स्मार्ट हलचल/डा. लिखने के लिए एमबीबीएस/पीएचडी करनी पड़ती है,इंजीनियर के लिए बीटेक,और एलएलबी वकालत के लिए करनी पड़ती है लेकिन कालेज लूटने के लिए धूर्तई की मात्र डिग्री चाहिए और कुछ चट्टू समधी,बहनोई,रिश्तेदार चाहिए जो मिल ही जाते हैं।ये सभी खतनों की जमात है जो खतरनाक जन्नात से भी खतरनाक हैं। एक डाक्टर की लापरवाही से एक मरीज मरेगा,एक इंजीनियर की बेपरवाही से एक पुल घर गिरेगा,एक वकील की गलती से एक को सजा मिलेगी लेकिन ये जिन्नातों के समूह ने पूरा पीढ़ी को ही बर्बाद करने का ठेका ले रखा है, क्योंकि शिक्षा एक अनवरत पीढ़ी दर पीढ़ी की होती है।अब आप बताएं कि जो चालिस लाख देके मास्टर बनेगा वो कैसा शिष्य सृजित करेगा? ऐसे शिक्षक बनाने में जो सहयोग इसके बाप व श्वसुर ने किया वो कैसा समाज बनाने का संदेश दे रहे हैं?ये मालघोटवा मालवीय जी अपने कमजर्फ बेटों को अपने ही विद्यालय में नियमों का कतल करते हुए नियुक्त कर दिया। कालेज 1993 से संचालित है जिसमें काम करने वाले पतली पेमेंट पर सेवा दे रहे थे और विद्यालय के पेमेंट से किसी तरह चूल्हे की चिंगारी जलती थी और 50-100 रुपए से बीस सालों के जीवन खर्चने के बाद 10-12 हजार तक आया था लेकिन जैसे ही मालपुआ वाले मालवीय जी ने अपने बेटे को लाइब्रेरियन लिपिक व क्लर्क पर नियुक्त किया उसका पेमेंट 25000/ कर दिया गया और दूसरे का भी ऐसे ही पेमेंट से नवाजा जाने लगा।इस बात से जब शोर गाढ़ा हुआ तो इस कसाई ने और कर्मचारियों का वेतन बढ़ाया। मतलब विद्यालय आर्थिक संपन्न पहले भी था जब इनके बेटे नियुक्त नही हुए थे लेकिन ज्यों ही इनके बेटे आए तो इन्हें लगा कि पेमेंट बढ़ना चाहिए और बढ़ा दिए? और मैनी सीना से कहेंगे कि हमने नैक ले लिया?नैक नही लिया,नैतिकता का कतल किया?ये तो जांच का विषय बनना ही चाहिए जिस विद्यालय का प्रबंधन इतनी क्रिमिनलिटी से सना हो कि पेमेंट में घोटाला कर,घूप,चूप बैठा रहा और उसके पुत्र आए तब थोड़ा बढ़ा पेमेंट मिला।
ये फरिश्ते बनते हैं,इनके रिश्तों की जांच हो,इनके खुद का जांच हो,इनके परिवार की जांच हो,क्या ये सब थे,गहनता व गरीमा से जांच हो?ये जिनके साथ पूरा जीवन खपा के विद्यालय बनाया फिर उन्हें ही खपा गया,ये कोई भरम का खेल नही है।इनके लोग थे भी,इनके कहलाए भी,इनकी लोगों ने बहुत खूबियां भी बताई लेकिन ये नही बता पाए कि ये इतना शातिर बेवफा भी हैं।समझ में नही आता कि ये बुलंद होने के लिए अपराधी बने या लोगों के भावनाओं के कतल में ही इनकी मशहूरियत थी। क्या आपको इस बात का एहसास नही होता कि बुलंदी किसके हिस्से में देर तक रहती है,इमारत जितनी बड़ी/ऊंची होगी वो हर घड़ी खतरे संजोए रहती है।आप तो लल्लन जी रहेंगे दो चार हजार साल तक!एक कोठीला में अन्न रखता है आदमी,अगर उसे खाया (आपकी भाषा में खपाया) नही गया तो सड़ जाएगा,कीड़े पड़ जाएंगे,छोड़ के तो जाना ही है और जो छोड़ के जाएंगे उसमें तो कीड़े पड़ेंगे ही? और इन्हें कमाने में खुद में कीड़े पड़ गए। ऐसे दौलत का क्या करना जो बेवफाई से रिश्तों को गंवा के कमाएं?
मुझे तो ताज्जुब बड़ा होता है चटूहों के चेयरमैन कि क्या सच हार जाएगा और झूठ डांस करेगा?अपने झूठ से लोगों को सिर्फ डंसा है आप महोदय ने। क्या सोच रहे थे कि सच मायूस होकर द्वार से लाचार हो भाग जाएगा?आपके हर झूठ का,हर वार बेकार ही जाएगा,हो सकता है थोड़ी देर लग रही हो लेकिन,आपको ये कैसे लगा कि सच हार जाएगा और झूठ पचरा पढ़ेगा?
हम आपके पैरों के नाप से नही डरते और न ही पैदा किए पिल्लों,समधियों,बहनोइयों,सालों,मामों,चाचों और न ही दुर्योधन/धूर्तराष्ट्र के लालची भाईयों से,हम मुसल्लम आस्था व विश्वास से लवरेज हैं कि आखिर में पुण्य ही जीतेगा ! पूरी गीता में कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से बस इसी बात को आधार बनाया है।पूरे महाभारत में करीब एक अरब लोग मारे गए थे,कुछ ना बचा था, सिर्फ बचा था तो हमारा सच और हमारा धर्म।कल भोर की चिंता आपको होगी, पीढ़ियों की चिंता में में रात खपानी है,नींद गंवानी है! हमें रावण नही मारना है,रोटी कमानी है,सब अपने छोटी गृहस्थी में मस्त हैं और यही मस्ती आप अपने मनमानीपन का कारण बना लेते हैं,जैसे आपने किसी इश्यू पर मीटिंग बुलाई लोग आए फिर आप कोई नुक्से से उसे अगले दिन पर लाद देंगे,ऐसे आप तीन से चार बार कर देंगे तो लोग आजिज आकर कह देंगे कि हम लोग गदहे हैं,अब आपका लादा नही ढोया जा रहा,जो लल्लन जी आप कह रहे हैं वही कर लिजिए क्योंकि किसी को गाय खिलाना,किसी को सिंचाई बुवाई,गुड़ाई तो किसी को दवाई करानी है?हम राम नही हैं लेकिन जैसे आपकी रावण कहानी है वैसे ही हर आदमी एक राम कहानी है।
पूरा देश फालतू में नाहक परेशान है कि झूठ नही बोलना चाहिए,सच्ची बात बोलनी चाहिए जबकि सच्चाई है कि एक दिन बिना झूठ बोले कोई रह ही नही सकता।आप जैसे लोग तो एलानिया कहते हैं कि झूठ से मेरा खून खौलता है लेकिन ये नही कहेंगे कि किसके झूठ से?अपने झूठ से रोटी मलाई मिल रही,गप्प से घोंटेंगे और कुछ जूठा अपने समधियों व बहनोइयों को भी घोंटवा देते हैं लेकिन इस सच को भी गप्प से घोंट जाएंगे! आपको तो सिर्फ ईमानदार लोग चाहिए,इन ईमानदारों से अपना साम्राज्य खड़ा किया फिर इन्हीं की खाट खड़ी कर दी!दिल पर हाथ रखके बता दिजिए कि इतने बड़े होने तक कितनी बार सच बोला है?अभी कोई माफिया/गैंगेस्टर आपको दो-चार लाख रुपए दे दे तो उसके वोट,सपोर्ट के लिए मिमियाने लगेंगे और बात करेंगे ईमानदारी की?आप बहुत बड़े-बड़े डाकुओं को जानते हैं या जानते होंगे,पता करके बता दिजिए कि कौन दारु मुर्गा का भक्षक है और आप भी अपने को शाकाहारी बताते हैं।ये बात सब जानते हैं कि आप किस ढब से,किस मंशा से लोगों से मिलते हैं?आपसे लोग सिर्फ मिलते हैं और आप मतलब से मिलते हैं। चरित्र की बात तो आपके यहां बिल्कुल बेमानी है।जरा अपने चालिस लखा समधी से पुछिएगा कि जो चिल्पी का चिलम चूस रहे हैं? यह किस चरित्र में आता है?कमीक्षा का मामला (करीब करीब १५ साल से कम का नही) तो भूले नही होंगे कि पूरा बांसडीह महाविद्यालय के स्टाफ को कोतवाली बांसडीह में,अपने पक्ष में बोलने के लिए किस तरह से बाध्य किया,आप चरित्रवान महोदय ने? मेरे व्यक्तिगत होने का अफसोस तो है लेकिन आपने भी बिना किसी उचित कारण के मेरी सदस्यता शुल्क के साथ,आवेदन पत्र को सिर्फ आप के गुरुर के कारण वापस करा दिया,नही तो आपका चपरासी/प्रबंधक तिवारी जी की औकात है कि आपके बिना मर्जी के शूशू भी कर लें?
