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ईद मिलादुन्नबी के मौके पर बून्दी में निकला विशाल जुलूस, जगह जगह किया तबरुक तकसीम
बून्दी 28 सितम्बर। स्मार्ट हलचल/ईद मिलादुन्नबी के मौके पर गत वर्षों की तरह इस वर्ष भी नौजवां गौसिया सर्किल ईद मिलादुन्नबी जुलूस सोसायटी बून्दी के बैनर तले मिलादुन्नबी का विशाल जुलूस बड़ी शानो शौकत व अमन व भाईचारे का पैगाम देते हुए निकाला गया।
यह जानकारी देते हुए सर्किल के प्रवक्ता दिलशाद शेरवानी ने बताया कि जुलूस में सबसे आगे बग्गी में रोज़ा ए मुबारक की तस्वीर, उसके पीछे घोड़ो पर आलिम ए दिन सब्ज परचम लेकर सवार थे। जुलूस अपने विशाल रूप में था जब जुलूस का प्रथम सिरा कागदी देवरा में था तब आखरी सिरा मिरांगेट ही था।
जुलूस सुबह 8 बजे मीरां गेट से शुरू हुआ जहां से ब्रह्मपुरी, पुराने कमेले के सामने, शुक्ल बावड़ी, कागदी देवरा, ब्राह्मणों की हताई, मोची बाज़ार, चौमुखा, चौगान गेट, इंद्रा मार्केट, अहिंसा सर्किल, एक खम्भे की छतरी, कोटा रोड़, सब्जी मंडी रोड़, के. एन. सिंह सर्किल होते हुए नेहरू गार्डन नगर परिषद के सामने पहुँचकर जलसे में तब्दील हुआ।
औलमा इकराम ने हुजूर की शान में बयान किए
जलसे की शुरुआत में जुलूस सोसायटी द्वारा आलीमेदिन का गुलपोशी से इस्तकबाल किया गया। जलसे को सम्बोधित करते हुए मुफ़्ती आलम रज़ा गौरी ने कहा कि आज हमने एक जुलूस के रूप में पैदल चलते हुए आका की गुलामी और हमारी एकता का सबूत दिया है यही हमें पूरे साल दिखाना है कि हम एक है हमारी एकता आज के वक्त में बहुत जरूरत है।
मौलाना गुलाम गौस ने शांति का पैगाम देते हुए नबी की शान में अशआर पेश किये। मुफ़्ती नदीम अख्तर ने कहा कि हम हिंदुस्तानी मुसलमानों के लिए दो खुशनसीबी है एक तो यह कि हमारे प्यारे वतन ने चाँद पर फतह हासिल करके वहां अपना झण्डा फहरा दिया है, और दूसरी यह कि हम उस नबी के उम्मती है बचपन ही में चाँद को खिलौना बना कर खेला करते थे, हमारे नबी की शान सब नबियों से आला है।
इस दौरान हज कमेटी के अब्दुल सत्तार ने भी सम्बोधित किया। सोसायटी के सदर मेहबूब शेरवानी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि हमारे नबी दुनिया मे शान्ती और भाईचारे का पैगाम दिया है और आज हमने शान्ति प्रिय तरीके से जुलूस निकालकर यह पैगाम आगे बढ़ाया है। जुलूस मार्ग पर दर्जनों स्वागत गेटों से पुष्प वर्षा से जुलूस का भव्य स्वागत किया, वहीं बिरयानी, गुलफ़्ती लस्सी लड्डू व तरह तरह के तबर्रुक तकसीम किया गया। इस दौरान बड़ी सँख्या में मुस्लिम समाज के लोग मौजूद थे।