उसने कलम उठाई थी सच के लिए, उसने बात की थी सच के लिए। लेकिन इस दौर में यही जुर्म हो गया। हत्यारों ने तीन गोलियां दाग दीं वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश के शरीर पर। कलम चलाने वाली महिला पत्रकार गौरी लंकेश का कसूर था कि वो लिखती थीं, बोलती थीं। लेकिन कुछ लोगों को उनका लिखना रास नहीं आया। लिहाजा कलम चलाने का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा था। 55 साल की दुबली पतली गौरी की शाम अपने ही घर में थी। जब हत्यारों ने उन पर गोलियां बरसा दी। सात गोलियां चली जिनमें से तीन गोलियां गौरी को लगी और कलम चलाने वाले हाथ कि जुंबिश खत्म हो गई।
सबसे पहले आपको एक कार्टून दिखाते हैं। गौरी लंकेश की फेसबुक वाल पर पांच सितंबर 2017 को एक कार्टून पोस्ट किया गया। यानी हत्या से कुछ घंटे पहले ही। इस कार्टून में राजा के कपड़े पहना एक शख्स जनेऊ पहने दूसरे शख्स को लटका रखा है। दूसरा शख्स जो ब्राह्मण की वेशभूषा में है वो उसके नीचे कूड़ादान रखा है। देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राजा के कपड़े पहने शख्स उस ब्राहम्ण को कूड़ेदान में डालने जा रहा है। साथ में एक लाइन भी ऊपर लिखी है- स्वच्छ केरल, हैप्पी ओनम। जिसके बाद ये कहा जाने लगा कि गौरी केरल में आरएसएस के लोगों के साथ हुई हिंसा का माखौल उड़ा रही थीं और असवंदेनशीलता बरत रही थीं और संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या पर ‘स्वच्छ केरल’ का संदेश प्रसारित कर रही थी। इसके बाद इसके समर्थन में भी कुछ पोस्ट किए गए औऱ कहा गया कि ये जातिवाद प्रथा पर चोट करने वाला पोस्ट था न कि संघ कार्यकर्ताओं से जुड़ा। लेकिन इसके कुछ ही घंटे बाद बेंगलुरु में आधी रात को ‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी। उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई।
गौरी लंकेश की हत्या को लेकर मीडिया जगत स्तब्ध हो गया। गौरी की विचारधारा को लेकर मीडिया दो हिस्सों में बंटा दिखा। पत्रकारों की एक जमात गौरी की हत्या को विचारधारा की हत्या करार देती रही तो और उन्हें इसके पीछे उसे भगवा ब्रिगेड का हाथ नजर आ रहा था तो वहीं एक धड़ा ऐसा भी था जिनका मानना था कि गौरी की हत्या के पीछे नक्सली या फिर भ्रष्टाचारी ताकतें भी हो सकती हैं, जिनकी वह लम्बे समय से मुखालफत कर रही थीं। आज हम आपको बताएंगे कि कौन थी गौरी लंकेश जिनकी एक रिपोर्ट ने मचा दिया तहलका और खो दिए प्राण साथ ही आज हम महिला पत्रकार की हत्या पर चले एजेंडे का भी विश्लेषण करेंगे।
गौरी लंकेश की हत्या के बाद हेडलाइन क्या होनी चाहिए। आम पत्रकार की भाषा में कहें तो, बेंगलूरू में एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या। लेकिन घटना को इस अंदाज में पेश करने की कोशिश की गई कि बेंगलूरू में बीजेपी विरोधी पत्रकार की हत्या हुई। किसी ने भी राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर कोई सवाल नहीं उठाए। हत्या पूरी तरह से कानून-व्यवस्था का मामला होता है। लेकिन किसी ने भी कांग्रेस की तत्तकालीन सरकार पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं समझी। बल्कि गौरी लंकेश की विचारधारा को आधार बनाकर सवाल उठाए गए। जिसमें नेता और कुछ पत्रकार सबसे आगे रहे। इन लोगों ने गौरी लंकेश की हत्या के आधे घंटे के अंदर ही ये तय कर लिया था कि हत्या के पीछे हिन्दूवादी संगठनों का हाथ है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो हत्या के कुछ ही देर बाद ट्वीट कर दिया कि बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ बोलने की कीमत जान देकर चुकानी पड़ेगी।