भेरूलाल गुर्जर
बेरा । दीपावली पर गुर्जर समाज द्वारा कही बरसों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है । आंधी जाडा की बेल के साथ साथ पूर्वजों का तर्पण किया जाता है और खीर पुडी भोग लगाया जाता है । भीलवाड़ा जिले में पुरानी परंपरा को गुर्जर समाज वर्षों से चली आ रही एक अनोखी परंपरा को आज भी जीवंत रखा है ।दीपावली के दिन सुबह गुर्जर समाज के लोग पूर्वजों की आत्मा की शांति और स्मरण के लिए विशेष तर्पण करते हैं वह भी आंधी जाडा की बेल के साथ । इसके तर्पण के पीछे सबसे बड़ा संदेश आपसी एकता व भाईचारा का है । तर्पण के दिन समाज के लोग अपने पुराने मनमुटाव झगड़े और शिकायत को भूल कर एक साथ बैठते हैं । इस सामूहिक आयोजन से समाज में नई ऊर्जा और सौहार्द का संचार होता है समाज के बुजुर्गों का मानना है कि इस तरह की परंपरा नई पिढी को अपने संस्कारों संस्कृति और पारिवारीक मूल्यौ से जोड़ती हैं पूर्वजों का तर्पण केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि यह हमारी जडों से जुड़ने का माध्यम है क्षेत्र के बेरा बालेसरिया जसवंतपुरा सूरजपुर चेची खेड़ा दूदेला रूपाहेली खुर्द नानकेपुरा भेरू खेड़ा हाथीपुरा गागंलास करियाला करजालिया डोटा एवं कहीं गांवौ मैं यह परंपरा निभाई जाती हैं बेरा गांव के पूर्व सरपंच मोहनलाल गुर्जर बताते हैं कि गुर्जर बाहुल गांवौ में सभी परिवार के लोग अपने घरों से खीर पुरी बनाकर गांव के तालाब पर सामूहिक एकत्रित होते हैं तर्पण से पूर्व खीर पुरी कोऔं गाय कुत्ते का ग्रास निकालते हैं जब तक कोएं खीर पुरी को खाने नहीं आते तब तक तर्पण शुरू नहीं करते हैं बुजुर्गों ने बताया कि पहले कोवा खाता है अगर 20 से 25 मिनट तक खीर पुरी वह नही खाता तब तक तर्पण का इंतजार करते थे लेकिन अब तो लव बिल्कुल ही कम दिखते हैं कोऔं की जनसंख्या कम होने के कारण समय पर पर नहीं आते हैं इसीलिए गाय व कुत्ते के लिए ग्रास निकल कर तर्पण शुरू किया जाता है एक साथ एकत्रित होकर तालाब में पड़ी आंधी जाड़े की बेल को पानी में ऊपर लाकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं ऐसी मान्यता है कि जिस तरह आंधी जाड़े की बेल व काचरा की बेल पर फल लगते हैं वैसे ही परिवार में भी वंशवृद्धि होती हैं काचरा की बेल को एक साथ पानी में उठाकर वापस पानी में छोड़ देते हैं फिर लोटे में जल भरकर बेल को पैर बांधकर अपने साथ घर पर ले जाते हैं जहां पूरे घर मैं गंगाजल का छिड़काव लगते हैं जिससे शुभ माना जाता है घर मैं बीमारियां दूर रहती हैं सुख शांति रहती हैं समाज के सभी लोग अपने पूर्वजों को याद कर एक साथ बैठकर घर पर भोजन करते हैं ।


