झारखण्ड के बाद क्या बिहार में फ्लोर टेस्ट से पहले ही सियासत में संकट के बादल मंडराने लगे हैं ?
स्मार्ट हलचल/बिहार में कुछ दिन पहले एक सियासी तूफान आया था, जो बाद में थम गया। लेकिन एक बार फिर से बिहार में सियासी बवंडर आने वाला है। ये बवंडर ऐसा है जो किसी भी ओर रुख कर सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले अगले आने वाले दिनों में आपको बहुत कुछ देखने को मिलेगा। अभी हाल ही में बिहार से अलग हुए झारखंड में सियासी हलचल देखने को मिली। जहां फ्लोर टेस्ट से पहले सत्तारुढ़ पार्टी के विधायक खरीद-फरोख्त से बचने के लिए रांची से हैदराबाद के लिए रवाना हो गए थे। अब यही चीज बिहार में भी देखने को मिल रही है। बिहार के भी विधायक को खरीद-फरोख्त का डर सता रहा है। झारखंड के बाद अब बिहार के भी विधायक खरीद-फरोख्त के डर से हैदराबाद के लिए रवाना हुए हैं।
बता दें कि महागठबंधन से नाता तोड़कर नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हो गए थे। और 28 जनवरी को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर उसी दिन शाम में फिर से 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। बिहार के राज्यपाल ने भी नीतीश सरकार को फ्लोर टेस्ट कराने की बात कही थी। बिहार विधानसभा में नीतीश सरकार अग्नि परीक्षा यानि फ्लोर टेस्ट 12 फरवरी को होना है। उससे पहले ही यहां पर सियासी हलचल तेज हो गई है।
फ्लोर टेस्ट से पहले बिहार कांग्रेस के 18 विधायक हैदराबाद के लिए रवाना हो गए। विधायकों के साथ बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा भी गए हैं। बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक है। विधायक अनवरुल हक निजी कारणों से दिल्ली में ही रूके हुए हैं। बताया जाता है जो 18 विधायक हैदराबाद गए हैं वे सभी 12 फरवरी तक पटना लौटेंगे। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस के कुछ विधायक जदयू के संपर्क में हैं। इसी कारण पार्टी ने फैसला लेते हुए सभी विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट करने का फैसला लिया है।
एक तरफ बिहार में फ्लोर टेस्ट से पहले कांग्रेस में टूट का डर है तो दूसरी तरफ बिहार के सत्ताधारी गठबंधन एनडीए में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। नीतीश सरकार को समर्थन दे रहे हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) प्रमुख जीतनराम मांझी लगातार अपनी मांग पर अड़े हैं। मांझी का कहना है कि उनकी पार्टी को सरकार में दो मंत्री पद दिए जाने का वादा किया गया था, उसे पूरा किया जाए। अभी सिर्फ मांझी के बेटे संतोष सुमन को मंत्री बनाया गया है। मांझी की मांगों का चिराग पासवान ने भी समर्थन देकर मुद्दे को हवा दे दी है। मांझी की पार्टी के 4 विधायक हैं। एक हफ्ते पहले ही मांझी को राजद की तरफ से ऑफर दिए जाने की खबरें आई थीं। हालांकि, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने दावों को नकार दिया था और एनडीए के साथ रहने का दम भरा था। चर्चा है कि मांझी की प्रेशर पॉलिटिक्स के आगे नीतीश सरकार को झुकना पड़ सकता है। राज्य में विधानसभा का नंबरगेम बड़ी वजह बन रहा है।
दरअसल, 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना है। विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। इसके लिए 122 विधायकों का समर्थन जरूरी है। सत्ता पक्ष के पास 128 विधायकों का समर्थन है। यानी बहुमत से 5 ज्यादा विधायक समर्थन में हैं। बीजेपी के 78, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के 4, जदयू के 45 और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है। वहीं, विपक्ष की बात करें तो कुल 114 विधायकों का समर्थन है। यानी बहुमत से सिर्फ 8 विधायकों की दूरी। राजद के 79, कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायक हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का भी एक विधायक है, जो ना तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में।
इससे पहले जेडीयू विधायक गोपाल मंडल ने ये कहकर चौंका दिया कि बहुमत परीक्षण में कुछ भी हो सकता है। उधर, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पहले ही कह चुके हैं कि बिहार की सियासत में खेल अभी बाकी है। अब उनकी पार्टी के नेता दावा कर रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि मांझी ही एनडीए की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। हालांकि जीतनराम के बेटे संतोष सुमन ऐसी किसी अटकलों से इनकार कर रहे हैं। एक और मंत्री पद की दावेदारी को पार्टी नेताओं की इच्छा बता रहे हैं। संतोष कहते हैं कि पार्टी के संरक्षक की डिमांड है। उनकी बात को गौर से सुना जाए तो उन्होंने (जीतनराम) कहा था कि हम नरेंद्र मोदी जी के प्रति आस्था रखते हैं और हम यहीं रहेंगे। उन्होंने मांग की है। अगर मंत्री के तौर पर मुझसे पूछते हैं तो मैं यही कहूंगा कि जो मुझे मिला है, उससे संतुष्ट हैं और मिलकर काम करेंगे।
