पंकज शर्मा “तरुण
स्मार्ट हलचल|लगभग सभी राज्यों के छोटे बड़े शहरों में सड़कों पर सैलाब आने के समाचार अखबारों के माध्यम से तथा टेलीविजन पर देखने को मिल रहे हैं। मुंबई हो, नई दिल्ली हो या जोधपुर, नाव चलाते लोग देखने को मिल रहे हैं। कारों को, बाइक को, लोगों को, नदियों पर बनाए गए पुलों से, रपटों से, बहते, डूबते देखे जा रहे हैं। सड़कों में दस, बीस फीट के गड्ढे हमारे इंजीनियर्स की बौद्धिक क्षमता को खुद बयां कर रहे हैं।अभी तो सावन का महीना ही चल रहा है और हर तरफ से बचाओ- बचाओ का शोर कान फोड़ रहा है!
शहरों के मास्टर प्लान की पोल उस समय खुली जब गुरु ग्राम के राजमार्ग पर बीस फीट चौड़ा और उतना ही गहरा गड्ढा अचानक से हो गया । जिसमें एक चौदह टायर का बियर ले जा रहा ट्रक औंधा हो गया। गनीमत रही कि बेचारे ड्राइवर क्लीनर की जान बच गई।
मैं खुद पिछले दिनों जयपुर गया था, वहां मान सरोवर कॉलोनी में बीच सड़क में दस फीट खड्डा मैं स्वयं देख कर आया था। जबकि मानसून की पहली ही बरसात हुई थी। सड़कों पर गड्ढों की गिनती नहीं हो सकती बल्कि यूं कहें तो सही रहेगा कि सड़कें पानी पी गई या पानी सड़क खा गया! मुंबई जैसे महानगर में सड़कों पर चार पांच फिट पानी भर जाता है जो निर्माण कंपनी और सरकार की मजबूत रिश्तेदारी की करुण गाथा कहता लगता है!कमीशन के करिश्में आज भी दिखाई सुनाई पड़ रहे हैं! कई जगह पुल गिरने की घटना हुई, जिसमें कई निर्दोषों को अपनी जान और माल गंवाने पड़े!सूरत, वलसाड और अहमदाबाद की सड़कें भी पहली बरसात को नहीं झेल पा रही।
उत्तराखंड में तो नदियों की नाराजगी सामने आ रही है। पहाड़ों ने खिसकने की जैसे कसम ही खा ली है। हिमाचल में भी वर्षा का तांडव निरंतर जारी रहने से जन जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है। यहां भी पहाड़ों का खिसकना घरों का गिरना बहना जारी है। इन सबको देख कर पहाड़ों पर किया जाने वाला पक्का निर्माण जिसमें पक्के भवन, सड़कें शामिल हैं, से प्रकृति की नाराजगी व्यक्त होती है,जो हमें किसी अनिष्ट की तरफ संकेत कर संभल जाने को कह रही है। प्रकृति से छेड़छाड़ वाकई महंगी हो सकती है। पर्यावरण विदों,वन विदों द्वारा की जा रही गुहार पर जिम्मेदारों को ध्यान दे कर उनके सुझावों को अमल में लाना ही देश हित और मानव जाति के हित में होगा। कहीं ऐसा न हो कि अपनी विकास की बेसुरी डफली के फेर में हम निर्दोषों का कोई बड़ा नुकसान कर बैठें। वन क्षेत्रों में बलात उत्खनन किया जाना भी घातक है।यह स्थिति हर जगह है फिर चाहे वह मध्यप्रदेश हो या असम, छत्तीसगढ हो या आंध्र और कर्नाटक जैसे दक्षिण के राज्य हों। राजस्थान में तो सोलर प्लांट लगाने के नाम पर करोड़ों पेड़ काट दिए जाने की चर्चा है। वनों का संरक्षण किया जाना अति आवश्यक है वरना स्थिति नियंत्रण के बाहर होने पर सिवाय हाथ मलने के कुछ नहीं होगा। जो नेता पर्यावरण को हानि पहुंचा कर वोट पटाने का काम कर रहे हैं उनको विशेष रूप से इस गंभीर विषय पर सोचने की आवश्यकता है।