क्या है भीमा कोरेगांव इतिहास ?
कोरेगांव की लड़ाई क्यों हुई थी ?
मदन मोहन भास्कर
स्मार्ट हलचल/1 जनवरी 1818 को कोरेगांव भीमा की लड़ाई में पेशवा बाजीराव द्वितीय पर अंग्रेजों ने जीत दर्ज की थी। भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस ऐतिहासिक युद्ध की याद में मनाया जाता है। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट की सेना को हराया था। इस युद्ध की याद में इस स्थल पर एक विजय स्तंभ बनाया गया था। ऐतिहासिक युद्ध में महार सैनिकों की वीरता और बलिदान को याद करने और सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।
500 सैनिकों ने 28000 सैनिकों को हराया
इस युद्ध में महार जाति के 500 सैनिकों ने तत्कालीन पेशवा सेना के 28,000 सैनिकों से लड़ाई लड़कर उन्हें हराकर ऐस्तिहासिक जीत दर्ज की थी। जिसमें कई महार सैनिकों ने जान दे दी थी । इस युद्ध के बाद महार जाति के लोगों ने स्वाभिमान के लिए अंग्रेज़ी सेना में भर्ती होना शुरू किया था।
भीमा कोरेगांव का परिचय
भीमा कोरेगांव पुणे जिले में स्तिथ है महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है। जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जहां महार सैनिकों ने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया। यह स्थान दलित आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र है। जहां हर साल हजारों लोग शौर्य दिवस मनाने आते हैं। भीमा कोरेगांव न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है बल्कि ये सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष का प्रतीक भी है। इसका महत्व समय के साथ बढ़ता गया है और 2018 की घटनाओं ने इसे फिर से राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया। ये गांव भीमा नदी के किनारे बसा हुआ है, जिससे इसका नाम भीमा कोरेगांव पड़ा है।
ऐतिहासिक महत्व
भीमा कोरेगांव का ऐतिहासिक महत्व मुख्य रूप से 1 जनवरी, 1818 को हुए एक प्रसिद्ध युद्ध से जुड़ा है। भीमा कोरेगाँव युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा की सेना के बीच लड़ा गया था। जिसमें महार रेजिमेंट ने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया। इस युद्ध ने न केवल भारतीय इतिहास को बदला, बल्कि यह दलित समुदाय के लिए गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।
भीमा कोरेगांव का इतिहास
भीमा कोरेगांव का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास का एक जरूरी हिस्सा है। ये क्षेत्र सदियों से अलग-अलग शासकों और साम्राज्यों का गवाह रहा है, जिसने इसके सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार दिया है। भीमा कोरेगांव प्राचीन काल में सातवाहन और वाकाटक वंशों के शासन के ख़िलाफ़ था। मध्यकाल में ये यादव वंश और बहमनी साम्राज्य का हिस्सा रहा। 17वीं शताब्दी में ये मराठा साम्राज्य का एक जरूरी हिस्सा बन गया।
ऐतिहासिक घटनाएं और प्रमुख तिथियां
1 जनवरी, 1818 भीमा कोरेगांव का प्रसिद्ध युद्ध हुआ।जिसने भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी। सन 1851 में युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया। जो आज भी खड़ा है। सन 1927 में डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने पहली बार भीमा कोरेगांव की यात्रा की। जो बाद में एक वार्षिक परंपरा बन गई। 1945 में डॉ. अंबेडकर ने “वाट चाल” (यात्रा) शुरू की। जो भीमा कोरेगांव तक जाती थी।2018 में कोरेगाँव में हुई हिंसा ने इस स्थान को फिर से राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया।
शौर्य दिवस का महत्व
ऐतिहासिक महत्व – भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ को याद करता है। जहां एक छोटी सेना ने एक बड़ी सेना का सामना किया और जीत हासिल की।
सामाजिक महत्व-
शौर्य दिवस दलित समुदाय के लिए गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक है। ये उनके साहस और योगदान को मान्यता देता है।
राजनीतिक महत्व-
भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस ने समय के साथ राजनीतिक महत्व भी प्राप्त किया है, जो सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों को उठाता है।
समारोह और उत्सव
हर साल 1 जनवरी को हजारों लोग भीमा कोरेगांव स्मारक पर एकत्र होते हैं।
अलग-अलग समुदायों और संगठनों के नेता भाषण देते हैं। जिसमें वे युद्ध के महत्व और इसके समकालीन प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हैं।
श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और शहीदों को याद किया जाता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें गीत, नृत्य और नाटक शामिल होते हैं जो इतिहास और मान समय की चुनौतियों को दर्शाते हैं।
युवा पीढ़ी को इतिहास और उसके महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
स्थानीय समुदाय द्वारा आगंतुकों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था की जाती है, जो सामुदायिक एकता का प्रदर्शन करता है। भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस केवल एक ऐतिहासिक घटना की याद नहीं है।बल्कि ये समानता, न्याय और सामाजिक एकता के लिए निरंतर संघर्ष का प्रतीक भी है। यह दिवस लोगों को अपने अधिकारों के लिए खड़े होने और सामाजिक बदलाव के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।
सांस्कृतिक केंद्र- भीमा कोरेगांव दलित संस्कृति और कला के विकास के लिए एक केंद्र बना रहेगा। जो नई अभिव्यक्तियों और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करेगा।
शहीद स्तंभ- स्मारक का मुख्य आकर्षण एक ऊंचा स्तंभ है। जिस पर युद्ध में शहीद हुए सभी सैनिकों के नाम अंकित किये गये हैं।
संग्रहालय- स्मारक के चारों ओर एक छोटा संग्रहालय है जो युद्ध की कहानी बताता है और उस समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों और वस्तुओं को प्रदर्शित करता है।
शिलालेख- स्मारक पर कई शिलालेख हैं जो युद्ध के विवरण और इसके महत्व को बताते हैं।
परिसर-
स्मारक के आसपास का क्षेत्र सुंदर रूप से संरक्षित है और आगंतुकों के लिए एक शांत वातावरण प्रदान करता है।
सामाजिक न्याय का प्रतीक- भीमा कोरेगांव की विरासत समानता, न्याय और सामाजिक एकता के मूल्यों को बढ़ावा देती रहेगी। ये आने वाली पीढ़ियों को इन मूल्यों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देगी।
ऐतिहासिक ज्ञान का स्रोत- ये स्थान भारतीय इतिहास के एक जरूरी अध्याय की जानकारी देता रहेगा। जो छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए मूल्यवान होगा।