कपड़े के टुकड़ों से रची गई कल्पना की बगिया, आर्ट जंक्शन में खिला रचनात्मकता का फूल
उदयपुर, 14 जुलाई।स्मार्ट हलचल|शहर के समीप उबेश्वर रोड स्थित आर्ट जंक्शन रेज़िडेंसी में जोधपुर के वरिष्ठ कलाकार डॉ. भूपत डूडी की अनूठी कला प्रदर्शनी “फ्लोरल रिवरी” का भव्य उद्घाटन हुआ। कला जगत में संवेदनशील और नवाचारपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए पहचाने जाने वाले डॉ. डूडी की यह प्रदर्शनी एक रचनात्मक प्रयोगशाला बनकर उभरी है, जहां प्रकृति, कल्पना और पुनर्चक्रण एक नई सृजनात्मक दिशा देते हैं।
प्रदर्शनी का संयोजन और क्यूरेशन डॉ. चिमन डांगी ने किया।
उद्घाटन अवसर पर वरिष्ठ चित्रकार छोटूलाल, एनआईएफटी के प्रो. नीलेश कुमार, पुलिस मुख्यालय के अतिरिक्त निदेशक डॉ. कमलेश शर्मा, चित्रकार सूरज सोनी, अमित सोलंकी, शर्मिला राठौड़, भूपेश द्विवेदी, दिलीप डामोर, नवलसिंह, शरद भारद्वाज, रविन्द्र गहलोत, विनीता भारद्वाज, चोखाराम, विमलेश, ललिता, करिश्मा, पक्षीविद विनय दवे, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर जय शर्मा सहित शहर के कला-प्रेमियों, युवा कलाकारों, शिक्षकों और पर्यावरण-संवेदनशील दर्शकों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।
कला का नया माध्यम: कपड़े का वेस्ट मटेरियल:
डॉ. डूडी की इस कला श्रृंखला की सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने परंपरागत रंग और ब्रश का त्याग कर महिलाओं द्वारा सिलाई-बुनाई के दौरान बचे कपड़ों के टुकड़ों को एकत्रित कर मिक्स मीडिया के रूप में प्रयोग किया।
इन कपड़ों को एक कलात्मक अनुशासन और अभिव्यक्ति के रूप में सजाया गया है, जिससे चित्रों में फूल, पत्तियां, वनस्पति और नारी-संवेदना के अद्भुत भाव उभरते हैं।
यह पहल न केवल पर्यावरण-संवेदनशीलता का संदेश देती है, बल्कि रचनात्मक पुनरावृत्ति (क्रिएटिव रिसाइकलिंग) की उत्कृष्ट मिसाल भी प्रस्तुत करती है।
कला और प्रकृति का संवाद:
प्राकृतिक वातावरण में आयोजित यह प्रदर्शनी दर्शकों को एक आत्मीय और संवेदी अनुभव से जोड़ती है। “फ्लोरल रिवरी” मानो कपड़े की कतरनों से बुना कोई सपना हो — जिसमें कल्पना और संवेदना मिलकर जीवन के सौंदर्य को रेखांकित करते हैं।
पारिवारिक और रचनात्मक माहौल:
रविवार के दिन आयोजित यह प्रदर्शनी आसपास के पिकनिक स्थलों के साथ एक रचनात्मक अवसर बनकर सामने आई, जहां परिवार सहित बड़ी संख्या में आगंतुक पहुंचे। आयोजकों ने इसे “रंगों का उत्सव, जहां आपकी उपस्थिति ही सबसे सुंदर रंग है” — इस भावना के साथ प्रस्तुत किया।
पत्तियों पर सिलाई से बना सौंदर्य:
डॉ. डूडी की इस प्रदर्शनी में सबसे ज़्यादा ध्यान खींचने वाला दृश्य रहा — पौधों की कटी-फटी पत्तियों को कपड़े की कतरनों के साथ सिलकर तैयार की गई रचनाएं।
इनमें पैबंद लगे कपड़े के टुकड़ों को पत्तियों के साथ इस कुशलता से जोड़ा गया कि पहली नजर में यह अंतर कर पाना मुश्किल था कि पत्तियों पर कपड़ा चिपका हुआ है।
सदियों पुरानी “रफू” परंपरा को नई कला-भाषा में प्रस्तुत करती ये कलाकृतियां रचनात्मक उपचार की गहरी भावना को दर्शाती हैं।
डांगी ने बताया कि यह प्रदर्शनी आगामी सप्ताह भर तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी। इसमें प्रवेश निःशुल्क है।
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