भीषण गर्मी में भी उमड़ रहे हैं श्रद्धालु,
धार्मिक नगरी बना जारोड़ा गांव।
एजाज़ अहमद उस्मानी।
स्मार्ट हलचल|मेड़ता सिटी तहसील के ग्राम जारोड़ा में स्थित जंभेश्वर भगवान के मंदिर में सात दिवसीय जम्भाणी हरि कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इस ज्ञान यज्ञ में जारोड़ा, रेण, मेड़ता सिटी तथा खेडूली सहित आसपास के क्षेत्रों से बिश्नोई समाज के भक्त उमड़ रहे हैं। कार्यक्रम में सोमवार को भीषण गर्मी के दौरान भी कथा स्थल खचाखच भरा हुआ था। कथा वाचन के दौरान कथा वाचक राधेश्या नंद जी आचार्य ने बताया कि तीन चीजें मिलनी जीव के लिए अति दुर्लभ कही गई है जिसमें मनुष्यत्वम, मुमुक्षत्वं और महापुरुषों संगति शामिल है। उक्त विचार आचार्य संत राधेश्या नंद जी आचार्य ने जाम्भाणी हरि कथा के तीसरे दिन दिन की कथा करते हुए श्री जगत गुरु जंभेश्वर मंदिर जारोड़ा में प्रकट किये। आचार्य श्री ने कहा कि देव दुर्लभ तन जिसे मिला निश्चित रुप से वे सौभाग्यशाली है । जिन्होंने मानव तन का महत्व नहीं समझा लोग स्वगज़् की अपेक्षा रखते हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि स्वगज़् में रहने वाले देवता दिन,रात परमात्मा से एक ही प्रार्थना करते हैं कि प्रभु कृपा करके एक बार मानव तन हमें प्रदान करें। उन्होंने मनुष्य जीवन का महत्व समझाते हुए कहा कि यह कमज़्योनी है इसमें नुतन कर्म करने की क्षमता है । अभीष्ट मंजिल की प्राप्ति संभव है अत: आप अपना लक्ष्य निर्धारित करें तदनुरूप यात्रा करने का संकल्प लें यात्रा प्रारंभ करें निश्चित रूप से मंजिल मिलेगी जीवन सफल होगा।आचार्य श्री ने कहा कि जिन्होंने मनुष्य शरीर के महत्व को नहीं समझा वे लोग केवल जीवन के व्यवहारिक पक्ष के बारे में सोचते रहते है उसकि सिद्धि ही उनका परम लक्ष्य बन गया है और इसी में जीवन को झौक देते है। मानव जीवन का लक्ष्य और महत्व जिस दिन समझ में आएगा उस दिन जीवन का चाहे व्यवहार पक्ष हो अथवा अध्यात्म पक्ष दोनों को साधने की सोच जगेगी साथ ही समझ पाओगे कि गोण पक्ष कौन सा है और प्रधान पक्ष कौन सा है व्यवहार में कुशलता और परमाथज़् में प्रसंता हो ऐसी तैयारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सदगुरुदेव भगवान श्री जांभोजी ने अपनी वेदमयिवाणी में जीवन के दोनो पक्षो को साधने मे अभीष्ट भूमिका आचरण की कही है लेकिन दुनिया के लोग आचार,विचार का महत्व न समझ पाने के कारण केवल दुनिया की दौलत के पाने के लिए स्वेच्छाचारी बन जाते हैं एवं मर्यादा व अमर्यादा का भेद नहीं रहता है। हम कहां बैठे हैं यह स्थान कौन सा है या किस वस्तु का उपयोग होना चाहिए किसका उपयोग न करे व्यक्ति अहंकार में अंधा हुआ पदए धन के मदान्ध में भूल बैठता है और मर्यादाओं का अतिक्रमण कर देता है उसे यहां तक भी याद नहीं रहता है की एक मर्यादा की एक रेखा राजा रावण ने लांघी थी उसका परिणाम कितना भयानक था। अत: मिला जो मौका है इसका सदुपयोग करें जैसा कि भगवान शंकराचार्य ने अति दुर्लभ जिस मानव जीवन को कहां है उसका सदुपयोग करें।