Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगकब सुधरेगी भारत की डाक व्यवस्था?India's postal system

कब सुधरेगी भारत की डाक व्यवस्था?India’s postal system

कब सुधरेगी भारत की डाक व्यवस्था?
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
 स्मार्ट हलचल।आजादी के 75 साल बाद भी भारत की डाक व्यवस्था में सुधार न होकर पतन ही हुआ।भारत में डाक विभाग 250 साल से पुराना है। आज गांव −गांव तक इसकी ब्रांच हैं।पूरे भारत में 155531 डाकघर हैं।इतना बडा नेटवर्क होने के बाद भी यह सरकारी विभाग प्राइवेट कोरियर कंपनियों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ती जा रही है।
भारतीय डाक की सेवा में सुधार हो, इसमें न विभागीय अधिकारियों की रूचि है, न सरकार की।इसी का परिणाम है कि इसका अपने व्यवसाय से एकाधिकार टूटता जा रहा है। प्राइवेट कंपनी इसके व्यवसाय को कब्जाती जा रही हैं।
भारत में डाक सेवाओं की स्थापना 1774 में हुई।पहली बार भारतीय डाकघर को राष्ट्रीय महत्व के एक अलग संगठन के रूप में स्वीकार किया गया और उसे एक अक्टूबर 1854 को डाकघर महानिदेशक के सीधे नियंत्रण में सौंप दिया गया । भारतीय डाक व्यवस्था कई व्यवस्थाओं को जोड़कर बनी है । 650 से ज्यादा रजवाड़ों की डाक प्रणालियों, जिला डाक प्रणाली और जमींदारी डाक व्यवस्था को प्रमुख ब्रिटिश डाक व्यवस्था में शामिल किया गया था । इन टुकड़ों को इतनी खूबसूरती से जोड़ा गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक संपूर्ण अखंडित संगठन है।
1766 में लार्ड क्लाइव ने देश में पहली डाक व्यवस्था स्थापित की थी । इसके बाद 1774 में वारेन हेस्ंटिग्ज़ ने इस व्यवस्था को और मजबूत किया । उन्होंने एक महा डाकपाल के अधीन कलकत्ता प्रधान डाकघर स्थापित किया । मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी में क्रमशः 1786 और 1793 में डाक व्यवस्था शुरू की गई । 1837 में डाक अधिनियम लागू किया गया ताकि तीनों प्रेसीडेन्सी में सभी डाक संगठनों को आपस में मिलाकर देशस्तर पर एक अखिल भारतीय डाक सेवा बनाई जा सके । 1854 में डाकघर अधिनियम के जरिए एक अक्टूबर 1854 को मौजूदा प्रशासनिक आधार पर भारतीय डाक घर को पूरी तरह सुधारा गया ।
1854 में डाक और तार दोनों ही विभाग अस्तित्व में आए। शुरू से ही दोनों विभाग जन कल्याण को ध्यान में रख कर चलाए गए । लाभ कमाना उद्देश्य नहीं था । 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द में सरकार ने फैसला किया कि विभाग को अपने खर्चे निकाल लेने चाहिए। उतना ही काफी होगा । 20वीं सदी में भी यही क्रम बना रहा । डाकघर और तार विभाग के क्रियाकलापों में एक साथ विकास होता रहा। 1914 के प्रथम विश्व युध्द की शुरूआत में दोनों विभागों को मिला दिया गया ।
भारतीय राज्यों के वित्तीय और राजनीतिक एकीकरण के चलते यह आवश्यक और अपरिहार्य हो गया कि भारत सरकार भारतीय राज्यों की डाक व्यवस्था को एक विस्तृत डाक व्यवस्था के अधीन लाए । ऐसे कई राज्य थे जिनके अपने जिला और स्वतंत्र डाक संगठन थे और उनके अपने डाक टिकट चलते थे । इन राज्यों के लैटर बाक्स हरे रंग में रंगे जाते थे ताकि वे भारतीय डाकघरों के लाल लैटर बाक्सों से अलग नज़र आएं ।
