गुरला । गुरलां गांव भीलवाड़ा राजसमन्द राष्ट्रीय राजमार्ग 758 पर स्थित होने के कारण हर आने जाने वाले वाहन यहां रुककर सिंघाड़े खरीदते है। गुरलां गाँव स्थित रणजीत सागर तालाब में सिंघाड़े की बम्पर खेती की जाती है जो भीलवाड़ा जिले सहित कई जिलो में अपनी पहचान बनाते हुए मशहूर है। इस बार इन्द्र देव मेहरबान हुआ और मानसून का सक्रीय दौर बराबर जारी रहा। जिसके चलते गुरलां रणजीत सागर तालाब अपनी भराव क्षमता को पूरा कर पाया। साथ ही तालाब की चादर भी चलने लगी। इसी रणजीत सागर तालाब में सिंघाड़े की खेती हर वर्ष की जाती है, जो भीलवाड़ा जिले सहित आस पास के कई जिलो में अपनी पहचान गुरलां के रसीले सिंघाड़े के रूप में बनाये हुए है। गुरलां स्थित रणजीत सागर तालाब में चित्तौड़गढ़ जिले से कहार जाति के लोग यहां आकर करीब 10 से 12 बीघा में सिंघाड़े की खेती करते है।गुरला संवाददाता बद्री लाल माली ने बताया की सिंघाड़े की खेती वर्ष में केवल दो से तीन महीने ही होती है, जो शारदीय नवरात्रा से प्रारम्भ होती है और नव वर्ष के आगमन तक समाप्त हो जाती है। यहाँ से होलसेल में 5 से 6 क्विंटल सिंघाड़े प्रतिदिन गाड़ी से कांकरोली, उदयपुर,चित्तौड़गढ़ तथा भीलवाड़ा जिले की कई मंडियो मे पहुचाये जाते है। गणपत कहार ने बताया कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर तालाब स्थित होने के कारण दिन भर यहां से गुजरने वाले वाहन चालक वाहन रोककर सिंघाड़े खरीदकर ले जाते है ।
ऐसे तैयार होते हैं –
किसान बेल से सिंघाड़े हरे या लाल रंग के निकालते हैं। इनको टीन के डिब्बों में 120 डिग्री पर आधा घंटा उबालते हैं। काले रंग का उपयोग करते हैं। हालांकि किसान रतन केवट का कहना है बिना रंग का इस्तेमाल किए भी सिंघाड़े खाने योग्य होते हे और उनका स्वाद बेहतर होता है लेकिन लोग काला सिंघाड़ा ही पसंद करते हैं। ग्राहक हरे सिंघाड़े को कच्चा मानते हैं।किसानों ने बताया कि जुलाई में बारिश से पहले या एक बारिश होने के बाद जब तालाब में कम पानी होता है तब सिंघाड़े की बेल या सिंघाड़ा लाकर तालाब में बुआई कर देते हैं। ये फसल अक्टूबर में लगने लगती है। बेल पानी के साथ ऊपर आकर सतह पर तैरती रहती है। नाव की मदद से किसान बेल तक पहुंचते हैं और सिंघाड़े तोड़ लाते हैं। बेल से किसान 10 से 15 बार सिंघाड़े तोड़ते हैं। भीलवाड़ा-उदयपुर राजमार्ग पर गुरलां के रणजीत सागर तालाब में इन दिनों सिंघाड़े की खेती की जा रही है। हर साल करीब 10 से 15 बीघा क्षेत्र में सिंघाड़े की खेती होती है। सिंघाड़े की फसल 3 महीने में तैयार हो जाती है। एक बीघा में 60 -70 हजार रुपए तक मुनाफा कमाया जा सकता है। अच्छी पैदावार होने पर मुनाफा एक लाख रुपए तक पहुंच जाता है। सिंघाड़े की खेती करने वाले ने बताया कि यह खेती 6 महीने की होती है। तालाब में सिंघाड़े की बेल रोपने से लेकर फसल पकने में 3 से 4 महीने लगते हैं। करीब दो महीने तक फसल लेते हैं। गुरलां के सिंघाड़े पाली, जोधपुर, अजमेर, चित्तौड़गढ़, कांकरोली व उदयपुर तक जाते हैं। तालाब के किनारे गुरलां बस स्टैंड पर सिंघाड़े की खूब बिक्री होती है। 80 से 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से सिंघाड़े बेचे जाते हैं। गुरलां को फलों के गांव के नाम से भी जाना जाता है।


