अहंकार मनुष्य के नाश का कारण: सुनील शास्त्री,Ego is the cause of destruction of man
सैफई (इटावा) स्मार्ट हलचल/हैवरा ग्राम बहादुरपुर में चल रही श्री मद भागवत कथा के अंतिम दिन श्रोताओं को संदेश देते हुए सुनील शास्त्री ने कहा कि व्यक्ति के पतन का मूल कारण अहंकार है, संसार में अपना अपने परिवार का नाम रोशन करना है, तो सबसे पहले अहंकार का त्याग करना होगा व्यक्ति अगर पद में छोटा है और अंहकार उसके अंदर नहीं है तो उससे बड़ा कोई दूसरा इंसान नहीं है
कथावाचक ने कहा एक बार स्वयं भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर गये उन्होंने दुर्योधन व उसके समस्त साथियों को समझाने का प्रयास किया लेकिन महाभारत के रण को नहीं रोक पाये। अहंकार के कारण ही कौरवों की पराजय हुई,इस रणपात में पाड़वों की विजय हुई ।अर्जुन को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति इसी कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्री कृष्ण ने ही करवाई।
कथावाचक सुनील शास्त्री ने भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी विवाह का प्रसंग श्रोताओं को बताया कि विदर्भ के राजा भीष्मक के घर रुक्मिणी का जन्म हुआ। बाल अवस्था से भगवान श्रीकृष्ण को सच्चे हृदय से पति के रूप में चाहती थी। लेकिन उसका भाई रुक्मिणी का विवाह गोपल राजा शिशुपाल के साथ कराना चाहता था। रुक्मिणी ने अपने भाई की इच्छा जानी तो उसे बड़ा दुख हुआ। रुक्मिणी ने सुदेव नामक ब्राह्मण से कहा कि वे श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती हैं। सात श्लोकों में लिखा हुआ मेरा पत्र तुम श्रीकृष्ण तक पहुंचा देना। कथावाचक ने बताया कि रुक्मिणी ने स्वयं को प्राप्त करने के लिए उपाय भी बताया। पत्र में रुक्मिणी ने बताया कि वह प्रतिदिन पार्वती की पूजा करने के लिए मंदिर जाती हैं, श्रीकृष्ण आकर उन्हें यहां से ले जाओ। रुक्मिणी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि आप इस दासी को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं हजारों जन्म लेती रहूंगी। पार्वती के पूजन के लिए जब रुक्मिणी आई, उसी समय प्रभु श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले गए। अत: रुक्मिणी के पिता ने रीति रिवाज के साथ दोनों का विवाह कर दिया।
श्री मदभागवत कथा के आख़िरी दिन था इसलिए ग्रामीणों ने कथावाचक का फूल मलाओ व पगड़ी पहनाकर स्वागत किया। इस मौक़े पर परीक्षित सुरेंद्र सिंह यादव,यज्ञपति दिनेश आचार्य जी को भागवत कमेटी के सदस्यों नें स्वागत किया।