1908 में भारत के 652 देशी राज्यों में से 635 राज्यों ने भारतीय डाक घर में शामिल होना स्वीकार किया । केवल 15 राज्य बाहर रहे, जिनमें हैदराबाद, ग्वालियर, जयपुर और ट्रावनकोर प्रमुख हैं ।
1925 में डाक और तार विभाग का बड़े पैमाने पर पुनर्गठन किया गया । विभाग की वित्तीय स्थिति का जायजा लेने के लिए उसके खातों को दोबारा व्यवस्थित किया गया । उद्देश्य यह पता लगाना था कि विभाग करदाताओं पर कितना बोझ डाल रहा है या सरकार का राजस्व कितना बढा रहा है और इस दिशा में विभाग की चारों शाखाएं यानी डाक, तार, टेलीफोन और बेतार कितनी भूमिका निभा रहे हैं ।
भारतीय डाक सेवा का क्षेत्र चिट्ठियां बांटने और संचार का कारगर साधन बने रहने तक ही सीमित नहीं है । शुरूआती दिनों में डाकघर विभाग, डाक बंगलों और सरायों का रख रखाव भी करता था। 1830 से लगभग तीस सालों से भी ज्यादा तक यह विभाग यात्रियों के लिए सड़क यात्रा को भी सुविधाजनक बनाते थे । कोई भी यात्री एक निश्चित राशि के अग्रिम पर पालकी, नाव, घोड़े, घोड़ागाड़ी और डाक ले जाने वाली गाड़ी में अपनी जगह आरक्षित करवा सकता था । वह रास्ते में पड़ने वाली डाक चौकियों में आराम भी कर सकता था । यही डाक चौकियां बाद में डाक बंगला कहलाईं।19वीं सदी के आखिर में प्लेग की महामारी फैलने के दौरान, डाकघरों को कुनैन की गोलियों के पैकेट बेचने का काम भी सौंपा गया था ।
भारत संयुक्त परिवारों और छोटी आमदनी वाले लोगों का देश है, जहां लोगों को छोटी रकमों की सूरत में लाखों रूपए भेजने पड़ते हैं । रूपयों के लेन-देन का काम जिला मुख्यालयों में स्थित 321 सरकारी खजानों द्वारा किया जाता था । 1880 में मनी आर्डर के द्वारा छोटी रकमें भेजने का काम 5090 डाकघर वाली विस्तृत डाक एजेंसी को दिया गया और इस तरह जिला मुख्यालयों तक जाने और प्राप्तकर्ता द्वारा पहचान साबित करने की कठिनाइयां कम हो गईं ।1884 में उच्च पदों पर आसीन कर्मचारियों को छोड़कर देसी डाक कर्मचारियों के लिए डाक जीवन बीमा योजना शुरू की गई, क्योंकि भारत में काम करने वाली बीमा कंपनियां आम भारतीय निवासियों का बीमा करने से कतराती थीं ।
उन कठिन दिनों में देश के साथ-साथ डाक विभाग भी इसके असर से अछूता नहीं रहा । 1857 के बाद विभाग ने आगजनी और लूटमार का दौर देखा । एक उपडाकपाल और एक ओवरसियर की हत्या कर दी गई, एक रनर को घायल कर दिया गया और बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तर पश्चिमी सीमांत राज्यों के कई डाकघरों को लूट लिया गया । उत्तर पश्चिमी सीमांत राज्यों और अवध में सभी संचार लाइनों को बंद कर दिया गया था और हिंसा खत्म हो जाने के बाद भी साल भर तक कई डाकघरों को दोबारा नहीं खोला जा सका ।
लगभग पांच माह तक चलने वाली 1920 की डाक हड़तालों ने देश की डाक सेवा को पूरी तरह ठप्प कर दिया था । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई डाकघरों और लैटर बक्सों को जला दिया गया थाऔर डाक का आना-जाना बड़ी मुश्किल से हो पाता था। इसके कारण कई सेक्टरों में डाक सेवाएं गड़बड़ा गई थीं ।
