स्मार्ट हलचल/जरासंध महाभारत काल का एक बहुत ही बरियार (मजबूत) राजा था और मथुरा के राजा कसाई कंस का श्वसुर भी था।उसके दोनों पुत्रियों आसित व प्रापित की शादी कंस से हुई थी।श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने 17 बार मथुरा पर चढ़ाई की,लेकिन हर बार उसे असफल होना पड़ा। जरासंध के भय से अनेक राजा अपने राज्य छोड़ कर भाग गए थे। जरासंध ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया और कृष्ण के हाथों पराजित हुआ। 18वें आक्रमण के दौरान यवन राजा कालयवन ने भी विशाल सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण किया।
ये एक प्रसंग है महाभारत से,जिसके माध्यम से अपनी बात कह रहा हूं।इस कलयुग के जरासंध लल्लन सिंह जी हैं,जो जन सहयोग से एक विद्यालय (किसान पीजी कालेज रक्सा रतसड़ बलिया यूपी) का सृजन करा लिया। फिर सर्जरी चालू हुई उस सदस्यों के लिस्ट की जिसने कालेज के निर्माण में प्राण,पैसा,प्रतिष्ठा,प्रापर्टी,प्यार न्योछावर,सब किया/दिया।इन सभी सदस्यों में (सिर्फ संस्थापक सदस्य )प्रथम लिस्ट में २२ मुस्लिम कम्युनिटी से और २८ हिंदू कम्युनिटी से थे। इसमें से कुछ को लिस्ट से मालिक/भगवान ने हटा दिया और कुछ को इस जरासंध ने! पहली लिस्ट से २२ मुस्लिम कम्युनिटी को कुतरकर दूसरी लिस्ट में ०९ तक सीमित कर दिया,ये इनके संस्थागत भाई चारे के भक्षण का प्रथम प्रयास/सबूत और बाकियों को डीलिट करके,दूसरी में अपनी व अपनों की संख्या ५५ तक कर ली।मजे की बात ये कि जब विद्यालय १९९३ में चला तब तक इस जरासंध का ना कोई मामा था,ना कोई नाना,ना कोई साला,ना कोई श्वसुर था,ना समधी,ना कोई जीजा जीजी,ना ही कोई भाई था, और तो और कोई पुत्र/पुत्री भी नही था,ना ही किसी तरह की रिश्तेदारी या एक कदम और आगे तक कहेंगे कि २००० (बी.एड. आने तक)। लेकिन ज्यों ही विद्यालय चल पड़ा(१९९३ के बाद, तवारीख की बात है,तारीख आस पास की भी हो सकती हैं) सारे रिश्ते अवतरित/पैदा हो गए! नहीं तो कोई बताए निम्नलिखित लोग कब आए और संस्था का खून चूसने के शिवाय कुछ दिया हो –
१- डा.विनोद सिंह,न श्रम,न संपत्ति,न समय कुछ भी नही दिया है।
२- अमर सिंह, कार्यसमिति के प्रसाद पद के रुप में उपाध्यक्ष बना दिया गया है (उपप्रबंधक भी रहे हैं और उपप्रबंधक बनने की घटना की गाथा भी कम रोचक नही है। माननीय खालिक चाचा की दोनों होनहार बच्चियों को पढ़ाने का सब्जबाग दिखाकर कार्यसमिति में उनको,अमर सिंह के नाम का उपप्रबंधक पद का प्रस्ताव करने के लिए बाध्य किया गया।इसके आगे और बढ़िए,कुछ दिन बाद ही उन बच्चियों की पढ़ाने की डिग्री अमान्य हो गईं और बिना हरे फिटकरी के बहनोई उपप्रबंधक बन गया?और ख़ालिक़ चाचा के दोनों बच्चियों को विद्यालय से बाहर कर दिया गया?? दिया एक चवन्नी तक नही और लीलने रुपैया आ गए!
