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जयपुर गुलाबी नगरी में ठुमक- ठुमक उड़े रे मेरी पतंगिया

जयपुर गुलाबी नगरी में ठुमक- ठुमक उड़े रे मेरी पतंगिया,Jaipur pink city

दिन में पतंग और रात को लैम्प पतंगों से सजा आसमान

अजय सिंह (चिंटू)

जयपुर –

स्मार्ट हलचल/दिन भर धीमी हवा में ठुमकी लगाते रहे पतंग बाज जयपुर गुलाबी नगरी में दिनभर पतंगबाजी का दौर चला दिन भर लोग चो पर डीजे की धुन के साथ पतंग उड़ाते रहे और रात होते ही आतिशबाजी की। ग्रहों के राजा सूर्यदेव रविवार मध्य यात्री बाद मकर संक्रांति में प्रवेश कर गए। इसलिए मकर संक्रांति का पुण्यकाल सोमवार को रहा इस मौके पर मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई गई। जयपुर के आराध्य देव गोविंददेवजी मंदिर में पतंग की विशेष झांकी सजाई गई। सूर्य की पहली किरण आसमान का रास्ता साफ करते हुए निकल पड़ी, लेकिन ये सुबह रोज वाली नहीं थी। इसमें कुछ अलग था, जो एक अलग चेतना जाग्रत कर रही थी। हालत यह है कि छतो पर लोग बार-बार पतंग को आसमान में बनाए रखने के लिए ठुमकती लगाते नजर आए। प्रतिदिन की भांति चिड़ियों की चहचहाहट ने कोई मौन धारण कर लिया। आज मकर संक्रांति की सुबह जिसमें सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया और कुछ अलग ही रंग दिखाना शुरू किया। सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट का स्थान भजनों और गानों की धुन ने ले लिया। सूरज की किरणें पतंग की डोर बनकर आसमान को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाने आ गईं। कपड़े पहनकर नीला आसमान एक अलग रंग में सजने की तैयारी कर चुका था। चारों तरफ छतों पर बालपन, यौवन अपनी एक अलग ही छटा बिखेर रहा था। ‘मेरी झोपड़ी के भाग आज जाग जायेंगे, राम आयेंगे…’ भजन ने सभी में नवचेतना जाग्रत कर दी। फिर शुरू होती है हरियाणवी, राजस्थानी, पंजाबी गानों की मस्ती। धीरे-धीरे छतों पर बच्चे, नौजवान, युवा-युवती और वृद्ध अपनी सीढ़ियां चढ़ कर इस सुंदर त्योहार की रौनक का आनंद लेने आ गए। घर की औरतें इस दिन पुण्यकाल में अपने धार्मिक कायों को पूर्ण कर रही थीं। घरों से फीणी, गाजर का हलवा और तिल की मिठाइयों ने प्रकृति को एक अलग महक प्रदान कर रखी थी। वो कांटा, काई पो छे, चल समेट, अटा सावन की घटा, चीं समेट जैसे शब्दों ने कई छतों पर शोर कर रखा था, मानो ये पतंगों की लड़ाई ने कोई आंदोलन चला रखा है और इन नारों से अपनी आवाज उठा रहे थे। जैसे-जैसे शाम होने लगी लैम्प पतंगों ने तारों की सजावट कम कर दी और आतिशबाजी पटाखों ने चन्द्रमा की छवि धूमिल कर दी। आसमान जो सुबह पतंगों से सजा, तो शाम को अंधेरा होते-होते दिवाली की सी रोशनी से जगमगा उठा।

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