हालांकि, बिहार की सियासत में दांव-पेच से माहौल गरमाया हुआ है। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा की कोशिश है कि नई सरकार में एक महत्वपूर्ण विभाग लिया जाए। या एक और मंत्री की मांग को आगे बढ़ाया जाए। चूंकि जीतनराम मांझी के बारे में चर्चा होती रही है कि वो महागठबंधन खेमे के संपर्क में है। ऐसी खबरें बार-बार आईं और मंत्री संतोष सुमन ने इन खबरों को खारिज किया।
रविवार देर शाम भी एक चर्चा सामने आई कि मांझी के बेटे संतोष सुमन ने नई सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। चर्चा इतनी ज्यादा हुई कि बाद में खुद संतोष सुमन ने ट्वीट करके कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है और मैं एनडीए के साथ हूं। चर्चाएं कई तरह की हो रही हैं। जीतनराम मांझी की तरफ से लगातार यह कहा जाता रहा है कि दूसरे खेमे से डिप्टी सीएम और सीएम पद का ऑफर मिल रहा है। उसके बावजूद वो एनडीए के साथ खड़े हैं। अब एनडीए की सरकार में जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन को जो विभाग (एससी-एसटी कल्याण विभाग) दिया गया है, वो वही पुराना मंत्रालय है जिसकी जिम्मेदारी पहले भी महागठबंधन की सरकार में संतोष के पास रही है। आरजेडी इन कयासों को भी खूब भुना रही है। आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी कहते है कि मांझी जी को एनडीए की नाव डुबाएंगे और पतवार की लेकर भागेंगे। उनका सम्मान नहीं हो रहा है। उनकी जो मांग है, वो एनडीए के लोग पूरा नहीं करेंगे। अभी तक कोई काम एक कदम आगे नहीं बढ़ा है। ये बता रहा है कि सबकुछ गड़बड़ है और ये आने वाले तूफान के पहले की खामोशी है।
इधर, बिहार में बदली सियासत के बीच डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। जाहिर है कि बिहार में अब लोकसभा चुनाव की गहमागहमी है। दोनों ओर से तैयारी 40 सीटों की जंग को लेकर हो रही है। लेकिन इस बीच हो रही बयानबाजी से सियासत अलग रंग ले रही है।
बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का भी एक विधायक है, जो ना तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में। आंकड़ों को देखें तो एनडीए हो या महागठबंधन, नीतीश कुमार की पार्टी जिधर का रुख कर लेती है, उधर आसानी से सरकार बन और बिगड़ जाती है। फिलहाल, महागठबंधन को सरकार बनाने के लिए आठ विधायकों का समर्थन जुटाना होगा। जीतनराम मांझी की हम पार्टी अगर महागठबंधन के साथ जाने का विकल्प चुनती है तो विधायकों का आंकड़ा 118 तक पहुंच जाएगा। AIMIM के एकमात्र विधायक का समर्थन भी अगर राजद नेतृत्व को मिल जाता है तो फिर महागठबंधन को सिर्फ तीन विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी।
दूसरा विकल्प यह भी है कि महागठबंधन मांझी और AIMIM को साथ लाए और फिर जेडीयू या बीजेपी में सेंध लगा दे। मांझी और ओवैसी के विधायक के साथ आने के बाद जेडीयू या बीजेपी के छह विधायक अगर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें तो बिहार विधानसभा की सदस्य संख्या 237 रह जाएगी और फिर बहुमत का आंकड़ा 119 विधायकों (AIMIM+) का होगा। ऐसे में महागठबंधन की सरकार बन सकती है।
महागठबंधन सरकार के लिहाज से तीसरी स्थिति यह है कि नीतीश या एनडीए के खेमे से 16 विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें। अगर ऐसा होता है तो बिहार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 227 रह जाएगी। ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 114 विधायकों का रह जाएगा और इस स्थिति में भी महागठबंधन सरकार बन सकती है। लेकिन ये अगर-मगर का फेर है।
जानकारों का कहना है कि बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं और यह लंबे समय से चर्चा रही है कि कांग्रेस विधायकों में टूट हो सकती है। जब-जब बिहार में कोई सियासी गतिविधि बढ़ती है। चाहे सरकार समीकरण बदलें या नई सुगबुगहाट की स्थिति हो, कांग्रेस के विधायकों को लेकर चर्चा तेज हो जाती है। इस समय 16 विधायक हैदराबाद में हैं। तीन विधायक ऐसे हैं, जो बाड़ेबंदी में नहीं गए हैं। इनमें अररिया से एमएलए अब्दुल रहमान, मनिहारी से मनोहर सिंह, विक्रम से सिद्धार्थ सौरभ का नाम शामिल है।
12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट होना है। सरकार के सामने पहली अग्निपरीक्षा स्पीकर अवध बिहारी चौधरी को हटाना है। चौधरी आरजेडी कोटे से विधायक हैं। उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। लेकिन चर्चा है कि जिस तरह से तेजस्वी यादव दावा कर रहे हैं कि विधानसभा के अंदर खेला होगा। अगर वाकई उनकी नजर जेडीयू, भाजपा या सत्तापक्ष से जुड़े अन्य दल के विधायकों पर है तो उन परिस्थितियों में सत्तापक्ष का बैकअप प्लान हो सकता है कि वो कांग्रेस से जुड़े विधायकों को अपने पक्ष में कर ले। क्या होगा यह तो 1 तारीख को ही पता चलेगा जब सरकार फ्लोर टेस्ट का सामना करेगी ।
अशोक भाटिया