३-जय प्रकाश तिवारी,एक ढेला का सहयोग नही, शिवाय जरासंध की जी हुजूरी के।
४- बच्चा नंद सिंह,इस जरासंध के नो इश्यू वाले चाचा हैं,इनकी अचल संपत्ति को व्यक्तिगत लहाए हैं,बस यही इनका सहयोग है विद्यालय निर्माण में।
५- श्रीयुत श्रीनाथ सिंह,इनके ननिहाल पक्ष के हैं,हम तो मामा ही कहते थे और मामा के रिश्ते को बोझिल होते हुए भी देखा है।
६-रामनाथ सिंह ये भी ननिहाल पक्ष के हैं और पांच नंबरी के खास बड़े भाई हैं।
७- शेषनाथ सिंह,इस जरासंध के खास भाई हैं और इनका भी जन्म विद्यालय निर्माण के बाद ही हुआ जो दूसरी लिस्ट में घूसेड़े गए।
८- अवधेश सिंह,ये जरासंध के खास भाई,ये भी विद्यालय निर्माण के बाद ही दूसरी लिस्ट में हूरे गए।
९- राधाकृष्ण सिंह,ये भी इनके चाचा हैं और दूसरी लिस्ट में ढकेले गए हैं।
१०- नंदजी सिंह,ये भी इनके भाई हैं और ये भी ढकेलू गैंग के सदस्य हैं।।
११- जय राम सिंह ये उस परिवार से हैं जिनसे,इस जरासंध का खान-पान तक नही है लेकिन अपने फितरती/हेराफेरी के औजारों से अपने साइड में फोर लिए हैं,घर फोड़ने की कला तो इनके हिमोग्लोबिन व डीएनए में है।
१२- सुरेन्द्र नाथ सिंह
१३- विजय बहादुर तिवारी,कहने को तो विद्यालय के प्रबंधक हैं लेकिन जरासंध के लिए,चपरासी से ज्यादा कुछ नही। यही चपरासी महोदय मेरे पर मुकदमा करने के लिए डेढ़ लाख तक रुपए खर्च करने की बात किए थे।
१४- भानु प्रताप सिंह
१५- रामजी तिवारी
१६- शिवमंगल सिंह
१७- अरविंद कुमार सिंह
१८- अशोक कुमार सिंह
१९- सुधाकर पांडेय
२०- अनिल सिंह
२१- रामजन्म पांडे
२२- राजेन्द्र प्रताप सिंह,अवराई, बलिया
२३- प्रभु नाथ तिवारी,
२४- सत्य राम सिंह
२५- नान्हू चौधरी
२६- प्रेम चंद पांडे
२७- राम बहादुर सिंह,पकड़ी बलिया
२८- बद्री नारायण सिंह
२८- जय नारायण तिवारी
२९- भानु प्रताप सिंह संठी, जरासंध के भाई के ससुराल पक्ष
३०- विजय बहादुर सिंह
३१- केपी श्रीवास्तव
३२- विरेन्द्र कुमार सिंह
जिस तरह आप इन उपरोक्त को अपना बनाए हैं ये सभी पारासाइट्स हैं जो अपने जीवन में तो कुछ किए नही हैं,सिर्फ आपकी चप्पल सीधी करने के अलावा किसी और हुनर में माहिर भी नही हैं।अगर होंगे भी तो मुझे मालूम नहीं!
कान व दिल खोल कर सुन लें और याद रखें कि आपने ऐसे पारासाइट्स पर भरोसा किया है,वे आपसे भी बड़े गद्दार साबित होंगे जो व्यवस्था का खून चूस कर उसे ही समाप्त करने में लगे हैं।लोकतंत्र में ऐसे अहंकार किसी को भी खाक में मिलाने के लिए काफी है।समझे लल्लन सिंह जी ?आप जिस चूल्हे पर अपने अतिमहत्वाकांक्षा के सपने सेक लिए हैं उसका एक मात्र कारण प्रथम लिस्ट वालों का भोलापन व भैंसापन है लेकिन उनका एहसान मानना तो दूर आपने उन्हे लालिपाप से तिरस्कार किया,इस कारण आप तो जाहिरा तौर पर एहसान फरामोश भी हैं!
पहले लिस्ट से परमार्थी,त्यागी,पराक्रमी,भोले भाले जनों व मधुर लोगों को डिलिट करके,दूसरे लिस्ट में जहरीले व लालची लोगों को घूसेड़ के कौन से डेमोक्रेसी का परिचय कराया है? सिर्फ अपनी जहर की गठरी बड़ा करने में ही सफल रहे हैं लल्लन सिंह जी/जरासंध जी?
