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19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने 50 दिनों में 2000 मंत्र का दंडकर्म परायणम किया संपन्न
✍️डॉ नयन प्रकाश गांधी युवा मैनेजमेंट विश्लेषक ,अंतरराष्ट्रीय लाइफ कोच
स्मार्ट हलचल|भारत की भूमि सदियों से आध्यात्म और ज्ञान की गंगा है। यहां की संस्कृतियाँ, ज्ञानपरंपराएं और तपस्या ने विश्व को सभ्यता और चेतना के मार्ग दिखाए हैं। इसी पुण्यभूमि पर महाराष्ट्र के 19 वर्षीय युवा वैदिक साधक देवव्रत महेश रेखे ने अपनी अद्वितीय साधना के जरिये एक ऐसा अध्याय लिखा है, जो न केवल आज के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवन जीने की एक दिशा प्रदान करता है। देवव्रत ने लगभग 2000 वैदिक मंत्रों का दण्डकर्म पारायण 50 दिनों तक निरंतर, शुद्ध, और अखंड अनुशासन के साथ पूरा किया।यह पारायण शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा का है, जिसे वैदिक साहित्य में अत्यंत जटिल और कठिन माना जाता है। इस साधना का पूर्ण अनुष्ठान काशी की पवित्र धरती पर संपन्न हुआ, जो भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का जीवंत प्रमाण है। 200 वर्षों में पहली बार इस स्तर का दण्डकर्म पारायण यहां सम्पूर्ण हुआ है, और इस उपलब्धि को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से सराहा है। यह तपस्या न केवल स्मरण शक्ति का विस्तार है बल्कि आंतरिक अनुशासन और समर्पण की पराकाष्ठा का भी परिचायक है।युवा मैनेजमेंट विश्लेषक अंतराष्ट्रीय लाइफ कोच डॉ नयन प्रकाश गांधी का मानना है कि आज के भारत में जब युवा अपनी ऊर्जा का अधिकतर हिस्सा डिजिटल दुनिया और व्यावसायिक भागदौड़ में व्यस्त कर देते हैं, तब देवव्रत जैसे साधक यह संदेश प्रदान करते हैं कि असली शक्ति तपस्या, अध्ययन, और संघर्ष से आती है। उन्होंने प्रतिदिन लगभग चार घंटे की कठोर साधना कर, बिना किसी विचलन के यह महान कार्य पूरा किया, जो उनके कौशल, धैर्य और दृढ़ संकल्प की मिसाल है। इन दिनों एक युवा के लिए अपने मन को एकाग्र करना और शुद्धता के साथ सैकड़ों मंत्रों में निपुणता पद-योजना के अनुसार उच्चारण करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है।वैदिक ज्ञान केवल धार्मिक कर्मकांड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन की वैज्ञानिक समझ, मानसिक अनुशासन, और नैतिकता का आधार भी है। देवव्रत जैसे युवा इस गहन ज्ञान को समुचित साधना से आत्मसात कर इसे सर्वसुलभ और व्यवहारिक बनाते हैं। वेदों के मन्त्रों में छिपा वह विज्ञान और मनोविज्ञान आज के तनावपूर्ण समाज के लिए समाधान प्रस्तुत करता है। देवव्रत का अध्ययन वेदांत, योग, सांख्य दर्शन के साथ-साथ वैदिक ज्योतिष और ध्यान-परंपराओं में भी गहन है, जो उनके ज्ञान को और भी विशिष्ट बनाता है।यह उपलब्धि भारत के युवाओं में ‘वैदिक क्रांति’ की एक नई किरण है। जब युवा अपनी प्रतिभा, ऊर्जा और समय को निर्बाध साधना, अनुशासन, और राष्ट्र-निर्माण के लिए समर्पित करेंगे, तभी भारत सफल होगा। देवव्रत महेश रेखे ने जो जिस्मानी, मानसिक और आध्यात्मिक एकाग्रता दिखाई है, उससे स्पष्ट होता है कि युवा शक्ति को सही दिशा मिले तो वह अलौकिक कार्य कर सकती है।युवाओं के लिए यह समय है, जब वे डिजिटल दुनिया की चमक-दमक से हट कर अपने अंदर की असली शक्ति को पहचानें। यह शक्ति ज्ञान, अनुशासन और मेहनत में समर्थ है। देवव्रत की कहानी इसी बात का जीता-जागता प्रमाण है,कि युवा जो कठिन तपस्या, स्मरणशक्ति, और वैदिक संस्कार अपनाता है, वह स्वयं और देश के लिए प्रेरणा बन जाता है।हर युवा को चाहिए कि वह अपने भीतर छुपे इस बाल प्रतिभा को जगाए। जहां ज्ञान की जड़ें गहरी होंगी, वहीं से एक नई क्रांति जन्म लेगी,वैदिक क्रांति। यह क्रांति न केवल हमारे आत्मसम्मान और संस्कारों की रक्षा करेगी, बल्कि इसके माध्यम से भारत आत्मिक, नैतिक और बौद्धिक रूप से भी एक नई ऊंचाई पर पहुंचेगा। देवव्रत जैसे युवा इस क्रांति के सशक्त स्तम्भ हैं।आइए, सब मिलकर इस नए युग की शुरुआत करें, जिसमें वैदिक ज्ञान को समझना, आत्मसात करना और उसके आधर पर जीवन जीना हर युवा का लक्ष्य हो। ऐसा भारत जहां तकनीक और आधुनिकता के साथ-साथ संस्कार और अध्यात्म भी चमकते हों। ऐसा भारत जहां हर युवा वैदिक साधक बन, न केवल अपने लिए बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र के लिए सद्भाव और समृद्धि का रास्ता खोले। देवव्रत महेश रेखे की जैसे मशाल जलाएं, और नवभारत निर्माण की राह पर कदम बढ़ाएं।