पोस्ट कार्ड 1879 में चलाया गया जबकि वैल्यू पेएबल पार्सल (वीपीपी), पार्सल और बीमा पार्सल 1977 में शुरू किए गए। भारतीय पोस्टल आर्डर 1930 में शुरू हुआ । तेज डाक वितरण के लिए पोस्टल इंडेक्स नंबर (पिनकोड) 1972 में शुरू हुआ । तेजी से बदलते परिदृश्य और हालात को मद्दे नजर रखते हुए 1985 में डाक और दूरसंचार विभाग को अलग-अलग कर दिया गया । समय की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 1986 में स्पीड पोस्ट शुरू हुई ओर 1994 में मेट्रो#राजधानी#व्यापार चैनल, ईपीएस और वीसैट के माध्यम से मनी आर्डर भेजा जाना शुरू हुआ।
पिछले कई सालों में डाक वितरण के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ है और यह डाकिए द्वारा चिट्ठी बांटने से स्पीड पोस्ट और स्पीड पोस्ट से ई-पोस्ट के युग में पहुंच गया है । भारतीय पोस्टल आर्डर 1930 में शुरू हुआ । तेज डाक वितरण के लिए पोस्टल इंडेक्स नंबर (पिनकोड) 1972 में शुरू हुआ । तेजी से बदलते परिदृश्य और हालात को मद्दे नजर रखते हुए 1985 में डाक और दूरसंचार विभाग को अलग-अलग कर दिया गया । समय की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 1986 में स्पीड पोस्ट शुरू हुई ओर 1994 में मेट्रो#राजधानी#व्यापार चैनल, ईपीएस और वीसैट के माध्यम से मनी आर्डर भेजा जाना शुरू किया गया ।
डाक व्यवस्था में डाकिए का बड़ा महत्व है। पुराने जमाने में हरेक डाकिए को ढोल बजाने वाला मिलता था जो जंगली रास्तों से गुजरते समय डाकिए की सहायता करता था । रात घिरने के बाद खतरनाक रास्तों से गुजरते समय डाकिए के साथ दो मशालची और दो तीरंदाज भी चलते थे। ऐसे कई किस्से मिलते हैं जिनमें डाकिए को शेर उठा ले गया या वह उफनती नदी में डूब गया या उसे जहरीले सांप ने काट लिया या वह चटटान फिसलने या मिटटी गिरने से दब गया या चोरों ने उसकी हत्या कर दी

ब्रिटिश भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने आम जनता के लिए पहली डाक सेवा शुरू की।यह सेवा उन कबूतरों के लिए एक राहत के रूप में आई, जिन्हें पत्र देने में कई दिन और महीने लग जाते थे। डाक सेवाओं ने त्वरित वितरण को एक वास्तविकता बना दिया।पूरे देश में इसका नेटवर्क बना। गांव −गांव तक पोष्ट आफिस खुल गए।डाक सेवा के साथ−साथ सरकार की छोटी− छोटी बचत योजनांए भी शुरू हुईं।सयम की मांग को देखते हुए तार और फोन सेवा पर भी डाक तार विभाग का एकाधिकार हो गया। एक की कंपनी होने के कारण प्रबंधक की परेशानी देखते हुए 1985 में दूरसंचार सेवाएं अलग कर दी गई।
