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सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद अब पुत्र वधु को मिल सकेगी अनुकम्पा नियुक्ति

सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद अब पुत्र वधु को मिल सकेगी अनुकम्पा नियुक्ति

हाइकोर्ट की डिवीजन बैंच ने दिया ऐतिहासिक फैसला, सरकार को पुराने नियमों में संशोधन के भी दिए निर्देश
हरसौर
स्मार्ट हलचल/राजस्थान में अब ड्यूटी के दौरान यदि किसी सरकारी कर्मचारी की मौत होती है तो उसकी पुत्र वधु को भी नौकरी मिल सकेगी। यह नौकरी मृतक सरकारी कर्मचारी के स्थान पर मिलेगी। राजस्थान उच्च न्यायालय की डिवीजन बैंच ने मृतक कर्मचारी के आश्रित व अनुकंपा नियुक्ति नियम 1996 के अनुसार पुत्रवधू को योग्य नहीं मानने के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला पारित करते हुए पुत्र वधू को अनुकंपा आधार पर नियुक्ति के योग्य माना है तथा पुत्रवधू को परिवार की आवश्यक सदस्य के रूप में स्वीकार कर मृतका सास के स्थान पर तीन माह में नियुक्ति देने का आदेश पारित किया हैं।
अब तक मृतक कर्मचारी की पत्नी या पुत्र को ही नौकरी दिए जाने का प्रावधान था, लेकिन भविष्य में पुत्र वधु को भी नौकरी मिल सकेगी। हाइकोर्ट के नए फैसले से बड़ी संख्या में मृतक आश्रितों की पुत्र वधुओं को लाभ मिलेगा। इनसे जुड़े कई प्रकरण सरकार के समक्ष विचार के लिए लंबित थे।

ये है मामला- याचिकाकर्ता बांसवाड़ा जिले की गवरी देवी लोक स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग में चतुर्थ श्रेणी के पद पर कार्यरत रही तथा उसके दो पुत्र शंकर व बसंत थे, जिनकी मृत्यु 2006-07 में साथ में हो गई थी। गवरी देवी एक पुत्री थी जिनकी शादी होने पर अपने पति के साथ ससुराल में जीवन यापन कर रही थी। गवरी देवी की सेवारत रहते हुए वर्ष 2013 में मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के उपरांत पुत्र वधू दुर्गादेवी द्वारा अपनी मृतका सास के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने के लिए आवेदन पेश किया। जो वर्ष 2013-14 पीएचडी विभाग के सक्षम अधिकारियों द्वारा यह कहकर निरस्त दिया कि पुत्रवधू मृतक कर्मचारियों के आश्रित श्रेणी में नहीं होने तथा अनुकंपा नियुक्ति नियम 1996 के योग्य नहीं हैं। आवेदन विभाग द्वारा निरस्त होने पर दुर्गादेवी ने प्रदेश के सीएम के नाम प्रार्थना पत्र पेश किया, जिस पर सहानुभूति पूर्ण विचार के लिए निर्देश दिए गए। मगर कोई आवश्यक कार्रवाई नहीं हुई।

एकल पीठ में भी याचिका हुई खारिज- 2018 में दुर्गादेवी ने उच्च न्यायालय की एकल पीठ के समक्ष याचिका दायर की। एकल पीठ द्वारा खारिज कर दी गई। जिससे उसकी उम्मीदों को झटका लगा।

डिवीजन बैंच ने लिया ऐतिहासिक फैसला-डिवीजन बैंच ने एकल पीठ द्वारा याचिका खारिज करने के बाद उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के समक्ष अपील पेश की। दुर्गादेवी की ओर से अधिवक्ता रामदेव पोटलिया ने न्यायालय में मजबूती के साथ पैरवी कर बताया कि सास और पति की मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हैं। परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है। प्रार्थी अपनी सास पर ही निर्भर थी। जिससे सास की मृत्यु के बाद उसके परिवार का भरण पोषण नहीं हो पा रहा है तथा मृतका सास गवरी देवी के परिवार में दो विधवा पुत्रवधू है तथा उसके पोते बहुत छोटे नाबालिग हैं। सास की मृत्यु के उपरांत दुर्गादेवी ने नियमानुसार आवेदन पेश किया है। वह पूरी तरह अपनी सास पर निर्भर थी। तथा पुत्रवधू परिवार की एक सदस्य होती है। जिनको विभाग द्वारा आश्रित की श्रेणी में नहीं मानना प्रार्थी के साथ घोर अन्याय हैं।

4 वर्ष बाद दाखिल की याचिका-
विभाग द्वारा आवेदन निरस्त करने के बाद प्रार्थियां ने मुख्यमंत्री के समक्ष भी नियुक्ति के लिए गुहार लगाई गई तथा बार-बार प्रयास करती रही एवं उसे कानूनी ज्ञान पूर्ण रूप से नहीं होने तथा आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण न्यायालय में चार वर्ष बाद याचिका दायर की गई। सरकार द्वारा बहुत से मामलों में अनुकंपा आधार पर नियुक्ति मामलों में शीथिलन प्रदान कर देरी को स्वीकार कर नियुक्ति प्रदान की गई।

सरकार बोली…यह नियम विरुद्ध-सरकार की ओर से पक्ष रखा गया की अनुकंपा नियुक्ति नियम 1996 में पुत्रवधू आश्रित श्रेणी में नियमों में नहीं आने तथा देरी से याचिका दायर करने के आधार पर अपील खारिज करने का अनुरोध किया गया। उसका आवदेन नियम विरुद्ध हैं। जिसको उच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकार किया गया। उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच द्वारा याचिका देरी से पेश करने के सरकार की ओर पेश विरोध को उचित नही माना। उच्च न्यायालय की डिवीजन बैंच ने दुर्गादेवी की अपील की सुनवाई के उपरांत महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए उसे तीन माह में नियुक्ति करने का आदेश पारित किया। साथ ही न्यायालय द्वारा उक्त मामले में अहम सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए आदेश पारित किया कि राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2020 में अनुकंपा नियुक्ति नियम 1996 में संशोधन कर विधवा पुत्र वधु को भी अनुकंपा आधार पर नियुक्ति प्रदान करने में आश्रित की श्रेणी में मानने योग्य होने का नियम जारी किया गया। विधवा पुत्रवधू को उक्त नियम में शामिल नहीं करना न्यायसंगत नहीं हैं। तथा पुत्र वधु को आश्रित की श्रेणी में मानना उचित होगा। विधवा पुत्र वधु परिवार के एक सदस्य के रूप में है तथा वह अपने ससुराल पक्ष में मृतका सास पर प्रत्यक्ष तौर पर निर्भर हैं तथा विधवा पुत्र को 3 माह में नियुक्ति प्रदान की जाए।

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