Homeराष्ट्रीयउनका है तो परिवारवाद इनका है तो समाजवाद ?Familism socialism?

उनका है तो परिवारवाद इनका है तो समाजवाद ?Familism socialism?

fa7a9556 4820 4f1d a4e5 825415eeeab0निर्मल रानी

स्मार्ट हलचल/गत दिनों राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियां तो कम गिनाईं परन्तु विपक्ष पर अधिक हमलावर रहे। उन्होंने एक बार फिर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू,इंदिरा गांधी व राहुल गांधी पर निशाना साधा। कांग्रेस पार्टी पर परिवारवादी राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, कि “देश ने जितना परिवारवाद का ख़मियाज़ा उठाया है, खुद कांग्रेस ने भी उसका उतना ही ख़मियाज़ा उठाया है। सदन में ही जब कांग्रेस की ओर से ‘बीजेपी में फलते फूलते परिवारवाद’ पर सवाल किया गया तो मोदी ने कहा कि उनके लिए परिवारवाद का मतलब एक ही परिवार के कई लोगों के राजनीति में आने से नहीं है। उन्होंने कहा, “अगर किसी परिवार में अपने बलबूते पर व जनसमर्थन से एक से अधिक लोग राजनीतिक क्षेत्र में भी प्रगति करते हैं, उसको हमने कभी परिवारवाद नहीं कहा है। हम परिवारवाद की चर्चा वो करते हैं, जो पार्टी परिवार चलाता है, जो पार्टी परिवार के लोगों को प्राथमिकता देती है, पार्टी के सारे निर्णय परिवार के लोग ही करते हैं, वो परिवारवाद है। न राजनाथ जी की कोई पॉलिटिकल पार्टी है न अमित शाह की कोई पॉलिटिकल पार्टी है।” यानी प्रधानमंत्री ने नेहरू-गांधी परिवार पर हमला बोलने की सुविधाजनक परिभाषा गढ़ डाली। अमितशाह व राजनाथ सिंह का नाम लेकर उन्हें सदन में इसलिये सफ़ाई देनी पड़ी क्योंकि कांग्रेस पार्टी और कई विपक्षी नेता अक्सर यह सवाल करते हैं कि गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह बीसीसीआई के सचिव से लेकर एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के अध्यक्ष तक किस आधार पर बन जाते हैं ? विपक्ष पूछता है कि जय शाह के पास अमित शाह का पुत्र होने के अतिरिक्त ऐसी कौन सी योग्यता है जिसके आधार पर उन्हें इतने महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त,मनोनीत या निर्वाचित कराया जाता है? इसी तरह राजनाथ सिंह के एक पुत्र जहाँ भाजपा से विधायक हैं वहीं दूसरे भी किसी महत्वपूर्ण पद पर आसीन हैं।
मोदी ने परिवारवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुये अपनी ही पार्टी के अनुराग ठाकुर,पियूष गोयल,धर्मेंद्र प्रधान,वसुंधरा व ज्योतिरादित्य सिंधिया,देवेंद्र फड़नवीस,जतिन प्रसाद,आर पी एन सिंह,राव इंदरजीत सिंह व किरण रिजिजू जैसे उन अनेक नेताओं का बचाओ किया जो अपनी पैतृक राजनीति के ही प्रतीक हैं। परन्तु प्रधानमंत्री के अनुसार जो पार्टी,एक परिवार चलाता है, जो पार्टी परिवार के लोगों को प्राथमिकता देती है, जिस पार्टी के सारे निर्णय एक ही परिवार के लोग करते हैं, ऐसे दलों व नेताओं के परिवारवाद का देश ने ख़मियाज़ा उठाया है?फिर तो प्रधानमंत्री को यह भी बताना चाहिये कि 2014 तक भाजपा का जिस बल ठाकरे व उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में 25 वर्षों तक गठबंधन रहा और महाराष्ट्र में अनेक लोकसभा व विधानसभा चुनाव भाजपा -शिवसेना मिलकर लड़ी वह परिवारवादियों से समझौता था या नहीं ? इसी तरह जो शिरोमणि अकाली दल, बादल परिवार की पार्टी है और किसान आंदोलन से पूर्व दशकों तक भाजपा की सहयोगी रही है उसका परिवारवाद प्रधानमंत्री की परिभाषा से कैसे अलग है ? इसी तरह भाजपा जब चाहे तब