हरियाली तीज का व्रत पति की लंबी उम्र के लिए भी रखा जाता है. ऐसी मान्यता जो सुहागिनें इस दिन निर्जल व्रत कर पूजा करती हैं उन्हें अखंड सौभाग्य और पति की दीर्धायु का आशीर्वाद मिलती है.
पूजा विधि
हरियाली तीज के दिन सुहागन महिलाओं को सुबह-सुबह स्नान आदि से निवृत होकर अपने मायके से आए कपड़े और श्रृंगार के समान का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार माता पार्वती और भगवान शिव के साथ गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित करें. सबसे पहले गणेश पूजा करें. इसके बाद माता पार्वती को 16 श्रृंगार के सामग्री के साथ साड़ी, अक्षत्, दीप, धूप, गंध आदि अर्पित करने के बाद भगवान शिव को भांग, धतूरा, श्वेत फूल, बेल पत्र, धूप और गंध आदि समर्पित करें. इसके बाद हरियाली तीज की कथा सुने और तीनों लोगों की आरती करते हैं. पूजा पूरी होने के बाद सभी भक्तजनों में प्रसाद और पंचामृत का बांट दें.
हरियाली तीज व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शिव जी माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म की याद दिलाते हुए कहते हैं कि तुमने मुझे पति के रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया. अन्न और जल का भी त्याग कर दिया और सर्दी, गर्मी, बरसात जैसे मौसम की भी कोई फिक्र नहीं की. उसके बाद तुम्हें वर के रूप में मैं प्राप्त हुआ.
नारद जी लाए विवाह प्रस्ताव
भगवान शिव माता पार्वती को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि हे पार्वती ! एक बार नारद मुनि तुम्हारे घर पधारे और उन्होंने तुम्हारे पिता से कहा कि मैं विष्णु जी के भेजने पर यहां आया हूं. भगवान विष्णु स्वयं आपकी तेजस्वी कन्या पार्वती से विवाह करना चाहते हैं. नारद मुनि की बात सुनकर पर्वतराज बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने शादी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया. लेकिन जब तुम्हारे पिता पर्वतराज ने ये बात तुम्हें बताई तो तुम बहुत दुखी हुईं.
मां पार्वती ने शुरू किया तप
जब तुमने अपनी सखी को यह बात बताई तो उसने घनघोर जंगल में तुम्हें तप करने की सलाह दी. सखी की बात मानकर तुम मुझे पति के रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में एक गुफा के अंदर रेत की शिवलिंग बनाकर तप करने लगीं. शिवजी माता पार्वती से आगे कहते हैं कि तुम्हारे पिता पर्वतराज ने तुम्हारी खोज में धरती और पाताल एक कर दिया, लेकिन तुम्हें ढूंढ नहीं पाए. तुम गुफा में सच्चे मन से तप करने में लगी रहीं. सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर प्रसन्न होकर मैंने तुम्हें दर्शन दिए और तुम्हारी मनोकामना को पूरा करने का वचन देते हुए तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इसके बाद तुम्हारे पिता भी ढूंढते हुए गुफा तक पहुंच गए. तुमने अपने पिता से कहा कि मैं आपके साथ तभी चलूंगी, जब आप मेरा विवाह शिव के साथ करवाएंगे.
ऐसे हुआ विवाह
आगे भगवान शिव माता पार्वती को बताते हैं कि तुम्हारी हठ के आगे पिता की एक न चली और उन्होंने ये विवाह करवाने के लिए अनुमति दे दी. शिव जी आगे कहते हैं कि श्रावण तीज के दिन तुम्हारी इच्छा पूरी हुई और तुम्हारे कठोर तप की वजह से ही हमारा विवाह संभव हो सका. शिव जी ने कहा कि जो भी महिला श्रावणी तीज पर व्रत रखेगी, विधि विधान से पूजा करेगी, तुम्हारी इस कथा का पाठ सुनेगी या पढ़ेगी, उसके वैवाहिक जीवन के सारे संकट दूर होंगे और उसकी मनोकामना मैं जरूर पूरी करूंगा.