अभी कम-से-कम १५ और हैं जिन्हें,इसी लिस्ट में,अपने हित को प्राथमिकता रखने की शर्त पर ही ठूंसे हैं। मैं दावे व चुनौती से कह रहा हूं कि दूसरी लिस्ट में जितने भी जहरीले,लालची व चाटुकार ठेले गए सदस्य हैं उनका एक चवन्नी या चार अंगुल जमीन या एक अंजुलि पीसान भी लगा हो तो किसी चौराहे पर मुझे फांसी मुकर्रर कर दी जाए।ये सभी या तो इस जरासंध के पापों व कुकर्मों को जस्टिफाई करेंगे या कमाने /पाने/खाने/चाटने के क्रम में हां सर की,भूमिका में अपने को मुस्तैद रखेंगे या सीधे-तौर पे उसके बदले में कुछ कागज के टुकड़े अपने मुंह में ठूंसवाएंगे ताकि कहना ना पड़े कि रवि सिंह पुत्र धूप नारायण सिंह (प्रथम लिस्ट के तीन खास भाईयों के साथ प्रमुख सदस्य) सदस्य क्यों नही बनेंगे?
मुझे एक बात समझ में नही आती कि पहले लोग परदेश,कलकत्ता (कोलकाता) अंडमान-निकोबार,दिल्ली वगैरह बड़े नामों वाले शहरों में कमाने/खाने/पाने/चाटने जाते थे लेकिन ये दूसरी लिस्टधारी तो मेरे छोटे से गांव में कमाने/पाने/खाने/चाटने के लिए सिर्फ आए हैं क्या? नहीं तो इस जरासंध के सहयोगियों को चुनौती दे रहा हूं कि बौद्धिक,नैतिक,विधिक,समाजिक स्तर पर शास्त्रार्थ करा लें। यदि शास्त्रार्थ करने में मुहकाला होने की संभावना हो तो किसी विद्वान को हायर कर लें,वही जरासंध की बात रख देगा। मैं हारना ही चाहूंगा (क्योंकि जहरीले जमात के साथ मैं काम कर ही नही सकता),महोदय क्योंकि मैं जितना तो सभी को चाहता हूं लेकिन हराना किसी को नही चाहता।जरासंध नाम से घबड़ाइए नहीं वो १७ बार मथुरा के राजा कृष्ण व बलिराम पर आक्रमण किया,बमुश्किल बलिराम व कृष्ण जीत पाए। फिर १८ वीं बार भी,और जालिम, जहरीले बदमासों से मिलकर आक्रमण किया,इस बार भी जरासंध मुश्किल से हारा लेकिन बलिराम व कृष्ण को डरके मारे अपनी राजधानी द्वारका शिफ्ट करनी पड़ी। यही जरासंध महारथी था जो जयद्रथ,दुर्योधन,कर्ण,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य व सकुनी जैसे महारथियों से मिलकर एक जांबाज, बौद्धिक,बहादुर ,युद्ध कौशल में निपुण बेटे अभिमन्यु का वध किया। इसी जहरीले जालिम जरासंध के गैंग को अपनी शक्ति का घमंड इतना सर चढ़ा कि शांति दूत बनकर आए कृष्ण को ही बंदी बनाने चला और अंत में खुद ही चल बसे।जाना तो सभी को है।मुगल शासकों को देख लिजिए,हजारों पत्नियों के पति थे,तो इसी अनुपात में इनके बच्चे भी हुए होंगे? लेकिन इनके परिवार के सदस्य कहीं बर्तन माज रहे हैं तो कहीं ठेला खींच रहे हैं तो कहीं,वृहन्नला के रुप में सज रहे हैं।उनके पूर्वजों के बनाए मकानों से भारत बोलता है लेकिन उसपर हक,उनका शून्य है। क्या समझते हैं कि ये विद्यालय समेट के अपने परिवार तक रख लेंगे? मेरा मानना है कि आप कोई सुकरात,प्लूटो,ओशो,अरस्तू थोड़े ही होने वाले हैं या हैं?आजकल बच्चों को चोर डाकू तो बनाना पसंद है लेकिन भगत सिंह तो कत्तई नही बनाना है,सो तो भगत सिंह भी होने से रहे!