मैं चाहता हूं कि हमारी लड़ाई तार्किक हो,बहसी न हो,व्यक्तिक तो कत्तई न हो लेकिन एक कांटा का चुभा कि मोटी रकम के गुमान में कोर्ट चले गए तो जाइए और साथ में पहली सूची से लेकर अद्यतन सदस्यों की सूची भी ले जाइए,अपने बेटो को लाभ देने का प्रपत्रों को भी ले जाइए! क्या क्या ले जाइएगा,कुछ दीन,ईमान बचा हो तो उसे मत छोड़िएगा? दौलत के बदौलत मुझे रुसवा आप कभी भी सरे बाजार कर सकते हैं और क्षमतानुकुल किया भी है लेकिन ऐसे सब प्यादों से आपको इज्जत व शोहरत नही मिलने वाली?प्यास किसी की अद्यतन बुझाएं हैं तो जरूर बता दिजिए नहीं तो सागर समंदर बनते रहिए चटूहों से,किसके,किस काम के हैं?प्यास आपने छिना है,भूख किसी का छीना है,भाव सभी का छीना,सब आचरण तो दो कौड़ी वालों का है,कैसे आपको छिनराविहीन/चरित्रवान कह दें ?
आप अपने पिल्लों,समधियों,बहनोइयों,सालो,मामों,फुवा,लफुवा रिश्तेदारों के सहारा या पालनहारा हो सकते हैं,उनसे यदि आपने किनारा कर लिया तो भोजनविहीन अंतड़ियां हो जाएंगी,सूख जाएंगी! लेकिन जिन लोगों को आपने किनारे कर दिया,क्या समझ रहे हैं कि मर गए,बिन किसी के आखिर कौन मरा है,वो भी गुजारा कर लेंगे,वो भी गुजारा कर रहे हैं?
हम सनातनी परंपरा के लोग हैं,हमारा अटूट विश्वास है कि जमाने का चलन कितना हूं भी बिगड़ जाए लेकिन झूठ से सच्चाई नही हार सकती!
सुकरात के तीन बेटे लैम्प्रोक्लीज़,सोफ़्रोनिस्कस, मेनेक्सेनस हुए । लेकिन सुकरात के शिष्यों ( प्लेटो, ज़ेनोफ़ोन, एंटिसथेनेस, एशिनीस, फ़ेदो, यूक्लिडेस, एरिस्टिपस,
,अरस्तू जिसने दुनिया विजेता सिकंदर के गुरु के रुप में भी जानती है ) ने ही उनके विचारों को आगे ले गये और दुनिया में स्थापित किया!लेकिन लड़कों के नाम को,पत्नी के नाम को,न भाई के नाम को,न माई को और न ही बाप को,न किसी भूत-भूतनी को बस,उनके लड़के रहे और उनको जिलाते,पिलाते खिलाते रहे ! उनके परिवार का डीएनए उनसे तो मिल सकता लेकिन बौद्धिकता तो अनुवांशिकी नही हो सकती? लेकिन लल्लन सिंह जी आपको क्या लेना-देना,बस दवात चुरा ली? या तो अपने पास रहेगी या फिर अथाह पानी में फेंका जाएगा!उस दवात की स्याही से अपने लफंदर लौंडों को कुछ लिखना,पढ़ना,समझना सिखा दिए होते ?लेकिन क्यों अपनी ही गाथा पढ़ाने में व्यस्त व मस्त हैं कि डकैती वाली डीएनए तो होगा ही इनमें,गजब का विश्वास है?लूट लेंगे कोई और विद्यालय/दुकान? रक्सा वाले में भाईयों को घूसेड़ा और बांसडीह वाले में अपने लफंदरों को घूसेड़ दिए हैं या घूसेड़ रहे हैं या घूसेड़ने वाले हैं।
समाज सिर्फ आर्थिक रुप से आगे हुए लोगों को ही विकास पुरुष की संज्ञा देता है?कौन सुकरात,महावीर जीन,गौतम बुद्ध,ओशो,अरस्तू… जैसे थातियों को जानता है जिसने थाती छोड़ी और समाज जोड़ी!हम तो बात कर रहे हैं लल्लन सिंह जी का जिन्होंने बौद्धिक लोगों की छोड़ी या दी हुई थाती पर डाका डाला और समाज उन्हें अग्रड़ी में गिन रहा है।किसी भी बिजनेस में पूंजी का इन्वेस्टमेंट ही पूंजी कमाने का आधार बनता है लेकिन हमारे लल्लन सिंह जी के बिजनेस में झूठ का इन्वेस्टमेंट प्रचूर है और मुनाफा दूर तक (कई पीढ़ियों तक) है। बौध्दिक लोगों की चिंता यही है कि यह परंपरा गलत पड़ रही है कि झूठ वाले ही सिर्फ अग्रणी होने की योग्यता रखते हैं।सच को लाचार,बेजार कैसे देखा जा सकता है? आएं और इस झूठ के सौदागर को पराजित करें,क्योंकि इसके हारने से ही सच की संजीवनी खिल सकती है