Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगदेश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख कौन थी ?

देश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख कौन थी ?

कितना मुश्किल रहा उनका सफ़र, कितना संघर्ष किया ?

फातिमा शेख की कहानी जिसे इतिहास के पन्नों में क्यों नहीं मिली जगह

जाने – कुरान के पहले शब्द इकरा अर्थ क्या है

लेखक – मदन मोहन भास्कर

स्मार्ट हलचल/फातिमा शेख भारत की बेहतरीन समाज सुधारिका और शिक्षिका थीं। जिन्हें देश में आधुनिक शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला होने का गौरवशाली श्रेय प्राप्त था। फातिमा शेख को दृढ़ता, ईमानदारी और पूरी तरह से प्रतिबद्ध तरीके से रहने के लिए जाना जाता है । भारतीय समाज की महान महिला को उनके बलिदान, समर्पण, प्रतिबद्धता, मानव समाज की सबसे वंचित समूह महिलाओं के उत्थान के प्रति ईमानदारी के लिए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। देश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख ने समाजसेविका सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर इस देश में लड़कियों के लिए शिक्षा की अलख जगाई थी। 3 जनवरी को पूरे देश ने सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन मनाया और लड़कियों के लिए किए गए उनके कार्यों को याद किया गया। सावित्रीबाई फुले ने देश की लड़कियों के लिए काफी कुछ किया। अगर वह ना होती तो शायद लड़कियों की पढ़ाई के बारे में कोई बात तक नहीं करता। लेकिन सावित्रीबाई फुले के इस काम में बहुत सारे लोगों का सहयोग था। जिसे शायद इतिहास के पन्नों में वह जगह नहीं मिली जो उन्हें मिलनी चाहिए थी। उन्हीं में से एक नाम है फातिमा शेख । इनका नाम 09 जनवरी 2022 से पहले शायद सुना होगा। क्योंकि जब फातिमा शेख को उनके 191वीं जयंती के अवसर पर 9 जनवरी 2022 को गूगल ने डूडल बनाकर सम्मानित किया । तब लोगों का ध्यान फातिमा शेख के नाम की ओर गया है। फातिमा शेख वह महिला थी जो सावित्रीबाई फुले के साथ खड़ी थीं क्योंकि वह भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका बनीं। जिन्होंने 1800 के दशक में एक शैक्षिक क्रांति का नेतृत्व किया। सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थीं जिन्होंने लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला और उत्पीड़ित समुदायों को शिक्षित करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया। ज्योतिराव फुले के साथ वह दलितों और महिलाओं के कारणों का समर्थन करके सामाजिक सुधार के मार्ग पर चली गईं। जबकि नके योगदान से परिचित हैं।

 

फातिमा शेख का जन्म कब और कहाँ हुआ?

देश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। फातिमा शेख के पति का नाम शेख अब्दुल लतीफ और भाई का नाम उस्मान शेख था।

फातिमा शेख ने दी सावित्रीबाई को अपने घर में जगह

फातिमा शेख ने लड़कियों को पढ़ाने के लिए वक्त के साथ-साथ चीजें बदलने लगी और लोग अपने बेटियों को पढ़ाना शुरू करने लगे। ऐसा कहा जाता है कि जब ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं की शिक्षा की बात करना शुरू किया तो उनके इस काम से नाराज होकर उनके परिवार वालों ने उन दोनों को घर से निकाल दिया था। तब दोनों पति-पत्नी को फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान शेख ने अपने घर में जगह दी थी।

फातिमा शेख मजबूत इरादों वाली महिला

फातिमा शेख ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले जब महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास कर रहेथे तब कुछ कट्टरपंथियों द्वारा महिलाओं को शिक्षित करने की इस मुहिम को पसंद नहीं किया जिसके कारण ज्योतिबा फुले व सावित्रीबाई फुले को घर से निकाल दिया गया था। तब फतिमा शेख ने न केवल सिर्फ उनको घर में जगह दी बल्कि उनके इस मुहिम को पूरी तरह समर्थन करते हुए इस मुहिम से भी जुड़ गई। ये बात उस समय की है जब देश में दलितों को शिक्षा का अधिकार नहीं था, ऐसे में फातिमा शेख ने सिर्फ स्कूल में बच्चों को पढ़ाया ही नहीं बल्कि घर-घर जाकर लड़कियों की शिक्षा का महत्व बताती थीं।

