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परंपरा और आधुनिकता के चौराहे पर खड़ा भारतीय विवाह : नई संभावनाएँ, गहरे संकट और भविष्य की राह ……

विवाह: कंक्रीट के जंगल में बदलती परिभाषा

   डॉ नयन प्रकाश गांधी

स्मार्ट हलचल |भारतीय विवाह व्यवस्था, जो सदियों से परंपरा और स्थायित्व का प्रतीक रही है, आज शहरीकरण के तेज़ प्रवाह के साथ एक गहरे और बहुआयामी परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है। गाँवों से शहरों की ओर बढ़ता पलायन केवल भौगोलिक दूरी नहीं बढ़ा रहा, बल्कि यह पारंपरिक संयुक्त परिवार के सदियों पुराने ढांचे पर भी गहरा दबाव डाल रहा है, जिससे विवाह के अर्थ, अपेक्षाएँ और भविष्य की दिशा बदल रही है। इस बदलाव के केंद्र में पारंपरिक संयुक्त परिवार व्यवस्था का विघटन और एकल (न्यूक्लियर) परिवारों का उदय है। आज वैवाहिक रिश्ते से पहले मां बाप अपनी बेटी के लिए ऐसा वर देख रहे है जो अकेला रहता हो जिसका पैकेज उच्च हो ,चाहे पारिवारिक स्तर ,निम्न हो , चाह है तो बस मेट्रो सिटी की ।जैसा कि विदित है जहाँ संयुक्त परिवार एक पीढ़ीगत “सपोर्ट सिस्टम”प्रदान करता था, वहीं शहरी जीवन की भागदौड़ और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने एकल परिवारों को बढ़ावा दिया है। इससे पति-पत्नी को अधिक स्वतंत्रता और निजी स्पेस तो मिला है, लेकिन संकट के समय भावनात्मक और आर्थिक सहारे की वह परंपरागत सुरक्षा कवच भी कमज़ोर हुआ है, जो पहले बड़े-बुजुर्गों और रिश्तेदारों के रूप में सहज उपलब्ध था। जिसे हमने हाल ही में करोना काल में महसूस किया कई महिलाएं है जिन्होंने एकल परिवार की वजह से बिना स्पोर्ट सिस्टम की वजह से अपना पति खोया है किसी ने अपने बच्चे को खोया है ,कही परिवार के परिवार उजड़ गए ,केवल और केवल न्यूक्लियर फैमिली की वजह से । इस रूपांतरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू महिलाओं की बदलती भूमिका और उनकी बढ़ती आत्मनिर्भरता है। शिक्षा का प्रसार, रोज़गार के बढ़ते अवसर और आर्थिक स्वतंत्रता ने महिलाओं को एक नया आत्मविश्वास दिया है, जिससे वे अब विवाह में केवल एक मूक भागीदार नहीं, बल्कि समानता, सम्मान और भावनात्मक संतुष्टि की अपेक्षा रखने वाली एक बराबर की हितधारक बन गई हैं। वे पुराने पितृसत्तात्मक नियमों को चुनौती दे रही हैं और अपनी खुशी व व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता दे रही हैं, जिसके चलते अपमानजनक या असंगत विवाहों को चुपचाप सहने की प्रवृत्ति घट रही है। इसी सामाजिक मंथन का एक प्रत्यक्ष परिणाम बड़े शहरों में तलाक के बढ़ते मामलों के रूप में सामने आ रहा है। युवा मैनेजमेंट विश्लेषक,डेवलपमेंट पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट डॉ नयन प्रकाश गांधी का कहना है कि दिल्ली,मुंबई,हैदराबाद ,चेन्नई , बेंगलुरु ,जयपुर ,नोएडा ,इंदौर ,भोपाल ,अहमदाबाद ,सूरत जैसे महानगरों में तलाक की दर राष्ट्रीय औसत से कई गुना अधिक है, और बीते कुछ वर्षों में तलाक के लिए आवेदन करने वालों की संख्या में तीन गुना तक की वृद्धि देखी गई है। यह आँकड़ा केवल एक सांख्यिकीय बदलाव नहीं, बल्कि एक गहरे सामाजिक परिवर्तन का संकेत है। शहरी समाज में तलाक को लेकर जुड़ा कलंक धीरे-धीरे कम हो रहा है, जिससे विशेषकर महिलाएँ, एक असमर्थकारी रिश्ते से बाहर निकलने का साहस जुटा पा रही हैं। हालाँकि, यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी उतनी प्रबल नहीं है, जहाँ सामाजिक दबाव और कलंक की जड़ें कहीं ज़्यादा गहरी हैं। आधुनिक जीवनशैली और मीडिया के प्रभाव ने भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, भावनात्मक अनुकूलता और मानसिक शांति जैसी अवधारणाओं को वैवाहिक जीवन के केंद्र में ला दिया है, जिससे असहज या अपमानजनक रिश्ते अब लंबे समय तक टिक नहीं पा रहे हैं। विवाह विच्छेद के बाद का जीवन भी शहरी परिवेश में नई चुनौतियाँ पेश करता है। विशेषकर महिला-प्रधान एकल परिवारों को अक्सर आर्थिक असुरक्षा, आवास की समस्या और गहरे मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। शहरों में किफायती कानूनी सलाह और पेशेवर काउंसलिंग जैसी सहायक प्रणालियों का भारी अभाव इस संघर्ष को और भी कठिन बना देता है। कानूनी मोर्चे पर, भारत के पुराने तलाक कानून अभी भी “फॉल्ट बेस्ड” यानी किसी एक पक्ष की गलती साबित करने पर आधारित हैं, जो इस प्रक्रिया को लंबा, महंगा और पीड़ादायक बना देता है। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल के फैसलों में”अपरिवर्तनीय विवाह-विघटन” (irretrievable breakdown of marriage) को तलाक का एक मानवीय आधार मानना एक स्वागत योग्य कदम है, जो इस प्रक्रिया को सुगम बनाने की दिशा में एक नई उम्मीद जगाता है। भविष्य की ओर देखते हुए, यह स्पष्ट है कि युवा जनसंख्या वाले आधुनिक अर्बन ररबन इंडिया में विवाह की संस्था एक नए और अधिक मानवीय स्वरूप की ओर बढ़ रही है। इस बदलाव को सकारात्मक दिशा देने के लिए शहरी नीतिगत प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है, जिसमें सुलभ और सस्ती कानूनी सहायता, मानसिक स्वास्थ्य और काउंसलिंग सेवाएँ, और तलाकशुदा व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं के लिए किफायती आवास जैसी योजनाएँ शामिल हों। समाज में खुले संवाद और प्रगतिशील दृष्टिकोण को बढ़ावा देना भी उतना ही ज़रूरी है, ताकि विवाह एक बंधन न रहकर, दो व्यक्तियों के बीच आपसी सम्मान, प्रेम और साझेदारी का एक जीवंत रिश्ता बन सके।

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