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झारखंड में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है , इसे रोकना जरुरी है

>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/चुनावी साल में झारखंड में आदिवासियों और मुसलमानों की आबादी का मामला तुल पकड़ता जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि राज्य के संथाल परगना में पिछले कुछ सालों में आदिवासियों की संख्या में कमी आई है, जबकि यहां पर मुसलमान बढ़ गए हैं। पार्टी का कहना है कि यह सब साजिश के तहत हो रहा है।पार्टी ने चुनाव आयोग में भी इसकी शिकायत की है। भौगोलिक तौर पर झारखंड 4 हिस्सों (संथाल परगना, कोल्हान, उत्तर छोटानागपुर और दक्षिण छोटानागपुर) में बंटा है। संथाल परगना इलाके में झारखंड के 6 जिले गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ शामिल हैं।
झारखंड भाजपा के मुताबिक साल 1951 में जब पहली बार जनगणना कराई गई थी, उस वक्त संथाल परगना के जिलों में आदिवासियों की आबादी 44.67 प्रतिशत थी। 9.44 प्रतिशत मुसलमान थे। 45।9 प्रतिशत आबादी दलित, ओबीसी और सवर्ण समाज की थी। 1971 में इस आंकड़ों में बढ़ोतरी देखी गई।साल 1971 में आदिवासियों की संख्या में गिरावट हुई और इस साल संथाल परगना में आदिवासी 44।67 से 36।22 प्रतिशत हो गए। मुसलमान 9. 44 से बढ़कर 14. 62 प्रतिशत हो गए।1981 के जनगणना में आदिवासियों की आबादी में मामूली बढ़त देखी गई। इस साल के जनगणना के मुताबिक यहां पर आदिवासियों की संख्या 36.80 प्रतिशत थी। वहीं मुसलमानों की संख्या में करीब 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।साल 2011 के जणगणना के मुताबिक संथाल परगणना में घटकर आदिवासी करीब 28 प्रतिशत पर पहुंच गए। वहीं मुसलमानों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई। मुसलमान यहां बढ़कर 22.73 प्रतिशत पर पहुंच गए।
बताया जाता है कि जमशेदपुर के रहने वाले दानियाल दानिश ने झारखंड हाई कोर्ट में PIL फाइल की थी कि संथाल परगना में बड़ी तादाद में घुसपैठिए दाखिल हो गए हैं जिससे वहां की डेमोग्राफी चेंज हो रही है और आदिवासियों की संख्या घट रही है। याचिकाकर्ता दानियाल ने अदालत से कहा कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी करके उनका धर्म परिवर्तन कर रहे हैं, और उनकी ज़मीनों को गिफ्ट डीड के ज़रिए हथिया रहे हैं। उन्होंने कहा कि घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी करके उनके नाम पर रिजर्व पोस्ट को रिमोट से चला रहे हैं।
दानियाल ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट से यह भी कहा कि झारखंड के बंगाल से लगने वाले जिलों में घुसपैठियों ने बहुत बड़ी तादाद में मस्जिदें और मदरसे कायम कर लिए हैं। झारखंड हाई कोर्ट ने जिस मसले पर सुनवाई की, उसको लेकर संथाल परगना के लोग काफी दिनों से आवाज उठा रहे हैं। कई सोशल वर्कर, आदिवासियों की कम होती आबादी और बदलती डेमोग्राफी को लेकर चिंता जता चुके हैं। संथाल परगना में घुसना इसलिए आसान है क्योंकि वहां से बांग्लादेश केवल 15 किलोमीटर दूर है। संथाल परगना की सीमा पश्चिम बंगाल से लगती है और वहां से बांग्लादेश बॉर्डर ज्यादा दूर नहीं है।
