अमित जाधव
ठाणे -स्मार्ट हलचल /दिवा क्षेत्र में चल रहे अनधिकृत स्कूलों के संचालकों और शिक्षकों ने सरकार की कठोर और जटिल शर्तों के खिलाफ धरना आंदोलन शुरू किया है। इन स्कूलों में मुख्य रूप से मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं, जिनके माता-पिता महंगे निजी स्कूलों की भारी-भरकम फीस नहीं वहन कर सकते। ये स्कूल ऐसे परिवारों के लिए बच्चों की शिक्षा का एकमात्र सहारा हैं।
आंदोलन कर रहे स्कूल संचालकों का आरोप है कि कुछ बड़े स्कूल जानबूझकर छोटे स्कूलों को बंद करवाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका उद्देश्य यह है कि इन स्कूलों के बंद होने के बाद गरीब और मध्यम वर्ग के अभिभावकों को मजबूरी में उनकी महंगी फीस देने वाले स्कूलों का रुख करना पड़े। बड़े स्कूल इस तरह से शिक्षा क्षेत्र में *मोनोपली* (एकाधिकार) स्थापित करना चाहते हैं, जिससे अभिभावकों और छात्रों के पास कोई और विकल्प न बचे।
शिक्षा के अधिकार के तहत प्रत्येक बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है। लेकिन सरकार द्वारा छोटे स्कूलों पर कार्रवाई कर उन्हें बंद करने की कोशिश की जा रही है, जिससे गरीब बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर गहरी चोट पहुंच रही है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन छोटे स्कूलों को आवश्यक मान्यता देकर इन्हें बंद होने से बचाए।
आंदोलनकारियों ने सरकार से तीन प्रमुख मांगें की हैं:
1. *जटिल शर्तों को सरल बनाया जाए:* छोटे स्कूलों को मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया आसान और व्यवहारिक की जाए।
2. *संचालकों पर दर्ज केस वापस लिए जाएं:* स्कूल संचालकों पर लगाए गए मुकदमों को बिना शर्त वापस लिया जाए।
3. *गरीब बच्चों की शिक्षा की सुरक्षा हो:* सरकार यह सुनिश्चित करे कि गरीब परिवारों के बच्चों को उनकी शिक्षा से वंचित न किया जाए।
आंदोलन कर रहे स्कूल संचालकों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे इस आंदोलन को और उग्र करेंगे।
सरकार को यह समझना चाहिए कि छोटे स्कूल न केवल शिक्षा का माध्यम हैं, बल्कि समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के भविष्य का आधार भी हैं। इन स्कूलों को बंद करना इन बच्चों के सपनों और उनके अधिकारों को छीनने जैसा होगा। सरकार को इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए छोटे स्कूलों के लिए सकारात्मक कदम उठाने चाहिए, ताकि हर बच्चा शिक्षा के अधिकार का लाभ उठा सके।