सुशील चौहान
भीलवाड़ा । अभी हुकुम निकले ही तो थे. सीख देकर कि ये क्या हाल बना रखा है। कुछ करते क्यों नहीं। बात गांघी सागर गंदे. बदबूदार. अतिक्रमण से सुशोभित तालाब की ही है। कल ही तो आए थे अपने नए हुकुम।,
सब कुछ देख वे भी दुखी दिखे।. जिम्मेदारी नहीं निभाने वालों को हटाया नहीं लेकिन नसीहत दी कि सब ठीक करो। गर्दन हिलाते अधिकारी भी मान गए, लेकिन हुकुम न जाने कितने किलोमीटर की यात्रा कर घर पहुंचे ।उससे पहले ही अतिक्रमण ने फिर पंख फैला लिए।
अब क्या कहें नए हुक्म तो चाहते हैं कि हमारा शहर सुंदर हो।मगर अधिकारी हैं कि मानते ही नहीं।
, प्रशासन का काफिला गुजरने के चंद समय बाद ही अतिक्रमियों ने अपने तामझाम फिर जमा लिए। बुधवार को गांधी सागर तालाब वाला क्षेत्र फिर अपने स्वरुप में आ गया। चाय की थडियां से लग गई, टेबलें लग गई। कार और गर्म कपड़ों का बाजार सज गया। और तो और केबिने लग गई तथा केबिनों के पीछे सट्टे की पर्चियां काटने का कारोबार जारी हो गया। इसकी जानकारी सम्बंधित थाने को भी हैं।
नए हुक्म को तो वो ही दिखाया गया जो नगर परिषद और नगर विकास न्यास के अधिकारी दिखाना चाहते थे। अगर अधिकारी इतने ही अपने काम के प्रति थोड़ा भी वफादार होते तो नए हुक्म को रोडवेज बस स्टैंड का दौरा करवाते। जहां बस स्टैंड पर गंदगी का आलम और जर्जर सड़क जहां रोजाना हजारों यात्री इन जर्जर सड़कों पर चलकर अपना सफर तय करते हैं।
और तो कुछ नहीं बस स्टैंड का मुख्य द्वार जहां से यात्री प्रवेश करते हैं। मुख्य द्वार हैं या नहीं यही पता नहीं चलता हैं क्योंकि ओटो चालकों ने कब्जा कर रखा हैं। इसके अलावा अस्थाई केबिनें जो वहां लगभग अब स्थाई रुप ले चुकी हैं। बस स्टैंड का मुख्य द्वार यात्रियों की नजर से ओझल कर दिया हैं।
अब थोड़ी बात पटरी के उस पार की भी कर लें। जहां गंगापुर तिराहे से लेकर पांसल चौराहे तक प्रशासन ने लाखों रुपए खर्च कर पक्का सीमेंटेड बनवाया अब यह स्थान एक होटल का पार्किंग स्थल और अवैध रूप से लगाई गई केबिनों का मार्केट बन गया। जहां मोटरसाइकिलें रिपेयर करने जूतों, संगमरमर बेचने का हब बन गया है। वैसे मैं कभी सुझाव नहीं देता मगर नए हुक्म का ध्यान थोड़ा चितौड़गढ़ रोड़ की और दिलाना चाहूंगा। वहां प्रशासन ने लाखों रुपए ख़र्च कर सविस लाइन बनवाई मगर वहां भी लोगों ने कब्जा कर लिया। एक ढाबे वाला शाम होते ही अपने कमल की पंखुड़ियां यानी टेबलें कुर्सियां लगा कर बड़ी शान से शहर के लोगों को भोजन परोसता हैं। किसी दिन कोई तेज गति से आने वाले वाहन की गति बिगड़ गई तो फिर प्रशासन को लेने देने पड़ जाएंगे। मजे की बात तो यह हैं इस ढाबे से कुछ ही दूरी पर शहर की यातायात व्यवस्था संभालने वाले विभाग का दफ्तर भी ही हैं। इन यातायात पुलिस वालों को शाम को सड़क पर कब्जा कर लगने वाली टेबल व अवैध रूप से संचालित वीडियो कोच की पार्किंग नजर तो आती हैं, लेकिन गांधी की झलक के आगे इनकी नजरें धुंधली हो जाती हैं।
अधिकारी मुस्तैदी से काम करें तो शहर क्यों नहीं सुंदर होगा। शहर में सफाई व्यवस्था तब माकूल होगी जब सफाईकर्मी पर उनका आंका यानी स्वास्थ्य अधिकारी होगा। लंबे समय से नगर परिषद में स्वास्थ्य अधिकारी हैं ही नहीं। नाली सड़कें बनाने वाले को काम सौंप रखा हैं।
नए हुक्म आपकी शहर के सौंदर्य के प्रति प्रतिबंधिता देख शहरवासियों को कुछ आस बंधी हैं कि अब हमारा शहर भी इंदौर की तरह सुंदर होगा। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और योग गुरु बाबा रामदेव जो शहर को गंदे शहर का तमगा देकर गए। वो शायद नए हुक्म मिटाने में अहम भूमिका निभाएंगे।