फातिमा शेख संघर्षशील महिला –

फातिमा शेख का जीवन कितना मुश्किल रहा होगा सफ़र, कितना संघर्ष किया होगा। महिलाओं, दलितों के लिए रूढ़ीवादी समाज से जूझना,लड़कियों को शिक्षा प्राप्ति के लिए विद्यालय भेजनें के लिए लोगों को समझाना,फातिमा शेख ने जो सपना देखा उसके लिए उन्होंने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर काम किया। लेकिन यदि देखा जाये तो समाज लड़कियों की शिक्षा को लेकर इतना जागरुक है उतना उस समय नहीं था। सन 1848 में मुस्लिम लड़कियों के लिए स्कूल तक का सफ़र आसान नहीं था। जितनी रफ्तार से, जितनी संजीदगी से मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा के रास्ते पर चलना चाहिए था वो नहीं हुआ है। घरों से स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी तक का रास्ता बेहद लंबा होता है। अभी और संघर्ष की आवश्यकता है।

जागरूकता की आवश्यकता

जागरूकता की यदि हम बात करें मुस्लिम लड़कियों के लिए तो उनके लिए मुश्किलें और ज्‍यादा हैं। मुस्लिम समाज में वैसे भी शिक्षा का स्तर कम है और फिर लड़कियां हों तो हालात और ख़राब हो जाते हैं। जिन्हें मौका मिलता हैं वो लड़कियां मिसाल बन जाती है लेकिन ये मिसालें बहुत कम हैं। फातिमा शेख को अपने भाई उस्मान शेख का साथ मिला और उन्होंने वो रास्ता अपनाना जो आसान कतई नहीं था। आज भी समाज से फातिमा शेख निकल सकती हैं। लोग सावित्रीबाई फुले के बारे में तो जानते हैं, लेकिन फातिमा शेख जैसे कहीं गुम हो गईं। उनके बारे में पढ़ने को बहुत कुछ नहीं मिलता है। मुस्लिम लड़कियों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए फातिमा शेख ने संघर्ष किया, लड़ाई लड़ी और लोगों को लड़कियों के लिए शिक्षा का महत्व बताया। मुस्लिम समाज के कुछ लोग फातिमा शेख को सलाम कर रहे हैं लेकिन बहुत कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि फातिमा शेख कौन हैं, जबकि होना ये चाहिए था कि फातिमा शेख घर-घर में पहचानी जानी चाहिए। लेकिन ये समाज की हक़ीकत है कि हमें आंख से आंख मिलाकर बोलने वाली लड़कियां पसंद नहीं आती हैं। फातिमा शेख के बारे में जानने के लिए ज़रूरी है कि लड़कियां शिक्षित हों।

घर में ही शुरू किया देश का पहला स्कूल

फातिमा शेख ने लड़कियों और दलितों की शिक्षा पर काफी काम किया था। एक बार जब सावित्रीबाई फुले काफी बिमार पड़ गई थीं, तो अकेले फातिमा शेख ने पूरा स्कूल संभाला था। समाजसेविका सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर फातिमा शेख ने अपने घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया और देश का महिलाओ के लिए पहला स्कूल घर से शुरुआत की थी।

फातिमा शेख ने विरोध के बावजूद लिया शिक्षिका बनने का प्रशिक्षण

फ़ातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग भी ली थी। फ़ातिमा शेख और सावित्री बाई ने लोगों के बीच जाकर उन्हें अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने उनका विरोध किया। 1856 में सावित्रीबाई जब बीमार पड़ गई तो वह कुछ दिन के लिए अपने पिता के घर चली गईं। वहां से वह ज्योतिबा फुले को पत्र लिखा करती थीं। उन पत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार फ़ातिमा शेख ने उस समय स्कूल के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी उठाई और स्कूल की प्रधानाचार्या भी बनीं।

फातिमा शेख के परिवार ने किया शिक्षा का समर्थन

फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने फुले दम्पत्ती को अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में, उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था। फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले ने मिलकर समाज ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काम किया। फातिमा शेख और इनके पति शेख अब्दुल लतीफ़ ने हर संभव तरीके से सावित्रीबाई का दृढ़ता से समर्थन किया। फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया। सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई के साथ थे।

मुस्लिम दलित महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया

फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चियों को हक़ दिलाने और उन्हें शिक्षित करने की लड़ाई लड़ रही थीं। तब उन्हें लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। उनके लिए कई मुश्किलें पैदा की गईं। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारीं। उनकी इस लड़ाई में फातिमा शेख ने हाशिये पर खड़ी दलित, और मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया था।

