पूरन चन्द्र शर्मा
स्मार्ट हलचल|मेरठ के सरधना के 18 वर्षीय युवक का दूसरे मोहल्ले की 15 साल की किशोरी से प्रेम प्रसंग था। दोनों शादी के लिए परिजनों पर दबाव बना रहे थे। युवक के परिजनों ने दूसरी बिरादरी होने के चलते इंकार कर दिया और युवक को चेतावनी देकर पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा। दूसरी ओर किशोरी के परिजनों ने भी कम उम्र का हवाला दिया और कह दिया कि इस बारे में बाद में सोचेंगे। हालांकि इसके बाद परिजनों ने बंदिशें बढ़ा दी थी। इसी को लेकर प्रेमी युगल परेशान था और दोनों ने आत्मघाती कदम उठा लिया। युवक कहीं से जहर खरीद लाया। फोन कर किशोरी को मिलने के लिए बुलाया और दोनों ने आखिरी बार मुलाकात कर जहर खा लिया।
इस घटना ने यह तो साबित कर ही दिया है कि आधुनिक बनने की होड़ में ये बच्चे उच्छृंखलता की ओर बढ़ गये और अपने माता पिता समेत सभी पारिवारिक संबंधों का परित्याग कर दिया। इस मामले ने एक बड़ा प्रश्न यह भी खड़ा कर दिया है कि क्या अब बच्चे जल्दी बालिग होने लगे हैं? क्या आधुनिकता की चकाचौंध में वे अपने माता पिता और सारे पारिवारिक संबंधों को तिलांजलि दे देना चाहते हैं ?
आज एक ओर तो कुछ बच्चे केरियर बनाने के चक्कर में विवाह की वास्तविक उम्र को समाप्त कर रहे हैं, दूसरी ओर नादान कच्ची उम्र के कई किशोर किशोरी क्षणिक आकर्षण में अपना सर्वस्व त्याग देते हैं। पारिवारिक विघटन से आज हर परिवार पीड़ित है, क्या यह सब सही हो रहा है?
हमारे शास्त्रों में नर एवं नारी को स्वतंत्रता तो प्रदान की है पर स्वच्छंद होना नहीं सिखाया। स्वच्छंदता होने से भटकाव होने का खतरा पैदा हो सकता है।
स्वच्छंद होने का अर्थ है-
1.अपनी इच्छा, मौज या रुचि के अनुसार अथवा सनक में आकर काम करना।
2. किसी प्रकार के अंकुश, नियंत्रण या मर्यादा का ध्यान न रखते हुए मनमाने ढंग से आचरण या व्यवहार करना।
3. नैतिक और सामाजिक दृष्टि से अनुचित तथा निंदनीय आचरण या व्यवहार करना।
4. भ्रष्ट चरित्र।
5. बिना किसी भय विचार या संकोच के निर्लज्ज हो कर कार्य करना।
हमारे सामने सबसे बड़ा उदाहरण है माता सीता एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का। माता सीता ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया तो उन्हें भारी कष्ट झेलने पड़े। प्रकांड विद्वान एवं शिव भक्त रावण ने अपनी मर्यादा तोड़ी जिसके चलते उसका विनाश हुआ।
आज बॉलीवुड की अधिकांश फ़िल्मों के चलते माता-पिता के द्वारा दिये गये संस्कार फीके पड़ते जा रहे हैं। कुछ घटिया स्तर के टीवी सीरियल एवं बेव सीरीज युवा पीढ़ी को गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं।
“बिन फेरे हम तेरे” के बढ़ते चलन के चलते विवाह जैसा पवित्र बंधन अब औपचारिक होता जा रहा है। अब सभ्य एवं चरित्रवान संतानें विवाह करने से घबराने लगी हैं । आज विवाहयोग्य सभी बेटे एवं बेटियाँ चिन्तित हैं। बहुत ही विकट परिस्थितियां हैं।
हाल ही में शामली में एक युवक की बाग में गला रेतकर हत्या कर दी गई। हत्या की वारदात को अंजाम उसकी पत्नी ने भाई और प्रेमी संग मिलकर दिया था। पुलिस ने पत्नी समेत तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। जांच में सामने आया है कि प्रेम प्रसंग में बाधक बनने पर पति की गला रेतकर हत्या की गई थी। इस तरह के समाचार लगातार आ रहे हैं। मुस्कान और सोनम के किस्से तो पुराने हो गए हैं।
विवाह-बंधन अब और ज्यादा जोखिम भरा काम हो गया। ऐसे में प्रेमानंद महाराज और अनिरुद्धाचार्य जैसे संतों की वाणी को लेकर विवाद करने की बजाए उनकी बातों पर चिन्तन एवं मंथन करना चाहिए।
भारत को फिर से विश्व गुरु बनाना है तो चरित्र निर्माण पर विशेष जोर देने की आवश्यकता है। हमारे शास्त्रों में यह बात स्पष्ट लिखी हुई है कि कन्या के “रजस्वला” (मासिक धर्म) प्रारम्भ होने के बाद से जितने दिन पिता के अपने घर में रहती है पिता को उतना ही पाप लगता है, खैर यह तो अब पुराने जमाने की बातें हैं। वर्तमान में इन बातों पर कोई ध्यान नहीं देता है। शास्त्रों के अनुसार उचित उम्र में विवाह कर देना चाहिए जिससे कि अनर्थ होने से बचा जा सके। व्यवहारिक रुप से भी शिक्षा पूर्ण करने एवं किसी उचित कामकाज से जुड़ जाने पर ही विवाह करना उचित है। आज भविष्य बनाने के चक्कर में विवाह करने की उम्र बढ़ती जाती है। अनाचार एवं व्याभिचार बढ़ रहें हैं।
हर माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतानें उच्च शिक्षा प्राप्त करें, अपना मन-पसंद कामकाज चुनें, सन्तान की खुशी में ही वे अपनी खुशी ढूंढते है ,वे उस समय निराश होने लगते है जब उन्हें पता चलता है कि बच्चे अनैतिक रास्ते पर चलने लगे हैं। आप कल्पना कीजिए कि उन्हें कितनी तकलीफ होती होगी। उस वक़्त माता- पिता असहाय हो जाते हैं। आज की शिक्षा एवं देश का कानून अनैतिकता को रोकने में नाकाम रहा है।
उच्च कोटि की भारतीय संस्कृति को नकारते हुए लिव इन रिलेशनशिप के केस बढ़ रहे हैंl बाय फ्रेंड, गर्ल फ्रेंड मिल कर अपने पति एवं पत्नी की हत्या कर रहे हैं। आजाद भारत को यह शर्मनाक आजादी कहां से मिली ?
अनैतिकता से भरे समाचार हमें मिलते ही रहते हैं।आप गहराई से सोचे कि अगर कोई फरेबी प्रेमी किसी लड़की को शादी का झांसा देकर उससे शारीरिक संबंध बनाता है और वह दुर्भाग्य से गर्भवती हो जाती है एवं उसका प्रेमी उससे शादी करने से इंकार कर देता है तब क्या परिस्थिति पैदा होगी यह हम सभी जानते हैंl
प्रेमानंद महाराज एवं अनिरुद्धाचार्य जैसी विभूतियों का कहना है कि हमें अनैतिकता के मार्ग से बचना चाहिए। अब प्रश्न आता है जो लोग अनिरुद्धाचार्य एवं प्रेमानंदजी जैसे कथावाचक एवं संतों का विरोध कर रहे हैं क्या वे उस पीड़ित लड़की को अपने घर की बहू बनाने की हिम्मत करेंगे ? यदि नहीं तो फिर उन्हें इस मामले में बोलने का क्या नैतिक अधिकार है? इस तरह के लोग समाज को जागरूक करने की बजाय नई पीढ़ी को गर्त में ढकेलने का कार्य कर रहे हैं, अतः इस तरह के लोगों से हमें सावधान रहना चाहिए।