Homeराजस्थानकोटा-बूंदीबिन पानी कैसे चले...जीवन की नाव : पानी चोरी की मार झेल...

बिन पानी कैसे चले…जीवन की नाव : पानी चोरी की मार झेल रहा प्रसिद्ध भंवाल माताजी तालाब, बारिश में भी कैसे होगा लबालब

भेरूंदा
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, पानी गये न उबरे मोती मानुष चून कवि रहीम की इन पंक्तियों में पानी की महत्ता का गूढ़ रहस्य छिपा है। जिसे समाज के जिम्मेदार लोगों द्वारा जीवन में उतार लिया जाए तो अवाम को जल संकट से नहीं जूझना पड़े। प्रकृति, पानी और परंपरा हमेशा साथ रहे हैं। मगर मनुष्य के तुच्छ स्वार्थ ने ऐसी कल्पना करने पर भी ग्रहण लगा दिया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं भेरूंदा से 7 किमी दूर प्राकृतिक वादियों में बसे प्रसिद्ध भंवाल माताजी तालाब की बदहाल स्थिति की। एक समय था, जब यह तालाब पानी से सालभर लबालब रहता था। जिसमें तैरती कश्तियां खुशहाली का संदेश देती थी। यह तालाब पानी की उपलब्धता के साथ भूमिगत पानी को भी रिचार्ज करता था। आसपास के गांवों के लोग भंवाल माताजी तालाब में जलभराव से अच्छे जमाने की उम्मीद लगाते थे। सामाजिक उत्सवों पर मूर्ति विसर्जन के लिए श्रद्धालुओं के हुजूम उमड़ते थे। मगर पिछले 5-7 वर्षों में बारिश का पानी भरते ही चोरी छिपे तालाब से पानी निकाल स्वयं की डबरी भरने और खेत की सिंचाई करने की प्रवृति ने सब कुछ खत्म कर दिया। लोगों द्वारा तालाब में कुएं खोदकर अवैध पाइप डालकर इस तालाब से शत प्रतिशत पानी की निकासी कर ली जाती हैं, जिससे तालाब गर्मी से पहले ही सूख जाता हैं। प्रशासनिक उदासीनता के चलते पानी चोरी पर लगाम नहीं लग सका। सूखे की मार झेल रहा यह तालाब अपनी प्राकृतिक पहचान खोता जा रहा है। जिम्मेदारों की खामोशी भी इसकी बदहाली के लिए दोषी ठहराई जा सकती है।

सामाजिक, आर्थिक अर्थव्यवस्था का केंद्र रहा ये तालाब- भंवाल माताजी तालाब आसपास के सैकड़ों गांवों के लिए आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक केन्द्र रहा हैं। बरसात के चार महीनों में तालाब पानी से लबालब भर जाता था। यही पानी साल भर लोगों की दिनचर्या का अंग बना रहता था। मवेशियों के पीने में भी यही पानी काम आता था। तमाम सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियां इसी तालाब के किनारे ही संपन्न होती थी। मछलीपालन के ठेके भी यहां छोड़े जाते थे। मगर पानी के परंपरागत स्रोत को निजी स्वार्थ में ध्वस्त करना मुसीबत का कारण बनता जा रहा है। रमणीय पहाड़ियों के बीच स्थित ये तालाब ही था जो सबके लिए पानी को जुटा कर रखता था। लेकिन ग्रामीणों को पानी के संकट से मुक्त रखने वाले तालाब का आज अस्तित्व तेजी से मिटता जा रहा है। तालाबों के खात्मे के पीछे समाज और सरकार समान रूप से जिम्मेदार है। सरकारी व्यवस्था का यह आलम है कि तालाबों के रख रखाव का दायित्व रखना तो दूर कभी पानी चोरों के खिलाफ कार्रवाई की जहमत तक नहीं उठाई।

ढाई प्याला माताजी का चमत्कारी मंदिर लगा रहा सुंदरता में चार चांद-
सैकड़ों एकड़ में फैले इस तालाब के पूर्व दिशा में स्थित ढाई प्याला भंवाल माताजी का प्राचीन मन्दिर इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है। देवी के चमत्कारी मंदिर में दर्शनों के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आते रहते हैं। आसपास के एक दर्जन से अधिक गांवों के मवेशियों की यही प्यास बुझती थी। समय के साथ-साथ परिस्थियां बदली तो ग्रामीणों की मानसिकता भी विकृत हुई। तालाब के पानी की चोरी कर सिंचाई व अन्य कार्यों में काम में लिया जा रहा है। आज भी इस तालाब के किनारे प्रतिवर्ष नवरात्रि के मौके पर अष्टमी के दिन मेला लगता है। जिसमें आसपास के गांवों के काफी लोग जुटते हैं। एक समय किसानों के खेतों में लहलहाती अच्छी फसलों का गवाह यह तालाब रहा हैं।

इनका कहना है-
लोगों ने तालाब में कुएं खोद लिए तथा अवैध पाइप लाइन डाल रखी है। 2010 में एक बार एसडीएम सुनीता चौधरी ने यहां मोटरे, पाइपलाइन जब्त की थी। मगर उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं होने से असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद हो गए। अब तो तालाब में पानी रोकना किसी चुनौती से कम नहीं है। – लोकेंद्रसिंह बिखरणियां-स्थानीय निवासी

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
news paper logo
RELATED ARTICLES