असिस्टेंट डायरेक्टर APO,कांग्रेस ने साधा निशाना
(हरिप्रसाद शर्मा)
स्मार्ट हलचल/ अजमेर/राजस्थान में बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई किताब ‘आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ अब सियासी बहस का केंद्र बन गई है। इस विवाद के चलते माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान ने सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा को एपीओ कर दिया है और अब उनका मुख्यालय शिक्षा निदेशालय, बीकानेर स्थानांतरित कर दिया गया है।
*विवाद की जड़ में क्या है?
दरअसल, इस किताब में आजादी के बाद भारत के विकास की कहानी प्रस्तुत की गई है, लेकिन इसमें मुख्यत: गांधी-नेहरू परिवार और कांग्रेस पार्टी से जुड़े प्रधानमंत्रियों को ही प्रमुखता दी गई है। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान को लेकर सामग्री बेहद सीमित है। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई जब यह बात सामने आई कि पिछले 11 वर्षों से देश का नेतृत्व कर रहे पीएम मोदी को किताब में पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया। सरकार का कहना है कि इस एकतरफा प्रस्तुति के चलते विद्यार्थियों को यह किताब अब नहीं पढ़ाई जाएगी। राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्पष्ट रूप से कहा, अगर किताब में गलत जानकारी है तो पैसे बेकार चले जाएं, लेकिन हम छात्रों को जहर नहीं पिलाएंगे। उनके इस बयान से यह स्पष्ट है कि सरकार इस किताब को शिक्षा से हटाने के अपने फैसले पर अडिग है।
किताब की छपाई और वितरण
इस पुस्तक को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने तैयार कराया है और इसे राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल द्वारा 2025 के नए शैक्षणिक सत्र के लिए छपवाया गया है। करीब 4.90 लाख किताबें छापकर राज्य के 19,700 स्कूलों में भेजी जा रही हैं। इनमें से लगभग 80 प्रतिशत किताबें पहले ही वितरित की जा चुकी हैं।
*दिनेश ओझा पर कार्रवाई क्यों?
सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा, जो इस प्रक्रिया में शामिल थे, उन्हें इस मामले में एपीओ कर दिया गया है। हालांकि ओझा ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि यह किताब सरकार की अनुमति से ही छापी गई थी और 2026-27 में पाठ्यक्रम संशोधन होना है। ऐसे में इस साल वही किताब दी गई जो पिछले वर्षों में भी इस्तेमाल हो रही थी। ओझा ने सवाल किया कि जब किताब पहले से स्वीकृत थी, तो अब उन्हें क्यों हटाया गया?
*कांग्रेस ने किया सरकार पर वार
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह शिक्षा व्यवस्था पर एक वैचारिक हमला है। उनका आरोप है कि भाजपा सरकार शिक्षा के माध्यम से विचारधारा थोपने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने सवाल किया कि क्या शिक्षा का उद्देश्य सत्तारूढ़ दल की छवि बनाना है, या छात्रों को निष्पक्ष और संतुलित जानकारी देना?
*पहले भी हो चुकी हैं कार्रवाई
बताया जा रहा है कि इससे पहले भी बोर्ड के एकेडमिक डायरेक्टर राकेश स्वामी को डेढ़ महीने पहले एपीओ कर दिया गया था। अब ओझा पर गाज गिरी है, जो बोर्ड में प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर कार्यरत थे। राजस्थान में किताब को लेकर उत्पन्न विवाद केवल पाठ्य सामग्री की निष्पक्षता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा और राजनीति के टकराव का प्रतीक बन गया है। जहां सरकार का तर्क है कि छात्रों को एकतरफा जानकारी नहीं दी जा सकती, वहीं विपक्ष इसे विचारधारा थोपने की कवायद बता रहा है। अब देखना यह है कि इस विवाद के बाद राज्य सरकार शिक्षा प्रणाली में किस तरह का नया संतुलन स्थापित करती है, और क्या विद्यार्थियों के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।