विद्यार्थियों ने जानी नेत्रदान की प्रक्रिया, भ्रांतियों का हुआ निवारण
केवल 10 मिनट में पूरा होता है नेत्रदान, नहीं आती कोई कुरूपता
कोटा। आई बैंक सोसाइटी ऑफ राजस्थान (कोटा चैप्टर) की ओर से सोमवार को राजकीय महाविद्यालय (रामानुजम भवन) में नेत्रदान विषय पर संगोष्ठी 40वें नेत्रदान पखवाडे के अंतर्गत आयोजित की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. प्रतिमा श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर डॉ. के. के. कंजोलिया (अध्यक्ष, आई बैंक सोसाइटी ऑफ राजस्थान, कोटा चैप्टर), डॉ. सुरेश पाण्डेय (कोऑर्डिनेटर), नीरजा श्रीवास्तव (व्याख्याता), टिंकू ओझा (तकनीशियन) सहित शिक्षण स्टाफ एवं लगभग 300 विद्यार्थी उपस्थित रहे।
अंधत्व की गंभीर स्थिति
डॉ. कंजोलिया ने बताया कि विश्वभर में प्रत्येक पाँच सेकंड में एक वयस्क तथा प्रति मिनट एक बच्चा अंधत्व का शिकार होता है। भारत में लगभग 1.80 करोड़ लोग अंधत्व से पीड़ित हैं, जिनमें से करीब 1 प्रतिशत लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के कारण दृष्टिबाधित हैं। देश में हर वर्ष 25 से 30 हजार मरीज कॉर्निया खराब होने से अंधेपन का शिकार होते हैं। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत की दृष्टि कॉर्नियल ट्रांसप्लांट द्वारा लौटाई जा सकती है। इसके लिए प्रतिवर्ष लगभग 2.5 लाख कॉर्निया की आवश्यकता होती है, जबकि उपलब्धता केवल 50 हजार के आसपास है।
सरल और सुरक्षित प्रक्रिया
उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि नेत्रदान पूरी तरह सरल और रक्तविहीन प्रक्रिया है, जिसे केवल 10 मिनट में पूरा किया जा सकता है। इसमें मृतक की आंखों से केवल कॉर्निया निकाला जाता है और लेंस लगाकर स्वरूप को सुरक्षित रखा जाता है, जिससे चेहरे पर किसी प्रकार की कुरूपता नहीं आती। 2 वर्ष से 80 वर्ष तक की आयु का कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। मृत्यु उपरांत नेत्रदान हेतु आवश्यक सावधानियाँ जैसे— आंखों को बंद कर गीला कपड़ा रखना, पंखा बंद करना और एसी चालू करना भी समझाई गईं।
आंख का रहस्य आई मॉडल से समझाया
वरिष्ठ नेत्र शल्य चिकित्सक डॉ. सुरेश पाण्डेय ने आई मॉडल की सहायता से विद्यार्थियों को आंख की संरचना और कार्यप्रणाली से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि मस्तिष्क के बाद शरीर का सबसे जटिल अंग आंख है, जिसमें 20 लाख से अधिक वर्किंग पार्ट्स होते हैं। ये सभी मिलकर प्रकाश को स्पष्ट चित्र में बदलते हैं। उन्होंने कॉर्निया, आइरिस, लेंस, रेटिना और रिसेप्टर्स की भूमिका विस्तार से समझाई और नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियों का निवारण किया।