 

जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी

फातिमा शेख ने सामाजिक प्रगति के लिए शिक्षा के महत्व को पहचाना और 1860 के दशक की शुरुआत में मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा प्रदान करना शुरू किया। बाधाओं को तोड़ दिया और भारत में महिला शिक्षा के लिए एक मजबूत उदाहरण स्थापित किया। फातिमा शेख न केवल एक शिक्षिका थीं बल्कि महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधारों की समर्थक भी थीं। उन्होंने सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय तौर पर भाग लिया और अपने पति शेख अब्दुल लतीफ जो एक समाज सुधारक और कार्यकर्ता थे, उनके साथ काम किया। उन्होंने जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता सहित अलग-अलग सामाजिक अन्यायों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

भारत में शिक्षा और महिला सशक्तिकरण में फातिमा शेख का योगदान

फातिमा शेख के प्रयासों ने महिला शिक्षा की नींव रखने में मदद की और चुनौतीपूर्ण सामाजिक मानदंडों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके काम ने महिलाओं की भावी पीढ़ियों को शिक्षा प्राप्त करने और लैंगिक समानता की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया।

फातिमा शेख की प्रेरक यात्रा

फातिमा शेख ने शिक्षा के लिए जब बिगुल बजाया उस समय महिलाओं की शिक्षा के सीमित अवसरों के बावजूद, फातिमा शेख ने सक्रिय रूप से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपनी शिक्षा निजी शिक्षकों से प्राप्त की और उर्दू, अरबी और फ़ारसी सहित कई भाषाओं में पारंगत हो गईं।

फातिमा शेख की जीवनी को पाठ्यक्रम में किया शामिल

भारत सरकार ने 2014 में फातिमा शेख की उपलब्धियों पर नई रोशनी डाली और अन्य अग्रणी शिक्षकों के साथ उर्दू पाठ्यपुस्तकों में उनके प्रोफाइल और जीवनी को शामिल किया।

कुरान के पहले शब्द इकरा अर्थ

कुरान का पहला शब्द है इकरा का अर्थ पढ़ या पढ़ना है। पहली बार मुहम्मद साहब पर पहला शब्द आया। वह यही इकरा/पढ़ शब्द था। पैग़म्बर मोहम्मद साहब फरमाते हैं कि अगर पढ़ने के लिए तुम्हें चीन भी जाना पड़े तो ज़रूर जाओ, सबके लिए पढ़ने का आदेश है लेकिन बावजूद इसके मुसलमान पढ़ाई के मामले में बहुत पीछे है और लड़कियों की हालात और भी खराब है। फिर भी जिन लड़कियों को पढ़ने के मौके मिलते हैं तो लड़कों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं। फातिमा शेख को याद करते हुए मुस्लिम समाज को चाहिए कि वो पढ़ाई के महत्व को समझे, सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए पढ़ाई महत्वपूर्ण है। दीन के साथ दुनियावी पढ़ाई के भी मायने हैं। कुरआन पढ़ें तों दुनियावी किताबें भी पढ़े। अपने बच्चों को स्कूल, कॉलेज भेजें और उन्हें बताएं कि शिक्षा क्या है, पढ़ाई क्या है। शिक्षा के महत्व लाभ के बारे में बताये।

फातिमा शेख का शिक्षा में योगदान

फातिमा शेख के घर की छत के नीचे ही स्वदेशी पुस्तकालय खोला। यही पर सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने हाशिए के दलित और मुस्लिम महिलाओं तथा बच्चों को पढ़ाय। जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित किया जा रहा था। फातिमा शेख ‘सत्यशोधक समाज’ की एक चैंपियन भी थीं। जिसकी शुरुआत फुले ने दलित समुदायों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए समानता आंदोलन के तौर पर की थी। उन्‍होंने घर-घर जाकर लोगों से संपर्क साधा और अपने समुदाय के सदस्यों को स्वदेशी लाइब्रेरी में पढ़ने तथा सीखने के लिए आमंत्रित किया, ताकि वे जाति व्यवस्था के बंधन से मुक्‍त रह सकें। उन्‍हें इसके लिए समाज में प्रभुत्‍व रखने वाले वर्ग के भारी प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ा जिन्होंने सत्यशोधक आंदोलन से जुड़े लोगों को अपमानित करने का प्रयास भी किया, लेकिन शेख और उनके सहयोगी डटे रहे।

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