Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगभारतीय त्योहार अनेकता में अंतर्निहित एकता के प्रतीक हैं,Indian festivals symbols of...

भारतीय त्योहार अनेकता में अंतर्निहित एकता के प्रतीक हैं,Indian festivals symbols of unity

भारतीय त्योहार अनेकता में अंतर्निहित एकता के प्रतीक हैं

भारतीय त्योहार हमारी सांस्कृतिक विरासत के जीवंत स्वरूप, विविधता में एकता की मिसाल है

लोहड़ी मकर संक्रांति मांघ बिहू और पोंगल, त्योहार एक नाम अनेक – वात्सल्यमई प्रकृति के प्रति हमारी विनम्र कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है – 

किशन सनमुखदास भावनानी 

 वैश्विक स्तरपर यह सर्वेविदित है कि पूरी दुनियां में भरत अनेकता में एकता का एक जीवंत उदाहरण है। भारत के नागरिक हो या प्रवासी या फिर मूल भारतीय हो जो दुनियां के किसी भी कोने में रहते हो,परंतु उनकी संस्कृति में अनेकता में एकता का भाव जरूर होगा, यानें भारतीय सांस्कृतिक विरासत के त्यौहार एक साथ मिलकर जरूर मनाएंगे चाहे फिर होली दिवाली हो या अनेक धर्मों के या फिर किसी भी धर्म जाति समुदाय का त्यौहार हो सभी मिलकर एक दूसरे को बधाइयां देते हैं, उनके कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। इसका जीवंत उदाहरण अभी 14-15 जनवरी 2024 को मनाए जा रहे लोहड़ी मकर संक्रांति मांग बिहू और पोंगल त्योहार हैं, यहां यह बता देना जरूरी है कि यह त्यौहार मूल रूप से एक ही है परंतु विभिन्न प्रदेशों में इन्हें अलग-अलग नाम से मनाया जाता है और अपने-अपने प्रदेश की संस्कृति से मनाया जाता है जो अनेकता में एकता का बोध कराता है और राष्ट्रपतिउपराष्ट्रपति प्रधानमंत्री सहित अनेकोव्यक्तित्व इसकी बधाइयां देकर इस पर्व को विविधता में एकता का प्रतीक बताते हैं। चूंकि भारतीय त्योहार अनेकता में अंतर्निहित एकता के प्रतीक हैं, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, लोहड़ी मकर संक्रांति मांघ बिहू और पोंगल,त्योहार एक नाम अनेक है, वात्सल्यमई प्रकृति के प्रति हमारी विनम्र कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।
साथियों बात अगर हम लोहड़ी, मकर संक्रांति, मांघ बिहू और पोंगल, त्यौहार एक नाम अनेक की करें तो,ये भारत के विभिन्न हिस्सों में मनाए जाने वाले त्योहार के अलग-अलग नाम हैं, जो सर्दियों के मौसम के अंत और वसंत के मौसम और नए साल का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। मकर संक्रांति महाराष्ट्र और गुजरात में, बिहू असम में, पोंगल केरल या दक्षिण भारत में और लोहड़ी पंजाब या उत्तर भारत में मनाई जाती है। ये सभी संक्रांति के शुभ दिन पर मनाए जाते हैं। इन त्योहारों का जश्न आमतौर पर हर साल 13 जनवरी को शुरू होता है, इसलिए इनको हम बिस्तर में समझेंगे (1) पूजा, मकर संक्रांति के दिन सूर्य और विष्णु पूजा का महत्व है जबकि पोंगल के दिन नंदी और गाय पूजा, सूर्य पूजा और लक्ष्मी पूजा का महत्व है। लोहड़ी पर्व में माता सती के साथ ही अग्नि पूजा का महत्व है। दूसरी ओर बीहू पर्व में मवेशी की पूजा, स्थानीय देवी की पूजा और तुलसी की पूजा की जाती है।(2)पकवान, मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी, तिल गुडड़ के लड्डू खासतौर पर बनाए जाते हैं जबकि पोंगल पर खिचड़ी, नारियल के लड्डू, चावल का हलवा, पोंगलो पोंगल, मीठा पोंगल और वेन पोंगल बनाया जाता है। लोहड़ी में गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग बनाया जाता है जबकि बीहू में नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा, मच्‍छी पीतिका और बेनगेना खार के अलावा विभिन्न प्रकार के पेय बनाए जाते हैं (3) फसल और पशु , दक्षिण भारतीय पर्व पोंगल पर्व गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का मिला-जुला रूप है। जबकि मकर संक्रांति पर स्नान, दान और पूजा के ही महत्व है। लोहड़ी अग्नि और फसल उत्सव है और बिहू फसल कटाई का उत्सव है। इस दिन मवेशियों को पूजा का प्रचलन है।