सांवर मल शर्मा
आसींद । वृन्दावन की सुप्रसिद्ध साध्वी कृष्णप्रिया जी की अमृतमयी वाणी में राजस्थान के भीलवाड़ा में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के चतुर्थ दिवस की कथा का शुभारम्भ अतिदिव्य शिव रुद्राष्ट्रकम ” नमामि शमीशन निर्वाण रुपम ” के साथ हुआ.. देवी जी ने बताया जो भी शिव रुद्राक्षम का पाठ प्रतिदिन करता है भोलेनाथ की उसपर असीम कृपा बरसती है और उसके सभी संकट दूर होते हैं..लोगो में शिव कथा के प्रति उत्साह देखते ही बनता है.. दूर दराज से लोग आकर शिव महिमा सरिता में गोते लगाते हुए नजर आये.. उनका मानना है कि पंडाल में बैठकर कथा सुनने एक अलग ही आनंद है… इससे शिव के प्रति समीपता का प्रकट होती है..
कथा के चौथे दिन पूज्या कृष्णप्रिया जी ने बताया कि – समय के साथ चलना अच्छी बात है लेकिन साथ ही हमें अपने संस्कार और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए.. बड़ों को प्रणाम करना, बड़ों का आदर सत्कार करना, अथिति सेवा पूजा पाठ और धर्म कर्म बच्चों को बचपन से सीखना चाहिए साथ ही घर के माहौल को भी अच्छा रखें.. कलह इत्यादि न करें.. क्योंकि बालक जैसा देखते हैं वैसा ही उनका जीवन बन जाता है इसीलिए पहले खुद अच्छे आचरण करें जिससे बच्चों को भी अच्छे आचरण करने की सीख मिले..
” थारे घट में बसा है भगवान मंदिर में कहीं खोजतो फिरे ”
इस भजन के माध्यम से देवी जी ने समझाया कि भगवान को कहीं और ढूंढने की जरूरत नहीं है भगवान तो स्वयं हमारे भीतर विराजमान होते हैं.. कोई भी कार्य करने से पहले हमें जो अंदर से चेतना आती है कि यह कार्य सही है या गलत वही भगवान है.. भगवान हमारे मन में ही बसते हैं लेकिन एक अज्ञान का पर्दा पड़ा होता है… ज़ब उस पर्दे को अच्छे कर्म, सत्संग और कथाओं द्वारा हटा दिया जाता है तो भगवान का स्वतः ही साक्षात्कार हो जाता है..
84 लाख योनियों के बाद ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है जिसमें हमें श्री राम की भक्ति श्री कृष्ण की भक्ति भोलेनाथ की भक्ति करने का सौभाग्य प्राप्त होता है.. यह सौभाग्य तो देवों को भी प्राप्त नहीं है.. मनुष्य योनि एकमात्र ऐसी यानी है जिससे जन्म मरण के बंधन से छूटा जा सकता है और प्रभु की प्राप्ति की जा सकती हैतो इस अमूल्य जीवन को व्यर्थ ना करें हर पल हर समय प्रभु का नाम स्मरण करते हुए सत्कर्म करें..
कथा के चौथे दिन भगवान शिव और पार्वती के विवाह का अद्भुत वर्णन किया गया.. उन्होंने बताया कि पार्वती जी के पिता हिमालय जी के यहां से उन्हें दान दहेज में बहुत सारी वस्तुएं मिली लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं रखा सब कुछ दान कर दिया.. पार्वती की अत्यंत कहने पर उन्होंने एक खाट का पाया अपने पास रखा जिसे खटवांग कहते हैं जो की भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है और जो उन्हें आज भी चढ़ाया जाता है…
आगे कथा में श्री गोरखनाथ जी के गुरु श्री मछिंद्रनाथ जी की कथा श्रवण कराई..साथ ही उनके अनेक दिव्य अवतरो की कथा का विस्तृत वर्णन किया.. उन्होंने बताया भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए अनेक स्तुति या साधनों की आवश्यकता नहीं है उनके सामने जाकर सच्चे मन से मौन हो जाए वह तो अंतर्यामी है बिना कहे सब समझ लेते हैं… वह तो एक लोटे जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं.. और आपके भाग्य में न होने पर भी आपकी समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं.. उन्हें आपकी श्रद्धा भक्ति प्रिया है ना की साधन.. जिसे कोई स्वीकार नहीं करता उसे मेरे महादेव स्वीकार करते जैसे आक का पुष्प, धातुरे का फल, भस्म इत्यादि…
आगे कथा में देवी जी ने काशी जी की महिमा बताते हुए कहा कि- “माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ ने भ्रमण करते हुए काशी नगरी का निर्माण किया.. काशी कोई साधारण नगरी नहीं है वह तो साक्षात भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान है.. इसीलिए काशी में करने वाला चांडाल भी शिव स्वरूप होता है.. काशी में करने वाले को भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देकर तारते हैं इसीलिए उसका दाहिना कान मुड़ जाता है.. काशी के सभी घाट, सभी शिवलिंग इत्यादि अत्यंत दुर्लभ हैं.. काशी में चार चीज़ मुक्ति को देने वाली हैं.. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर वाहिनी गंगा, काल भैरव एवं माता अन्नपूर्णा..
आगे कथा में तरीका और की कथा सुनाते हुए कहा कि-” तारकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु केवल शिव के अंश से ही हो सकती है.. इसी संदर्भ में आगे श्री कार्तिकेय जी की उत्पत्ति की विस्तृत कथा का वर्णन किया.. और तारकासुर के वध की कथा सुनाई..
आगे कथा में माता पार्वती द्वारा हल्दी व चंदन के उबटन से भगवान गणेश की उत्पत्ति वर्णन किया और बताया कि ” जब भगवान गणेश ने महादेव जी को माता की आज्ञा पर प्रवेश से रोका तो उन्हें महादेव के गुस्से का शिकार होना पड़ा.. इसके बाद जब माता पार्वती ने भोलेनाथ को सब बताया तो भोलेनाथ ने उन्हें हाथी के बच्चे का सिर लगाक र पुनर्जीवित कर दिया साथ ही सभी देवताओं द्वारा उन्हें प्रथम पूजनीय होने का वरदान प्राप्त हुआ.. गणेश जी की पूजा अर्चना करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और कोई भी विग्रह नहीं आता साथ ही अच्छी बुद्धि प्राप्त होती है जैसे सफलता के रास्ते स्वतः ही खुल जाते हैं.. घर के बाहर चाहे कितना भी शुभ लाभ लिख लो लेकिन जब तक आप किसी का भला नहीं करेंगे तब तक लाभ होना सम्भव नहीं है… इसीलिए परोपकारी बने.. और ईश्वर का धन्यवाद करें कि उन्होंने आपको देने वालों की श्रेणी में रखा है ना कि लेने वालों की…
कथा में ऐसे ही अत्यंत मनमोहक कथा प्रसंगो और अच्छे भजनों के साथ चतुर्थ दिवस की कथा का विश्राम किया गया… सभी श्रोतागन शिव भक्ति में जमकर झूमे और शिव कथा महिमा से अपने जीवन को लाभान्वित किया…