ज्ञात हो कि संथाल परगना के लोग अक्सर, कभी पैदल तो कभी नाव से नदी पार करके बंगाल जाते-आते रहते हैं। अब अगर बांग्लादेश से किसी को झारखंड में दाखिल होना है तो उसे बस ये 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। बांग्लादेश बॉर्डर करीब होने की वजह से ऐसे कई पॉइंट हैं जहां बंगाल से होते हुए, झारखंड में दाखिल हुआ जा सकता है। झारखंड का पाकुड़ जिला बांग्लादेश बॉर्डर से सबसे करीब पड़ता है। वहां काम करने वाले सोशल एक्टिविस्ट धर्मेंद्र कुमार ने घुसपैठ के पूरे नेक्सस के बारे में बताया। घुसपैठ करके झारखंड में बसने वाले बांग्लादेशियों के पास कई बार तो दोनों देशों के ID कार्ड होते हैं जिससे वे आराम से बांग्लादेश और भारत आ-जा सकें।
बताया जाता है कि झारखंड में बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों के लिए फेक डॉक्यूमेंट बनाने के लिए बाकायदा फेक वेबसाइट्स भी चलाई जा रही हैं, और सरकार को भी इसकी खबर है। पिछले साल गृह मंत्रालय ने एक डॉक्यूमेंट रिलीज किया था। इसमें बताया गया था कि 120 से ज्यादा फेक वेबसाइट्स, नकली बर्थ सर्टिफिकेट बनाने का काम कर रही हैं। होम मिनिस्ट्री ने झारखंड सरकार को खासतौर पर चेताया था कि राज्य में बहुत सी वेबसाइट चल रही हैं, जो घुसपैठियों के लिए नकली बर्थ सर्टिफिकेट बना रही हैं।
भारत की नागरिकता हासिल करने के बाद घुसपैठियों का असली खेल शुरू होता है। वे आदिवासी लड़कियों को अपने जाल में फंसाते हैं, उनसे ब्याह करते हैं और फिर उनकी जमीनें हासिल करने की कोशिश करते हैं। असल में आदिवासी अपनी ज़मीन किसी को बेच नहीं सकते। संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के तहत, ट्राइबल्स अपनी जमीनें लीज पर भी नहीं दे सकते। इसलिए अब घुसपैठियों ने आदिवासियों की जमीन हड़पने का एक नया रास्ता निकाल लिया है। घुसपैठिए, इसके लिए आदिवासियों से गिफ्ट डीड कराते हैं यानी डॉक्यूमेंट तैयार करके आदिवासियों से उनकी जमीन गिफ्ट करा ली जाती है, फिर इन जमीनों पर अवैध काम किए जाते हैं।

गौरतलब है कि अप्रैल 2022 में दुमका में हथियारों की एक अवैध फैक्ट्री पकड़ी गई थी। यह हथियार फैक्ट्री गिफ्ट डीड की जमीन पर चल रही थी। जब बंगाल पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने छापा मारा, तब ये मामला सामने आया था। जब कुछ रिपोर्टर संथाल परगना इलाके में पहुंचे तो उन्हें कई जिलों में एक खास ट्रेंड दिखा। कई आदिवासी महिलाओं से मुसलमानों ने शादी कर ली थी जिनमें से कई महिलाएं ऐसी थीं जो अपने-अपने गांव की पंचायत की मुखिया हैं लेकिन उनका रिमोट उनके मुस्लिम पतियों के पास है। ऐसी महिलाओं की आदिवासी पहचान मिट चुकी है और वे खुद भी इस्लामिक तौर तरीके अपना रही हैं। इनके बच्चे भी इस्लाम धर्म का हिस्सा बन रहे हैं।
दुमका और साहिबगंज जिलों में पत्रकारों को ऐसे कई मामले मिले। साहिबगंज के बिशुनपुर गांव में मुखिया का पद आदिवासियों के लिए रिजर्व है। यहां से तालामई टुडु मुखिया हैं और उन्होंने वसीम अकरम से शादी की है। पूरा गांव तालामई के बजाय वसीम अकरम को ही मुखिया कहता है। वहीं, तालामई टुडु ने बताया कि वह पर्दा प्रथा मानने लगी हैं और नमाज पढ़ने लगी हैं। बिशुनपुर में आशा वर्कर थेमी सोरेन ने कहा कि उनके गांव में ही नहीं, आसपास के कई गांवों में मुसलमानों ने आदिवासी लड़कियों से शादी की है। इससे आदिवासियों की आबादी घटती जा रही है क्योंकि उनके बच्चे मुसलमान होते हैं।
