रमेश चंद्र डाड
आकोला : स्मार्ट हलचल|बनास नदी क्षेत्र में अवैध बजरी खनन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाईकोर्ट के आदेशों और ग्रामीणों के उग्र आंदोलन के बावजूद ठेकेदारों ने फिर से ट्रैक्टरों पर सवार जेसीबी मशीनों को नदी में उतार दिया है। इससे ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त है और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
ठेकेदारों के दस्तावेजों पर सवाल
गांववालों के अनुसार, जब उन्होंने ठेकेदार और पुलिस प्रशासन से खनन की वैधता साबित करने को कहा, तो ठेकेदारों ने एक पत्र थमा दिया, जिसमें प्लॉट नंबर तक दर्ज नहीं थे। यह स्पष्ट करता है कि उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं है और वे प्रशासनिक संरक्षण में काम कर रहे हैं।
हाईकोर्ट के आदेशों की खुली अनदेखी
ग्रामीणों ने बताया कि उच्च न्यायालय जयपुर की सिविल पिटीशन 4250/2012 के तहत जेसीबी और क्रशर मशीनों से खनन पर प्रतिबंध है, फिर भी लीजधारक महादेव एन्क्लेव प्राइवेट लिमिटेड खुलेआम इनका इस्तेमाल कर रहा है। बनास नदी के ब्लॉक नंबर 7 में 8 से 10 मीटर गहरा खनन किया जा रहा है, जबकि अनुमति केवल 0.5 मीटर की है। इससे पर्यावरण को नुकसान और सरकार को रोजाना करोड़ों रुपये का राजस्व हानि हो रही है।
प्रशासन और रॉयल्टी विभाग पर मिलीभगत के आरोप
ग्रामीणों ने बताया कि सोमवार दोपहर करीब 1:30 बजे बिना किसी सूचना के फिर से जेसीबी मशीनें नदी में उतार दी गईं, जबकि कुछ दिन पहले बडलियास पुलिस ने चेतावनी दी थी कि “दोबारा मशीनें उतरीं तो सख्त कार्रवाई होगी।” फिर भी खनन जारी है — ग्रामीणों का कहना है कि यह प्रशासन और रॉयल्टी विभाग की मिलीभगत का नतीजा है।
ग्रामीणों की चेतावनी — अब आरपार की लड़ाई
गांववालों ने चेतावनी दी है कि यदि खनन पर तुरंत रोक नहीं लगी, तो “बनास बचाओ – जीवन बचाओ आंदोलन” को जिला से राज्य स्तर तक ले जाया जाएगा। ग्रामीणों के शब्दों में —
“हमने ज्ञापन भी दिया, धरना भी किया, लेकिन जेसीबी फिर चल पड़ी। अब अगर प्रशासन नहीं जागा, तो बनास बचाने के लिए सड़कों पर उतरेंगे।”
— ग्रामीण प्रतिनिधि, चांदगढ़, जीवाकाखेड़ा, दोवनी, रघुनाथपुर क्षेत्र


