स्मार्ट हलचल/छोटे स्तर के स्कूल तो सिर्फ छोटी मोटी जरूरतों को पूरी करने के लिए चलाए जाते हैं। थोड़ा और ऊपर बढ़ें तो भाई बांधव की भी जरुरतों का ख्याल आ जाता है। थोड़ा और बढें तो रिश्तेदारों की भी फ़िक्र होने लगती है और थोड़ा बढ़ें तो जो पाप का बाप बने हैं अपने नश्ले हरामी औलादों के लिए खुराफात करनी पड़ती है। नहीं तो कोई एक उदाहरण बता दिजिए कि एक विद्यालय या विश्वविद्यालय में दो दो लाइब्रेरी होती हैं क्या? लेकिन भले लोगों को चुतिया बनाया गया किसान पीजी कालेज रक्सा रतसड़ बलिया में दो दो लाइब्रेरी दौड़ा दी गईं और उसमें दो दो लाइब्रेरियन थोप दिए,क्योंकि सदस्य गण अपने साइड में ज्यादा हैं,जो मर्जी वो करेंगे? इसीलिए मैं इनके सारे सहयोगियों को भांट कहता हूं,क्या भांट डायरेक्टर नही जान रहा है, कि भांट प्राचार्य नही जान रहा है कि नश्ले हरामी पिल्ले नही जान रहे हैं कि हरामखोर और सदस्य नही जान रहे हैं लेकिन सब भांटों के जैसा सब ताल मजीरा बजा रहे हैं कि जो चटूहों का चेयरमैन कह रहा है या कर रहा है बिल्कुल सही कर रहा है?निजी जागीरों की तरह चलाई ही जा रही हैं किसान पीसी कालेज की व्यवस्था?बड़े दल तो अपना बना लिए छोटे दिल से! फिर इनसे क्या उम्मीद? सिर्फ पेमेंट २५०००/ देने के लिए फर्जी लाइब्रेरियन का पद सृजित कर लिया और लिपिक पर अपने बेटे का अनुमोदन कराके लाइब्रेरियन का पेमेंट घोंट,घोंटवा रहा है?ये कितना नीचता का किया है चटूहों का चेयरमैन लेकिन सारे मादरजात क्या प्राचार्य, क्या डायरेक्टर,क्या इसके भूख्खड़ भिखमंगे रिश्तेदार सदस्य,सभी को कुछ बूंदें चुवा के चटा दे रहा है,उसी में ये सब भड़वे मस्त हैं?अगर भगवान नाम की कोई सत्ता है तो ये सारे नर्क गामी होंगे, नहीं तो मौज कर ही रहे हैं?