सियासत से अलग, घुसपैठ एक गंभीर मसला है। भारत के सबसे बड़े आदिवासी इलाकों की डेमोग्राफी बदल जाना चिंता की बात है। झारखंड सरकार को इसे राजनीतिक चश्मे से देखने के बजाय एक सीरियस सोशल इश्यू के तौर पर स्वीकार करना होगा। अगर आदिवासियों की जमीनों पर घुसपैठियों का कब्जा हो रहा है, अगर आदिवासी महिलाओं से शादी करके पॉलिटिकल पावर पर कब्जा किया जा रहा है और फेक डॉक्यूमेंट्स से भारत की नागरिकता हासिल की जा रही है तो ये एक राजनीतिक मसला नहीं रह जाता। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे की बात है।देश के संसाधनों पर अगर घुसपैठियों का कब्जा हो रहा है तो ये राजनीतिक खींचतान का विषय नहीं, भारत की सुरक्षा का सवाल बन जाता है, और नेशनल सिक्योरिटी के मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। घुसपैठियों की भारत में कोई जगह नहीं है। उनकी पहचान करना, उन्हें देश से डिपोर्ट करना बहुत जरूरी है।
अवैध रूप से भारत में घुसने वाले बांग्लादेशियों के खिलाफ झारखंड कोर्ट ने भी हाल ही सख्ती दिखाई है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वो गैर कानूनी रूप से भारत में घुसे हुए बांग्लादेशियों को चिह्नित करें और उनपर कार्रवाई करके उन्हें वापस भेजने के लिए कार्ययोजना तैयार करें।जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस एके राय की पीठ ने 3 जुलाई 2024 को डानियल दानिश की याचिका पर सुनवाई के बाद ये निर्देश दिए है । अदालत ने इस मामले में सरकार को दो सप्ताह के भीतर प्रगति रिपोर्ट पेश करने को कहा है जिसमें उन्हें बताना है कि उन्होंने कितने बांग्लादेशी घुसपैठियों को चिह्नित किया, उनमें से कितनों को रोका और कितनों को वापस भेजने का प्रयास हो रहा है।
इसके अलावा कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से भी जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि ये बहुत गंभीर मसला है। इसको सिर्फ राज्य की सरकारें नहीं हैंडल कर सकतीं। केंद्र को भी इसमें राज्य के साथ काम करना चाहिए। इसलिए वो भी उन्हें रिपोर्ट दें कि केंद्र इस मामले में क्या-क्या कदम उठा सकता है।बता दें कि इस सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से भी अदालत में बात रखी गई। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि घुसपैठ के मामले में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अधिकार दिए हैं वो ऐसे लोगों को खुद चिह्नित करके कार्रवाई कर सकते हैं। हालाँकि याचिका डालने वाले व्यक्ति ने बताया कि राज्य सरकार तो राज्य में घुसपैठ से ही इनकार कर रही है। वो संताल इलाके में किसी धर्मांतरण की बात भी नहीं स्वीकार कर रही। ऐसे में केंद्र को ही घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए जाने चाहिए। अब मामले में अगली सुनवाई 18 जुलाई को होनी है।
गौरतलब है कि धर्मांतरण के मसले पर इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी सख्त टिप्पणी की थी। उन्होंने ईसाई धर्मांतरण के खतरे को देख कहा था कि अगर अगर इसी तरह से धर्मांतरण का खेल जारी रहा तो आने वाले समय में देश में बहुसंख्यक जनसंख्या अल्पसंख्यक हो जाएगी। कोर्ट में ये महत्वपूर्ण टिप्पणी जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने की थी। उन्होंने कहा था कि जहाँ भी और जैसे भी भारतीय लोगों का धर्मांतरण करवाया जाता है उसे फौरन रोका जाना चाहिए।

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