उनका दमकता हुआ व्यक्तित्व दर्शकों को रोमांच से भर देता था और दूसरी ओर उनका भावनात्मक रूप से एक्टिंग का प्रभावी पक्ष उन्हें एक सम्पूर्ण कलाकार के रूप में स्थापित करता था। वर्षों तक वे दर्शकों के दिलों में बने रहे और पीढिय़ां उन्हें अपने अपने तरीके से याद करती रहीं।
फिल्मों से परे उनका जीवन भी उतना ही सहज और संजीदा था। उन्होंने समाज और राजनीति दोनों में अपनी भूमिका निभाई और यह साबित किया कि लोकप्रियता केवल तालियों से नहीं मापी जाती बल्कि जिम्मेदारियों से भी पहचानी जाती है। उनके चेहरे की बुझती मगर स्नेहिल मुस्कान में एक ऐसा अपनापन था जो आज भी स्मृतियों में उजाला फैलाता है।
धर्मेन्द्र जी केवल एक अभिनेता नहीं थे बल्कि एक फिल्मी युग थे जो अपनी विशालता में अनेक भावनाओं को समेटे रहा। उनकी विदाई फिल्मों के इतिहास में एक गहरी रिक्तता छोड़ गई है। वे अब इस संसार में नहीं हैं पर उनकी छवि और उनके किरदार सदैव हमारे साथ रहेंगे। ईश्वर उन्हें शांति प्रदान करे।


