अशोकमधुप
स्मार्ट हलचल/पंजाबऔर हरियाणा को जोड़ने वाले शंभू बोर्डर पर13 फरवरी से किसान जमा हैं।सरकार का कहना है कि उन्हें आगे नही जाने दिया जाएगा।ये जाकर दिल्ली का आम जीवन प्रभावित करते हैं। ये बजिद हैं कि हमें दिल्ली जाना है।शंभू बॉर्डर में किसानों ने घमासान मचाया हुआ है।पुलिस बेरिकेडिंग्स को तहस-नहस कर दिया है। इसके चलते पुलिस ने कई आंदोलनकारियोंको हिरासत में ले लिया है। कई बार झड़प हो चुकी । पुलिस को अश्रु गैस छोड़नी पड़ी।आंदोलनकारियों पर पैलेट गन भी चलानी पड़ी। ये दिल्ली आने को बजिद हैं। कुछ जगह इन्होंने पंजाब में हाइवे के टोल प्लाजा फ्री करा दिए हैं। पंजाब में ही रेलवे ट्रैक पर इनका धरना भी कुछ जगह जारी है। हालात ठीक नही हैं। तीन कृषि कानून को वापिस लेने के लिए चले पिछले किसान आंदोलन की सफलता से किसान उत्साहित हैं और अग्रेसिव हैं। किंतु सवालयह है कि क्या ये देश के किसानों का आंदोलन है। इसमें तो पंजाब के भी पूरे किसान संगठन शामिल नही हैं।
इस आंदोलन को देखकर ऐसा लग नहीं रहा कि किसान वापस जाएंगे। इसबार किसान अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर अड़े हुए हैं।इनकी मांग हैं,किसान नेता न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) पर कानून बनाए ,किसानों ने दिल्ली मोर्चा के दौरान केंद्र सरकार की ओर से जिन मांगों को पूरा करने का भरोसा दिया गया था ,उन्हें तुरंत पूरा करे,साल 2021-22 के किसान आंदोलन में जिन किसानों पर मुकदमें दर्ज किए गए थे, उन्हें रद्द करने किया जाए,पिछले आंदोलन में जिन किसानों की मौत हुईथी, उनके परिवार को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य कोसरकारी नौकरी दी जाए,लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को केंद्र सरकार न्याय दे और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दें,सभी किसान और खेतिहर मजदूरों का कर्जा माफ हो ,60 साल से ऊपर के किसान, मजदूरों को 10हजार रुपये पेंशन मिले,कृषि वदुग्ध उत्पादों, फलों,सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए,कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास सहितसभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधारी जाए आदि ।आंदोलनकारी किसान नेताओं से केंद्र सरकार तीन दौर की इनसे बातकर चुकी किंतु समस्या का हल नही निकल रहा। पंजाब में किसानों के 40 संगठन हैं। इस बार के इस आंदोलन में 32 संगठन शामिल है। एक बड़ा सवाल यह है कि क्या से सिंधु बार्डर पर जमें किसान पूरे देश के किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्या इन्हें आम नागिरकों का जीवन प्रभावित करने का अधिकार है?इस आंदोलन को भी साल 2021 केआंदोलन से ही जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन इस बार के आंदोलन को सभी किसान संगठनों का समर्थन हासिल नहीं है।इस आंदोलन की बात यह है कि ये आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले नहीं हो रहा। पंजाब के भी सभी किसान संगठनों का ये आंदोलन नही है।हरियाणा के एक अन्य प्रमुख किसान नेता, बीकेयू चढूनी समूह के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनीने बताया कि उन्हें ‘दिल्ली चलो मार्च’ और चंडीगढ़ में सरकार के प्रतिनिधियों के साथहोने वाली बैठकों में आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘एमएसपी पर कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है, केंद्र सरकार का लिखित आश्वासन ही काफी है’। पूर्ववर्ती संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल रहे कुछ बड़े किसान नेताओं को यह भी संदेह है कि ‘दिल्ली चलो मार्च’ अप्रत्यक्ष रूप से पंजाब सरकार द्वारा प्रायोजित है, क्योंकि उसे मूंग के लिए एमएसपी जैसे चुनावीवादों को पूरा करने में विफल रहने के कारण किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहाहै।हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि पंजाब ने उन प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका जो बिना किसी बाधा का सामना किए बड़ी संख्या में शंभू और खनौरी सीमाओं तक पहुंचने में कामयाब रहे।