मुकेश खटीक
मंगरोप।कस्बे में इस बार गणेश चतुर्थी पर एक अनूठी पहल देखने को मिल रही है।यहां के बड़ा मंदिर स्थित अपने घर पर संचालक देवेन्द्र सोमानी ने गाय के गोबर से गणपति बप्पा की प्रतिमाएं बनाना शुरू किया है।खास बात यह है कि इस कार्य से कस्बे और आसपास की लगभग 50 महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं।महिलाएं अपने घरों पर ही गोबर से आकर्षक मूर्तियां तैयार करती हैं,जिन्हें बाद में रंग-रोगन और सजावट का काम सोमानी स्वयं करते हैं।इससे महिलाओं को न सिर्फ आर्थिक संबल मिल रहा है,बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बन रही हैं।देवेन्द्र सोमानी ने बताया कि आजकल बाजार में मिलने वाली प्लास्टर ऑफ पेरिस और चाइना से निर्मित मूर्तियां जल प्रदूषण बढ़ा रही हैं।इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने करीब चार साल पहले इको-फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण शुरू किया।ये प्रतिमाएं सस्ती होने के साथ-साथ उपयोगी भी हैं।पूजा के बाद विसर्जन गमले या खेतों में करने पर इसमें मौजूद बीज अंकुरित होकर पौधों का रूप ले लेते हैं।इस प्रकार भक्तों की आस्था का फल अन्न उत्पादन में भी बदल जाता है।पिछले तीन वर्षों से ये प्रतिमाएं महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश और राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में बिक रही हैं।इस वर्ष से इनकी बिक्री छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में भी शुरू हुई है,जहां से इनकी मांग लगातार बढ़ रही है।सोमानी का कहना है कि बरसात के मौसम में गोबर से मूर्तियां बनाना बेहद कठिन होता है,इसलिए वे अगले वर्ष की मांग को देखते हुए बरसात शुरू होने से पहले ही बड़ी मात्रा में प्रतिमाओं का निर्माण करेंगे।गौमाता संरक्षण को उद्देश्य मानकर शुरू किए गए इस प्रयास को समाज में सराहना मिल रही है।मूर्ति क्रेता सुनीता विजयवर्गीय ने बताया कि वे पिछले 3-4 सालों से गोबर से बनी गणेश प्रतिमा ही अपने घर में स्थापित कर रही हैं। इन प्रतिमाओं से किसी भी प्रकार की दुर्गंध नहीं आती और विसर्जन के बाद गमलों या खेतों में बीज अंकुरित होकर फल-फूल देने लगते हैं। उनके अनुसार इससे ऐसा लगता है कि गणपति बप्पा विसर्जन के बाद भी हमें अन्न रूपी आशीर्वाद देते रहते हैं।यह पहल न सिर्फ महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवा रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और गौ सेवा का संदेश भी दे रही है।मंगरोप से उठी यह अनूठी पहल पूरे देश के लिए प्रेरणादायी बन सकती है।