समय बदला अंतरराष्ट्रीय शिपिंग.डीएचएल ने 1969 में पहली अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी के रूप में एक भव्य प्रवेश किया, और कई अन्य ने इसका अनुसरण किया। इनका उद्देश्य बिना किसी देरी के सुविधाजनक वितरण सेवाएं प्रदान करना था।2020 तक, ब्लू डार्ट भारत में अग्रणी कूरियर कंपनी बन गई। प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ, माल की डिलीवरी तेज और तेज हो गई है। जबकि समय के साथ कूरियर सेवाओं का उन्नयन हुआ है, लोग अभी भी आवश्यक दस्तावेज भेजने के लिए डाक सेवाओं पर भरोसा करते हैं।किंतु समय ज्यादा लेने डाक विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही और सेवा में रूचि न लेने के कारण भारतीय डाक सेवा में लोगों का रूझान कम होना शुरू हो गया।ये सही है कि डाक सेवाएं सस्ती और कूरियर सेवाएं मंहगी हैं। किंतु आज भारतीय समाज में पैसा बढ़ा है तो डाक भेजने वाले के लिए सस्ती और मंहगी में ज्यादा फर्क नही रह गया। वह जल्दी से जल्दी अपनी डाक गंतव्य पर पंहुचाना चाहता है।
ऐसे में भारतीय डाक सेवा पिछड़ती जा रही हैं।डाक विभाग ने अपनी स्पीड पोस्ट सेवा शुरू की।नाम से लगता है कि डाक की अन्य सेवाओं से ये तेज होगी किंतु ऐसा नही है। बिजनौर उत्तर प्रदेश से राजकोट गुजरात में स्पीड पोस्ट पंहुचने में नौ दिन लगते हैं, जबकि कोरियर चार से पांच दिन में आ जाता है। दिल्ली से राजकोट स्पीड पोस्ट पांच दिन लेती है। कूरियर कंपनी ब्लू डांर्ट राजकोट का पैकेट दूसरे दिन दिल्ली में डिलीवर कर देती है। बेटे का जन्म दिन था। पहले दिन शाम छह बजे बिजनौर से मैने बंगलौर के लिए मिठाई का पैकेट कोरियर किया। ये पैकेट अगले दिन शाम पांच बजे बेटे को कंपनी में मिल गया।डाक से ऐसा कभी नी हो सकता।
हालाकि कोरियर कंपनी का नेटवर्क अभी शहरों तक ही सीमित है। डाक सेवा गांव− गांव तक फैली होने के कारण अपनी सुविधा गांव तक दे रही है।गांव तक सेवा देने में उसका एकाधिकार है किंतु जैसे−जैसे कोरियर कंपनियों का विस्तार होता जाएगा, वह गांव तक अपनी एकाधिकार जमा लेंगी।डाक तार कर्मचारी कहते है कि विभाग के अधिकारी और मंत्रियों को सेवा के सुधार में रूचि नही है।पुराने सोफ्टवेयर चला रखे हैं। नए यातायात के साधन बढ़ने को ध्यान में रखते हुए ये नई योजनांए, नए रूट नही बनाते। कोरियर कंपनी प्रदेश की सरकारी बस सेवा से अपने पैकेट भेजती हैं। डाक विभाग ऐसा क्यों नही कर पाता।बिजनौर से गाजियाबाद सीधे रूट है। किंतु डाक विभाग आरएमएस से डाक भेजता है। सीधे गाजियाबाद और दिल्ली डाक कुछ घंटे में पंहुच सकती है किंतु आरएमएस से भेजे जाने के कारण ये तीन दिन में गाजियाबाद पहुंचती है। पहले डाक बिजनौर अरणमएस से नजीबाबाद जाएगी। वहां से पैकेट बन मुरादाबाद। तीसरे दिन मुरादाबाद से गाजियाबाद पहुंचेगी।इन व्यवस्था में बहुत सुधार किया जा सकता है
लगता तो नही किंतु विभाग के कमर्चारी आरोप लगाते रह हैं कि विभाग के उच्च अधिकारी मंत्री इस तरह से योजनाएं बनाते है कि डाक विंलब से पंहुचे और कुरियर कंपनी को लाभ हो ।डाक विभाग का कोरियर कंपनी की तरह अपनी प्रीमियर सेवा शुरू करनी होगी। आज ग्राहक चाहता है कि उसकी डाक जल्दी पहुंचे। भले ही उसे ज्यादा भुगतान करना पड़े। सरकारी तंत्र अपनी डाक के लिए अभी तक भारतीय डाक पर निर्भर हैं किंतु विभागीय कर्मचारियों की लापरवाही से कब तक ऐसा होता रहेगा, ये सोचना पड़ेगा।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES