Indian Law: पीएम मोदी बोले- नए आपराधिक कानून न्याय पर केंद्रित, पुराने लॉ का सजा पर था ध्यान
पीएम ने कहा कि भारत वर्तमान वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए कानूनों का आधुनिकीकरण कर रहा है। अब, तीन नए कानूनों ने 100 साल से अधिक पुराने औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों की जगह ले ली है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आह्वान किया है कि 21वीं सदी की चुनौतियों से 20वीं सदी के दृष्टिकोण से नहीं लड़ा जा सकता। इस पर पुनर्विचार, पुनर्कल्पना और सुधार की जरूरत है। उन्होंने अपना नजरिया आज (शनिवार) राष्ट्रमंडल कानूनी शिक्षा संघ (सीएलईए) – राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल कॉन्फ्रेंस (सीएएसजीसी) 2024 का उद्घाटन करते व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस दिशा में भारत के किए गए प्रयासों का उल्लेख भी किया। उन्होंने देशों के बीच न्यायिक विकास में सहयोग पर जोर देते हुए कहा कि कभी-कभी एक देश में न्याय सुनिश्चित करने के लिए दूसरे देशों के साथ काम करने की आवश्यकता होती है। जब हम सहयोग करते हैं, तो हम एक-दूसरे के सिस्टम को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। अधिक समझ अधिक तालमेल लाती है।
पीएम ने कहा कि भारत वर्तमान वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए कानूनों का आधुनिकीकरण कर रहा है। अब, तीन नए कानूनों ने 100 साल से अधिक पुराने औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों की जगह ले ली है। भारत को औपनिवेशिक काल से कानूनी व्यवस्था विरासत में मिली है। पिछले कुछ वर्षों में हमने इसमें कई सुधार किए। भारत ने औपनिवेशिक काल के हजारों अप्रचलित कानूनों को समाप्त कर दिया है। पहले, ध्यान सज़ा और दंडात्मक पहलुओं पर था। अब, ध्यान न्याय सुनिश्चित करने पर है।
उन्होंने अफ्रीकी संघ के साथ भारत के विशेष संबंध का भी जिक्र किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमें गर्व है कि भारत की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ जी-20 का हिस्सा बन गया। इससे अफ्रीका के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में काफी मदद मिलेगी।
हाल के दिनों में अपराध की प्रकृति और इसके दायरे में दिख रहे बड़े बदलावों पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कई देशों में अपराधियों के बनाए गए विशाल नेटवर्क और फंडिंग तथा संचालन दोनों में नवीनतम तकनीक के उपयोग की ओर इशारा किया। उन्होंने इस सच्चाई की ओर भी सबका ध्यान आकर्षित किया कि एक क्षेत्र में आर्थिक अपराधों का उपयोग दूसरे क्षेत्रों में गतिविधियां चलाने के लिए फंड मुहैया कराने में किया जा रहा है और इससे क्रिप्टोकरेंसी और साइबर खतरों के बढ़ने की चुनौतियां भी हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 21वीं सदी के मुद्दों को 20वीं सदी के नजरिए से नहीं निपटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए कानूनी प्रणालियों को आधुनिक बनाने, प्रणाली को अधिक सुदृढ़ और अनुकूल बनाने सहित पुनर्विचार, पुनर्कल्पना और सुधार की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि न्याय प्रणाली को अधिक नागरिक-केंद्रित बनाए बिना सुधार नहीं हो सकता, क्योंकि न्याय प्राप्त करने में आसानी न्याय दिलाने का स्तंभ है। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने समय को याद करते हुए बताया कि शाम की अदालतों की शुरुआत से जनता को दिनभर के अपने कामकाज के बाद अदालती सुनवाई में भाग लेने में मदद मिली, यह एक ऐसी पहल रही जिससे लोगों को न्याय तो मिला ही, उनके समय और धन की भी बचत हुई। सैकड़ों लोगों ने इसका लाभ उठाया।
प्रधानमंत्री ने लोक अदालत की प्रणाली के बारे में बताते हुए कहा कि इससे सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से जुड़े छोटे मामलों को सुलझाने का बेहतर तंत्र मिलता है। यह मुकदमेबाजी से पहले की ऐसी सेवा है, जहां न्याय दिलाने में आसानी सुनिश्चित करते हजारों मामलों का समाधान किया जाता है। उन्होंने ऐसी पहलों पर चर्चा करने का सुझाव दिया जिससे दुनिया भर में न्याय दिलाने में आसानी हो।
प्रधानमंत्री ने कहा कि न्याय दिलाने को बढ़ावा देने में कानूनी शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है। उन्होंने बताया कि कानूनी शिक्षा के माध्यम से युवाओं में जुनून और पेशेवर क्षमता दोनों का विकास होता है। प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की क्षमता को समझने पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्येक क्षेत्र को शैक्षिक स्तर पर समावेशी बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि कानून शिक्षण संस्थानों में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी से कानूनी पेशे में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी। उन्होंने इस बात पर विचारों का आदान-प्रदान करने का भी सुझाव दिया कि कैसे अधिक से अधिक महिलाओं को कानूनी शिक्षा में शामिल किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कानूनी शिक्षा में विविध अनुभव वाले युवाओं की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि कानूनी शिक्षा को बदलते समय और प्रौद्योगिकियों के अनुकूल बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अपराधों, जांच और सबूतों में नवीनतम रुझानों को समझने पर ध्यान केंद्रित करना मददगार होगा।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने युवा कानूनी पेशेवरों को अधिक अंतर्राष्ट्रीय अनुभव प्राप्त करने में मदद करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कानून विश्वविद्यालयों से देशों के बीच विनिमय कार्यक्रमों को मजबूत करने का आह्वान किया। फोरेंसिक विज्ञान को समर्पित भारत में स्थित दुनिया के एकमात्र विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हुए, प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि विभिन्न देशों के छात्रों, कानून संकाय और यहां तक कि न्यायाधीशों को इस विश्वविद्यालय में चल रहे लघु पाठ्यक्रमों का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विकासशील देश न्याय दिलाने से संबंधित कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करें, साथ ही छात्रों को इंटर्नशिप दिलाने में सहायता करें, जिससे किसी भी देश की कानूनी प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने में मदद मिल सके।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि भारत की कानून व्यवस्था औपनिवेशिक काल से विरासत में मिली थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में रिकॉर्ड संख्या में सुधार किए गए हैं। उन्होंने औपनिवेशिक काल के हजारों अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने का उल्लेख किया, जिनमें से कुछ कानून लोगों को परेशान करने का साधन बन गए थे। उन्होंने बताया कि इससे जीवन में सुगमता आई और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा मिला। श्री मोदी ने कहा, “भारत मौजूदा वास्तविकताओं के अनुरूप कानून में बदलाव भी कर रहा है। 3 नए कानूनों ने 100 साल से अधिक पुराने औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों की जगह ले ली है। पहले, ध्यान सज़ा और दंडात्मक पहलुओं पर था। अब, ध्यान न्याय सुनिश्चित करने पर है। इसलिए नागरिकों में डर के बजाय आश्वासन की भावना है।”
यह बताते हुए कि प्रौद्योगिकी न्याय प्रणालियों पर भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने स्थानों का नक्शा बनाने और ग्रामीण लोगों को स्पष्ट संपत्ति कार्ड प्रदान करने के लिए ड्रोन का उपयोग किया है जिससे विवादों, मुकदमेबाजी की संभावना और न्याय प्रणाली पर बोझ में कमी आई है। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से न्याय प्रणाली पहले से और अधिक कुशल हुई है। उन्होंने बताया कि डिजिटलीकरण ने देश की कई अदालतों को ऑनलाइन कार्यवाही करने में भी मदद की है, जिससे लोगों को दूर-दराज से भी न्याय तक पहुंचने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि भारत इस संबंध में अपनी सीख अन्य देशों के साथ साझा करने में प्रसन्न है और हम अन्य देशों में इसी तरह की पहल के बारे में जानने के इच्छुक भी हैं।
प्रधानमंत्री ने सीएलईए- राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन 2024 का उद्घाटन किया
“मैं सभी विदेशी मेहमानों से अतुल्य भारत को पूरी तरह देखने का
आग्रह करता हूं”
“हमें गर्व है कि भारत की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ जी20 का
हिस्सा बन गया”
“न्याय स्वतंत्र स्वशासन का मूल है और न्याय के बिना किसी राष्ट्र
का अस्तित्व भी संभव नहीं है”
“जब हम सहयोग करते हैं, तो हम एक-दूसरे की व्यवस्था को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं, अधिक समझ से अच्छा तालमेल बनता है, अच्छे तालमेल से बेहतर और जल्द न्याय मिलता है”
“21वीं सदी के मुद्दों को 20वीं सदी के नजरिए से नहीं निपटाया जा सकता है। इसके लिए पुनर्विचार, पुनर्कल्पना और सुधार की जरूरत है”
“जल्द न्याय दिलाने में कानूनी शिक्षा महत्वपूर्ण साधन है”
“भारत मौजूदा वास्तविकताओं के अनुरूप कानून में बदलाव भी कर रहा है”
“आइए, हम एक ऐसी दुनिया का निर्माण करें, जहां हर किसी को समय पर न्याय मिले और कोई वंचित न रह जाए”
हिस्सा बन गया”
का अस्तित्व भी संभव नहीं है”