बीकेयू के राकेश टिकैत का भी मानना है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन में कुछ कट्टरपंथी तत्व शामिल हो रहे हैं ! बातचीत में, राकेश टिकैत ने कहा कि वर्तमान आंदोलन में भाग लेने वाले कई नेता सतलज-यमुना लिंक नहर जैसे मुद्दों को उठाना चाहते हैं, जो पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच दरार पैदा कर सकते हैं. इसी तरह, कुछ लोग सांप्रदायिक मतभेद भी पैदा करना चाहते हैं. इसलिए, हम उनके आंदोलन में नहीं शामिल हैं, लेकिन हम उन उन्हें मुद्दा-आधारित समर्थन प्रदान कर रहेंगे। राकेश टिकैट ने सिसौली की बैठक के बाद कहा कि 21 फरवरी को जिला मुख्यालयों परट्रैक्टरों के साथ प्रदर्शन होगा। राकेशटिकैट ने कहा कि पंजाब में तीन मोर्चे हैं जिनमें से एक मोर्चा आंदोलन कर रहा है।यह संयुक्त किसान मोर्चा का आह्वान नहीं था और ना किसी से बात हुई थी लेकिन हम किसानों के साथ हैं। किसानों पर अत्याचार होगा तो हम चुप नहीं रहेंगे।कभी किसानों के देश का बडा केंद्र सिसौली था, किसानों की मांग और समस्याओं को लेकर यहां से मांग उठती थी। आंदोलन के निर्णय भी सिसौली से ही होते थे, अब ये सब पंजाब में चला गया। वहां आंदोलनकी बात चलती है तो समर्थन देना अब सिसौली की मजबूरी हो जाती है। लोकसभा चुनाव से पहले प्रस्तावित किसान आंदोलन को बेहद ही अहम माना जा रहा है। इन पंजाब के आंदोलनकारी किसान मानकर आए हैं, कि चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में दबाव देकर वह अपनी मांग पूरी करा सकतें हैं। असल में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर 13महीने तक चले आंदोलन पर केंद्र सरकार ने तीनोंकृषि कानूनों को वापस ले लिया था।इससे वहउत्साहित हैं और सोचे बैठें हैं कि वह दबाव देकर सरकार से अपनी मांग पूरी करा लेंगे। हालाकि संयुक्त किसान मोर्चा ने 16 फरवरी के भारत बंद का आह्वान करके देख लिया, कि पंजाब में ही उसके बंद का असर हुआ, बाकी सब जगह सामान्य रहा।दरअस्लसरकार भी किसानों को प्रसन्न करने के लिए उल्टे –सीधे निर्णय लेती रहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2019 में किसान सम्मान निधि कीशुरूआत की। इसके तहत किसान को साल में छह हजार रूपया अर्थात महीने का 500 रूपयाकिसान को दिया जाता है। इसे देने की क्या जरूरत थी। आज के मंहगाई के युग में इस 500 रूपये की राशि से क्या होता है? इस निर्णय से मोदी सरकार ने केंद्र पर करोड़ो रूपये प्रतिवर्ष का बोझ बढ़ा दिया। ये निर्णय ऐसा है कि आगे आने वाली सरकारें किसानों को प्रसन्न करने के लिए इस सम्मान निधि की राशि बढ़ाएंगी ही, कम नही कर पांएगी। समाज में और भी वर्ग हैं । सबसे बड़ा वर्ग व्यापारी है। वह सरकार को लगातार टैक्स देता है।सरकार उसे क्या देता है। यही हाल आयकरदाता का है। पत्रकारों के लिए कभी सरकारी स्तर से कुछ नही हुआ। जब आप खुद किसानों को सम्मान निधि के नाम पर धन बांटने लगोगे तो फिर तो वह आगे चलकर उल्टी साधी मांग करेंगे ही । किसान को किसान क्रेडिट कार्ड दिया हुआ है। इस पर चार प्रतिशत पर कर्ज दिया जा सकता है। सहकारी समिति तो डेढ प्रतिशत पर कर्ज देने लगी। पिछली कुछ सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ किए हैं। बिजली बिल माफ किए हैं तो अब तो ये मांग होनी स्वाभाविक है। किसान नेता कहते हैं कि सरकार व्यापारियों के कर्ज माफ करती रही है। व्यापारी को कोई कर्ज वैसे ही नही देता। दी गई राशि से ज्यादा मूल्य की सपत्ति रहन रखता है। कुछ बड़े व्यापारी जो देश से बाहर भाग गए ,उनकी भी देश में मौजूद संपत्ति सरकार जब्त करने में लगी है। कल रविवार में केंद्र के तीन मंत्रियों की आंदोलनकारी किसान नेताओं से बात हुई।केंद्र सरकार धान और गेंहू के अलावा मसूर,उड़द, मक्का और कपास पर भी न्यूनतम मूल्य देने को तैयार हो गई है किंतु इसके लिए किसानों को एनसीसीएफ,नेफेड और सीसीआई से पांच साल के लिए अनुबंध करना होगा। किसान नेताओं ने सरकार के फैसले पर विचार करने का निर्णय लिया है।किसाननेता 21 फरवरी से पहले सरकार को जवाब देंगे।इस दौरान आंदोलन जारी रहेगा।उम्मीद है कि पिछली बार वाला अडियल रूख किसान नेता नही अपनाएंगे। समस्या का समाधान निकल आएगा। पर सरकार को यह तो सोचना ही पड़ेगा कि देश में किसान हीअकेला उत्पादक नही है।और भी हैं। व्यापारी भी हैं, वे भी उत्पादक हैं। घाटे में आने पर उनके भी प्रतिष्ठान बंद हो जाते हैं। व्यापारी से तो बिजली की दर और ज्यादा वसूली जाती है।उनके लिए भी सरकार को सोचना और करना चाहिए।