हरियाणा में एक ही परिवार की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से समझौता कर सकती है ? आज भी भाजपा हरियाणा में जिस जननायक जनता पार्टी (जे जे पी) के साथ सत्ता की साझेदार है वह भी एक ही परिवार की पार्टी है। इसी तरह भाजपा जब चाहे कश्मीर में मुफ़्ती मोहम्मद सईद की पारिवारिक पार्टी पी डी पी से समझौता कर सकती है? बिहार में राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी क्या परिवारवाद की पार्टी का प्रतीक नहीं? कर्नाटक में भाजपा परिवारवादी राजनीति करने वाले येदियुरप्पा के हाथों में क्यों खेलती है? इसी तरह के और भी कई ‘परिवारवादी’ दल हैं जिनसे भाजपा गठबंधन करने में परहेज़ नहीं करती। सवाल यह है कि जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि -‘परिवारवाद का देश ने ख़मियाज़ा उठाया है’ फिर आख़िर उन्हीं की परिभाषा वाले ‘परिवारवादियों ‘ से भाजपा के गलबहियां करने का अर्थ व औचित्य क्या ?
दरअसल मोदी सहित भाजपा नेताओं को कांग्रेस व कांग्रेस सहयोगी दलों में ही सारा परिवारवाद नज़र आता है। इन्हें केवल राहुल गाँधी,अखिलेश यादव,तेजस्वी यादव जैसे नेता ही परिवारवादी राजनीति के प्रतीक नज़र आते हैं। इन्हें राहुल गाँधी की परिवारक कुंडली तो नज़र आती है परन्तु उनका कन्याकुमारी से कश्मीर व मणिपुर से मुंबई तक की साहस भरी भारत जोड़ो न्याय यात्रा नज़र नहीं आती ? इन्हें राहुल के पिता व दादी की क़ुरबानी दिखाई नहीं देती ? इन्हें राहुल की मां सोनिया गाँधी द्वारा प्रधानमंत्री जैसे उस पद का त्याग नज़र नहीं आता जिससे आजीवन चिपके रहने के लिये कौन कौन से हथकंडे नहीं अपनाये जा रहे ? लालू यादव व मुलायम सिंह यादव की सामाजिक न्याय की वजह से भी भाजपा इनकी पार्टी की वैचारिक विरोधी है जिसके चलते इनपर परिवारवाद का आरोप लगाती है। पिछले दिनों अपने जिस राजनैतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी को ‘भारत रत्न’ देकर उनसे प्रधानमंत्री पद ‘हड़पने ‘ का पश्चाताप किया गया उन्हीं आडवाणी को 22 अक्टूबर 1990 को लालू यादव ने बिहार का मुख्यमंत्री रहते गिरफ़्तार किया था। यह घटनाएं भाजपा आख़िर कैसे भूल सकती है ? इसी तरह मुलायम सिंह यादव द्वारा अक्टूबर 1990 को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते अयोध्या में कर्फ्यू लगाया गया। उन्होंने बाबरी मस्जिद के आसपास के इलाकों में बैरकेडिंग कर कहा था कि, बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। और 30 अक्टूबर 1990 को जब भीड़ ने कारसेवकों के साथ हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ना शुरू किया उस समय ढांचे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा कारसेवकों पर गोलियां दाग़ी गयी थीं जिसमें कई कारसेवक व साधुओं की जानें भी गयी थीं। बाद में यही आंदोलन जब और उग्र हुआ तो 6 दिसंबर 1992 की घटना के रूप में इसकी परिणति हुई।
ज़ाहिर है कांग्रेस,समाजवादी पार्टी व आर जे डी की यही धर्मनिरपेक्ष राजनीति जब रास नहीं आती तो वैचारिक कुंठा से ग्रस्त लोग इनपर परिवारवाद और भ्रष्टाचार जैसे आरोप लगाकर इन्हें बदनाम करने की भी कोशिश करते हैं साथ ही जनसरोकार से जुड़े वास्तविक मुद्दों की तरफ़ से जनता का ध्यान भी भटकाते हैं। यानी इन्हें उनका परिवारवाद तो परिवारवाद दिखाई देता है परन्तु अपना परिवारवाद, समाजवाद नज़र आता है ?

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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