अब तक ना कोई ऐसा कमीना देखा,
लूट के हक किसी का ,मदीना देखा।
एक कहावत है लल्लन जी,अगर कोई इंसान आपके ऊपर आंख बंद करके भरोसा कर रहा है तो उसको कभी एहसास मत दिलाएं कि वो अंधा है! आप पर आंख बंद करके जितनों ने भरोसा किया सभी को अंधेपन का एहसास बड़े शातिराना व गहरेपन से कराया है लल्लन सिंह जी।वक्त ने बहुत कुछ सिखाया,लेकिन वक्त पर नहीं सिखाया। आंख तो कबकी खुली है लेकिन लब अब खुल रहे हैं।क्या आप ने पाया,क्या हम ने खोया? लेकिन सबक तो हमने पाया।हम तो ठोकर भी खाके खुश हैं,जहर थोड़े ही हैं कि खाके मर जाएंगे?
निवेदन है जरासंध महाराज जी अपने तमाम दूसरी लिस्ट में अवैध ढकेलू महारथियों से मेरा वध करा दिजिए,मैं इन नीच,निशाचरों की धमकी,भभकी से भयभीत नही होने वाला (मुकदमा कराने का प्रयास कर ही रहे हैं या करा भी चुके होंगे?कुछ भी करा सकते हैं आप गैंगधारी महोदय,ऐसा आपके चपरासी महोदय कह चुके हैं,ऊपर वर्णित है),ताकि अकंटक सरेराह लूटहाई आसान हो जाएगी लेकिन जीत तो पांडव की ही होगी,क्योंकि महाभारत काल में अधर्म व अधर्मी सारे हारे,त्रेता में चरित्रहीनों पर चरित्र जीता और सतयुग में सत्य जीता,तीनों काल खण्डों का अध्ययन किया जाए तो कहीं से कलयुग में आप जीतने वाले किरदार नहीं लग रहे! यदि सबके खून से सिंचित (ढकेलू गैंग को छोड़) विद्यालय के धन को लूटना ही अपनी जीत समझ रहे हैं तो मैं आपको विजेता घोषित करता हूं! अधर्म व अन्याय को जितता,कोई अधर्मी ही देख सकता है!जो दूसरों का धन लूटता हो,जो पराए स्त्री पर हाथ डालता है उस दुरात्मा को जलते हुए मकान की भांति त्याग देने योग्य बताया गया है,आपके पापों के कारण अब ये न विद्यालय रहेगा न आप रहेंगे न आपके चंपत चाटुकार(ये मेरा श्राप है)? न कफन में जेब है और न कब्र में आलमारी फिर ये कब्जेदारी की प्रेरणा के पेड़ पर क्यों चढ़ रहे हैं? जितना ऊंचा चढ़ेंगे,गिरने पर उतनी ही गहरी चोट लगेगी।कुछ तो समझ पैदा करें चोरों,डाकूओं,लंपटों,लंठों,चाटुकारों,नीच व निशाचरों के चेयरमैन जरासंध जी?वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है लल्लन जी,बुरा भी,अच्छा भी,रास्ता भी और वास्ता भी! लेकिन आप कत्तई नहीं बदलेंगे,अब ये मुझे ध्रुव विश्वास हो गया है?रावण,लंका के जलने व नाश होने तक वो राम को ही मारने का प्रयास करता रहा,उसे बचाने में,कभी नहीं सोचा क्योंकि लंका उसे फ्री में मिली थी जैसे आपको विद्यालय!
सभी पाठकों से उम्मीद है कि अगर मेरे कथन से कोई ठेस लगता है तो क्षमा करेंगे(ढकेलू गैंग से क्षमा नही मांग रहा)। फिर मिलेंगे अगले एपीसोड में,आपका,लल्लन सिंह व इनके लूट व लंपटों की टोली के खिलाफ की सार्थक जुबान रवि शंकर सिंह एडवोकेट रक्सा,रतसड़,बलिया,यूपी, मोबाइल -९४१५३४६३१७
नोट – बहुत जल्द ही आप सभी पाठक गण,इनके व इनके लंपट टोली,जालिम व जहरीले सहयोगियों के कारनामों को,दुनिया की दिवालों पर आपकी चाहत के रौशनाई से रौशन पाएंगे।करीब २५-३० हजार का खर्चा है,जुटाने में एकाध हफ्ते तो लग ही जाएंगे तब तक हमें सोशल मिडिया पर ही पाएंगे और विश्वास है कि आस्था व श्रद्धा से मजबूती प्रदान करेंगे।