नितिन डांगी ✍️ ब्यावर
स्मार्ट हलचल/ब्यावर,राजस्थान की माटी के कण-कण में वीरों व देवताओं की गौरव गाथा का तेज समाहित है। इन वीरों में कई ऐसे हैं जिनका नाम और काम इतना फैला कि उन्हें लोकदेवताओं के रूप में पूजा जाने लगा जैसे वीर तेजाजी,बाबा रामदेव हो या फिर कोई अन्य महापुरूष।इन्होंने जाति भेद की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर समाज सेवा और पर पीड़ा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिया। कलयुग में वीर तेजाजी एक ऐसे आदर्श हैं जिन्होंने वचनों के बंधन में अपने प्राण का बलिदान दिया।आज समाज को नई दिशा देने के लिए वीर तेजाजी जैसे आदर्शों की महत्ती आवश्यकता है।
नागौर जिले के खरनालियां गांव के एक जाट परिवार में जन्मे वीर तेजाजी सामान्य किसान के बेटे थे। पिता का नाम ताहड़ देव और माता का नाम रामकंवरी था । तेजा जी के मन-वचन में सत्य की भावना छाई हुई थी।समाज सेवा में पर पीड़ा और नारी की रक्षा के लिए तेजाजी ने कभी भी अपने प्राण की परवाह नहीं की।उन्होंने लाछा गुर्जरी की गायों को बचाने के लिए डाकूओं से लोहा लिया।आग में जल रहे सर्प को बचाने के बाद उनके वचनों को निभाया।इन्हीं गुणों के कारण वर्तमान में मगरे के गांवों के अलावा शहरों में भी तेजाजी के थान दिखाई देने लगे हैं।
राजस्थान में विख्यात वीर तेजाजी का थान राजस्थान का मैनचेस्टर कहलाने वाले ब्यावर शहर में स्थापित है। वर्ष 1840 में अंग्रेज शासक कर्नल डिक्सन ने इसकी स्थापना की थी।तब से हर साल भादवा सुदी दशमी को वीर तेजाजी के ऐतिहासिक मेले का आयोजन किया जा रहा है,इस मेले का आयोजन लगभग 184 साल से हो रहा है ।इसमें राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से श्रद्धालु थान पर केसरिया ध्वज चढ़ाने,तेजा बाबा का दर्शन करने और मेले का आनंद लेने आते हैं।
यह भी मान्यता है कि तेजा जी महाराज को दूध और चूरमा भोग रूप में चढ़ने से साप बिच्छू या कोई भी जहरीला जीव आप को नही काटता है और यदि कटा है तो उसका जहर भी उतर जाता है।
ब्यावर का तेजा मेला अब पर्यटक मेले के रूप में विख्यात हो गया है। इस मेले में कई संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। ग्रामीण व शहरी,ग्राहकों व व्यापारियों, श्रमिकों व मालिकों, शिष्यों व गुरुओं, श्रद्धालुओं व दर्शकों के संगम के साथ-साथ विभिन्न रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल और पहनावे की संस्कृतियों का संगम मेले में देखने को मिलता है। तीन दिन तक चलने वाले तेजा मेले का आयोजन नगर परिषद प्रशासन करता है। हर साल इस मेले में देश विदेश से आए लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। मेले में श्रद्धालुओं के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग-अलग आयोजित इन प्रतियोगिताओं के विजेताओं को इनाम भी दिया जाता है।
मेले में रात के समय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।इसमें देश के ख्यातिनाम कलाकार अपनी कला से मेलार्थियों का मनोरंजन करते हैं। यह मेला सभी वर्गों को अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुरूप मनोरंजन प्रदान करता है।मेले के दौरान स्काउट, बालचर, एनसीसी कैडेट्स व पुलिस प्रशासन सहित स्वयंसेवी संगठन अपनी सेवाएं देकर अनुशासन व व्यवस्थाओं में सहयोग प्रदान करते हैं।
तीसरे दिन जलझूलनी एकादशी का अनूठा मेला आयोजित होता है।इस मेले की खास बात यह है कि इसमें केवल युवतियों और महिलाओं को ही मेलास्थल सुभाष उद्यान में प्रवेश दिया जाता है।इस दिन शहर के प्रमुख मंदिरों से भगवान की झांकियां रेवाड़ियों के रूप में उद्यान स्थित तालाब की पाल पर लाते हैं।महिलाएं उनके दर्शन कर मनोकामना करती हैं।