(4) नववर्ष जिस प्रकार उत्तर भारत में नववर्ष कीशुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है उसी प्रकार दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है। थाई तमिल पंचांग का पहला माह है जो पोंगल से प्रारंभ होता है। लोहड़ी ऋतु परिवर्तन का त्योहार है।(5) सूर्य का उत्तरायण,चारों हीत्योहार में सूर्य पू्जा का और सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व है।मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, सूर्य और विष्णु पूजा का महत्व है तो पोंगल, लोहड़ी और बिहू के दिन फसल उत्सव का महत्व हैलोहड़ी अनिवार्य रूप से अग्नि और सूर्य देव को समर्पित त्योहार है।(6) कथा मकर संक्रांति की कथा सूर्य के उत्तरायण होने, भागिरथ के गंगा लाने और भीष्म पितामह के द्वारा शरीर त्यागने से जुड़ी है और पोंगल की कथा भगवान शिव के नंदी और फसल से जुड़ी हुई है। लोडड़ी की कथा माता सती और दुल्ला भट्टी के साथ ही फसल से जुड़ी हुई है। बिहू की कथा सूर्य के उत्तरायण होने और फसल से जुड़ी हुई है।
साथियों बात अगर हम भारतीय संस्कृति में अलग-अलग त्योहारों को मनानें की करें तो, भारत की संस्कृति अलग अलग प्रकार के लोग, भाषा, व्यवहार और धर्म से भरी है और यही चीज हमारे त्योहारों को भी खास बनाती है। मकर संक्रांति देशभर में मनाया जाने वाला एक ऐसा ही प्रमुख त्योहार है, जो फसल कटाई की खुशी, सूर्य का उत्तरायण यानी मकर राशि में प्रवेश और नई शुरुआत का प्रतीक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस एक त्योहार को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पंजाब में मकर संक्रांति को लोहड़ी के नाम से जाना जाता है. लोहड़ी की रात लोग खुले मैदान में आग जलाते हैं, उसके चारों ओर नाचते-गाते हैं और रेवड़ी व मूंगफली का प्रसाद चढ़ाते हैं।तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से मनाया जाता है। यह चार दिनों का उत्सव होता है, जिसमें पहले दिन घर की सफाई की जाती है, दूसरे दिन मीठा पोंगल बनाया जाता है, तीसरे दिन मसालेदार पोंगल बनाया जाता है और चौथे दिन मवेशियों की पूजा की जाती है। केरल में मकर संक्रांति को विशु के नाम से जाना जाता है। विशु का दिन बेहद खास माना जाता है। सुबह उठते ही लोग विशुकानी देखते हैं, जो फल, फूल, धान के खेत और सोने के सिक्के से सजाया हुआ एक पवित्र दृश्य होता है उत्तराखंड में मकर संक्रांति को उत्तरायणी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और लोक नृत्य करते हैं।
साथियों बात अगर हम 12 जनवरी 2024 को माननीय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति द्वारा दिए गए बधाई संदेशों की करें तो, राष्ट्रपति ने लोहड़ी, मकर संक्रांति, माघ बिहू और पोंगल (जो क्रमशः 13, 14 और 15 जनवरी को मनाये जाते हैं) की पूर्व संध्या पर देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं।अपने एक संदेश में, राष्ट्रपति ने कहा है,लोहड़ी, मकर संक्रांति, माघ बिहू और पोंगल के शुभ अवसर पर, मैं देश और विदेश में रहने वाले सभी भारतीयों को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं।