“धूर्तराष्ट्र,धृतराष्ट्र में अपने वजूद को तलाशते लल्लन सिंह जी”
मुझे नही लगता की कोई धृतराष्ट्र से बड़ा कोई धूर्त होगा लेकिन वो अपने को राष्ट्र बचाने के नाम पर,आप (लल्लन सिंह जी, कब्जाधारी, किसान पीजी कालेज रक्सा रतसड़ बलिया यूपी) ही के जैसे फर्जी मिटिंग से फिटिंग कर लेता था कि विनोद सिंह बांसडीह को सदस्य,अमर सिंह को सदस्य या और भी लोभी,भूख्खड़ों को सदस्य बनाया,उसने भी मिटिंग के ट्रिक से ही हस्तिनापुर को बर्बाद करने के लिए बहुत भूख्खड़ कालनेमियों को सदस्य बनाया,वो भी अपने खर्चे से,बस शर्त ये कि मेरे पुत्र को ही राजा बने रहने के लिए ही खुराफात सब कुछ करना होगा। क्योंकि वो जानता था पांडव पुत्र उसके पुत्रों से बलशाली भी हैं, बुद्धिशाली भी हैं,कर्मशाली भी हैं और खूबसूरत भी हैं और लंबे चौड़े भी हैं।इसी अंतर को पाटने के लिए अपने लखैरों पुत्रों की कुरुपता को परसेप्शन के आधार पर और भूख्खड़ सहयोगियों से उत्पात व उपद्रव करवाया। मेरे जैसे लोग भी वहां थे (कर्ण वगैरह) लेकिन अपने खुराफाती सदस्य सूची में मुझे भी नहीं रखा,बस अर्जुन से उसके मतभेद मनभेद को गाढ़ा कराया कि अर्जुन को मार देगा और मेरे पाड़ा पुत्रों, हरामखोर सहयोगियों व कालनेमियों को बहार आएगी? हुआ क्या? ये एहसास होता है कि उससे भी लंबी छलांग के तो आप खुद हैं और आप जैसा छलिया,छल की मल्लिका,खलों का घड़ा,खामोश बवाल के भंडारी,आप ही में से कोई हो सकता है।छबिले हैं,गर्बिले हैं,हठीले हैं,ठगीले हैं,उसके आस-पास की अर्हता तो है ही। मेरे ख्याल से अंतरा मंतरा के गलती से उसका नाम धूर्तराष्ट्र से धृतराष्ट्र हो गया है।
शुरुआत में तो खामोशी को समझने का भी दावा करनेवाले,अपनी पाचन की क्षमता कालेज को भी पचा लेने की क्षमता तक खुद को बनाने वाले,अब तो चीखों पर भी आवारगी/लापरवाही से भी तवज्जो नहीं देते या अनसुनी कर देते हैं।
लल्लन सिंह जी आप नफरत के ही काबिल हैं,दिमाग लगाके जितने रिश्तों की हत्या आपने करी होगी उतना तो विश्वयुद्ध में लोग नही मारे गए होंगे!सदा ना रहा है,सदा ना रहेगा,जमाना किसी का?
हर बार का हर्बल सवाल-विनोद सिंह बांसडीह,अमर सिंह पहाड़पुर,आपके भाई शेषनाथ सिंह,अवधेश सिंह,नंद जी सिंह,बच्चा सिंह जी,आपका चपरासी (जिसे मैनेजर बनाए हैं),आपके फुवा के लड़के जयराम सिंह,आपके बहनोई अशोक सिंह की……… क्या योग्यता थी? कि सदस्य पदाधिकारी बने और मैं सदस्य तक नही बन सकता,अब ये मत कहिएगा कि धूर्तराष्ट्र के मिटिंग से फैसला हुआ? साथ में एक सवाल और का जवाब दे दिजिए कि विनोद सिंह के दामाद के लिए जो चालिस लाख में अध्यापकी खरीदी गई वो विनोद सिंह के बाप का था या उनके दामाद के बाप का?
लोगों के बच्चों को (ज जाना बाड़ लो,वोतना करोड़ के) करोड़ों कह कर मजाक,वाले अपने भी बच्चों की कीमत बता देते?एक को चालिस लाख देके रोटी मयस्सर कराई फिर सारे शाहजादों को दो ही करोड़ बन रहा है?अभी भी आपके अनुसार तीन करोड़ से पिछे चल रहे हैं?बच्चा दादा तो अभी हैं ही,इनके भी श्रीमती जी थीं? बहुत धनी हो जाएंगे महराज,इनकी तो कीमत अनमोल है,धूर्तराष्ट्रों के गैराज।
धूर्तराष्ट्र समूह ने जिंदा बख्शा तो रोज मिलेंगे।आपका रवि शंकर सिंह एडवोकेट रक्सा रतसड़ बलिया यूपी,
नोट – अब लगता है कि थक रहा हूं लेकिन अगले ही पल सोचता हूं कि आप धूर्तराष्ट्री/बेईमानी करते करते नही थक रहे तो मैं कैसे थक जाऊं?