ये पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत के जीवंत स्वरूप होने के साथ-साथ अनेकता में एकता के प्रतीक भी हैं। इन अवसरों पर, हम पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान संबंधी एवं अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं। देश भर में अलग-अलग रूपों में मनाए जाने वाले ये त्योहार सामाजिक सौहार्द, एकता और भाईचारे को मजबूत करते हैं।कृषि से जुड़े ये पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देते हैं। इन त्योहारों को मनाकर हम अपने किसानों की मेहनत को भी सम्मान देते हैं।मेरी कामना है कि इन त्योहारों के माध्यम से प्रेम और सद्भाव की भावना बढ़े तथा देश में शांति तथा समृद्धि का और अधिक विस्तार हो । क्षेत्रीय विविधता से भरे हमारे राष्ट्र के अलग अलग अंचलों में मनाए जाने वाले ये पर्व वास्तव में लहलहाती फसलों की कटाई का उत्सव हैं। ये पर्व प्रकृति के प्रति हमारी विनम्र कृतज्ञता की अभिव्यक्ति हैं! इस अवसर पर जब हम सब साथ मिल कर वात्सल्यमयी प्रकृति द्वारा हमें प्रदान की गई समृद्ध संपन्नता का उल्लास मनाते हैं, हमें याद रखना चाहिए कि ये त्योहार भारत की विविधता में अंतर्निहित एकता का प्रतीक हैं।ये पावन पर्व हमारे जीवन में शांति, सौहार्द और शुभता लाएं।
साथियों बात अगर हम अनेकता में एकता के प्रतीक भारत की विश्व में एक अलग पहचान की करें तो,हमारा भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। एकता शब्द स्वयं यह प्रकट करता है कि भारत में जाति, रंग, रूप, वेशभूषा अलग होने के बावजूद भी यह एक सूत्र में बंधा है। जिस प्रकार अनेक वाद्य यंत्र मिलकर संगीत की एक लय, एक गति एक लक्ष्य और एक भाव बना देते हैं और मनमोहक संगीत का जन्म होता है। भारत में भी विभिन्न जातियां, धर्म, भाषाएं, बोलियां एवं वेशभूषा हैं, फिर भी हम सब एक हैं। भारत की एकता आज से नहीं बल्कि प्राचीनकाल से प्रसिद्ध है। समय-समय पर विभिन्न ताकतों ने इस एकता को खंडित करने के प्रयास किए हैं, परंतु उन्हें भी हमारी एकता के सामने शीश झुकाकर नमन करना पड़ा। मनुष्य समाज का एक भावनात्मक प्राणी है और अंतर्मन की भावनाओं के कारण ही वह समाज के अन्य प्राणियों से जुड़ा होता है। प्राय: किसी जाति, समुदाय व राष्ट्र के व्यक्तियों के बीच जब भावात्मक एकता समाप्त होने लगती है तो सामाजिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और सारे बंधन शिथिल पड़ने लगते हैं। जिस प्रकार एक परिवार एकता के अभाव में बिखर जाता है, उसी प्रकार सामाजिक एकता व समरसता के बिना धरा निष्प्राण सी दिखती है। सामाजिक एकता समरसता पूर्ण सृष्टि का एक मजबूत स्तंभ है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय त्योहार अनेकता में अंतर्निहित एकता के प्रतीक हैं।भारतीय त्योहार हमारी सांस्कृतिक विरासत के जीवंत स्वरूप, विविधता में एकता की मिसाल है।लोहड़ी मकर संक्रांति मांघ बिहू और पोंगल, त्योहार एक नाम अनेक-वात्सल्यमई प्रकृति के प्रति हमारी विनम्र कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।

ratan tata died at the age of 86 in mumbai
ratan tata died at the age of 86 in mumbai
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  31 जुलाई  2024, Smart Halchal News Paper 31 July
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  31 जुलाई  2024, Smart Halchal News Paper 31 July
ratan-tata-death-news
AD dharti Putra
logo
AD dharti Putra
Smart Halchal NewsPaper logo logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES